सिक्किम के किसानों को ऑर्गेनिक बैंगन की दो खास किस्मों का तोहफा, होंगे मालामाल! 

ऑर्गेनिक बैंगन बारिश के दौरान जब नमी बढ़ती है तो कीड़ों का निशाना बन जाते हैं. इससे उपज को भारी नुकसान होता है. लेप्‍चा किसान आदतन फसलों को बचाने या उनकी सुरक्षा के लिए आधुनिक तौर-तरीकों का प्रयोग करने से बचते हैं.

Kisan India
Noida | Published: 31 Mar, 2025 | 03:38 PM

सिक्किम के लेप्चा आदिवासी किसानों को नैचुरल फार्मिंग ऑर्गेनिक खेती के लिए जाना जाता है. ये किसान खेती और पशुपालन से जुड़े हुए हैं. लेप्चा किसान पारंपरिक तरीकों से खेती के लिए मशहूर हैं और ये किसान अक्‍सर परंपरागत फसलों की खेती करते हैं. अब इन किसानों को आईसीएआर की तरफ से एक खास तोहफा दिया गया है. ये किसान परंपरागत फसलों के तहत मिक्स क्रॉपिंग यानी कि कई सब्जियों को एक साथ करने वाली खेती की टेक्निक को अपनाते हैं. आईसीएआर ने इन किसानों के लिए पूसा पर्पल लॉन्‍ग और पूसा पर्पल क्‍लस्‍टर किस्‍म तैयार की है.

बचेगा कीटनाशकों का खर्च 

ऐसा माना जाता है कि लेप्‍चा किसान, ऑर्गेनिक बैंगन की खेती में बेस्‍ट होते हैं. कहा जाता है कि बैंगन, लेप्‍चा जाति का प्रमुख भोजन होता है और इससे उनके भोजन का इंतजाम होता है. वहीं दूसरी ओर ऑर्गेनिक खेती से उन्हें ज्‍यादा फसल मिलती है. साथ ही कीटनाशक या दवाओं का खर्च भी बचता है. लेकिन यह बात भी सच है कि किसानों और उनकी सब्जियों को कई मुसीबतों से जूझना पड़ता है. कुछ कीट ऐसे हैं जो उनकी फसलों को खासी हानि पहुंचाते हैं.

कहां पर हो रही है इनकी खेती 

इन लेप्‍चा किसानों की मदद में आईसीएआर एनईएच सिक्किम ने बैंगन की जो दो किस्‍में तैयार की हैं, वो कीटों के हमलों से पूरी तरह से सुरक्षित रहेंगी. पूसा पर्पल लॉन्ग और पूसा पर्पल क्लस्टर को ऑर्गेनिक खेती के लिए मुफीद माना जा रहा है. कहा जा रहा है कि इन किस्मों पर शूट और फ्रूट बोरर जैसे कीड़ों का हमला नहीं होगा. इसके अलावा ये दोनों किस्में बैक्टीरियल विल्ट के प्रकोप से बची रहेंगी. इन किस्मों की खेती उत्तरी सिक्किम के आदिवासी क्षेत्र लेप्चा के गांवों और लोअर जोंगू में की जा रही है.

ऑर्गेनिक बैंगन बारिश के दौरान जब नमी बढ़ती है तो कीड़ों का निशाना बन जाते हैं. इससे उपज को भारी नुकसान होता है. लेप्‍चा किसानों आदतन फसलों को बचाने या उनकी सुरक्षा के लिए आधुनिक तौर-तरीकों का प्रयोग करने से बचते हैं. ये किसान पूरी तरह से नैचुरल सोर्सेज का सहारा लेते हैं. इस बात को ध्‍यान में रखते हुए ही ICAR ने बैंगन की इन दों किस्मों को ईजाद किया है. इससे किसानों की ऑर्गेनिक खेती में पैदावार बढ़ रही है.

सिक्किम के लेप्‍चा किसानों ने ऑर्गेनिक खेती की कई तकनीक अपनाई है. ये किसान ऑर्गेनिक तौर-तरीकों को ही अपना रहे हैं. इसके तहत वो वर्मी कंपोस्ट, मल्चिंग, समुद्री शैवाल का प्रयोग करते हैं और बैंगन से 21-30 टन प्रति एकड़ तक फसल उगाते हैं. इस उपज के लिए किसानों को अधिक खर्च करने की जरूरत नहीं पड़ती और वे कम लागत में अधिक पैदावार ले रहे हैं.

50-60 रुपये बिकती है पैदावार

किसान पहले जहां खुद के खर्च के लिए बैंगन उगाते थे, वे अब अधिक पैदावार का फायदा लेते हुए इसे नजदीक के बाजारों में बेचकर मुनाफा भी कमा रहे हैं. यहां के किसान बताते हैं कि बैंगन की टहनी और फल छेदक (ल्यूसिनोड्स ऑर्बोनेलिस) कीटों ने सिक्किम हिमालय में जैविक बैंगन की खेती के लिए एक बड़ी चुनौती पेश की, जिससे बरसात के मौसम में 80 परसेंट तक उपज का नुकसान हुआ.

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