बुवाई के इतने दिन बाद खेत में डालें यूरिया- पोटाश, गेहूं के दाने होंगे चमकदार और भारी
गेहूं की अधिक पैदावार के लिए DAP, यूरिया, पोटाश और जिंक-सल्फर-बोरॉन जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों का सही समय पर संतुलित उपयोग जरूरी है. DAP जड़ों को मजबूत करती है, यूरिया बढ़वार बढ़ाती है और पोटाश दाने भरती है.
Wheat Farming: पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में गेहूं की बुवाई अब लगभग समाप्ति की ओर है. लेकिन कई ऐसे राज्य हैं, जहां पर किसान अभी गेहूं की बुवाई ही कर रहे हैं. ये किसान गेहूं कि अधिक पैदावार के लिए खाद का जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं. लेकिन किसानों को मालूम होना चाहिए कि गेहूं के खेत में हमेशा उचित अनुपात में खाद का प्रोयग करना चाहिए. क्योंकि जरूरत से ज्यादा खाद डालने पर फसलों को नुकसान भी पहुंचता है. इससे पैदावार में गिरावट आती है. ऐसे में किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है. तो आइए आज जानते हैं किसानों को गेहूं के खेत में कौन सी खाद कब डालनी चाहिए.
कृषि एक्सपर्ट के मुताबिक, गेहूं की अच्छी पैदावार के लिए DAP, यूरिया और पोटाश जैसी खादों का सही चुनाव और समय पर उपयोग बहुत जरूरी है. ये खादें पौधे को मजबूत बनाती हैं, जड़ों का विकास बढ़ाती हैं और बालियों में दाने अधिक भरने में मदद करती हैं. साथ ही फसल को रोगों और ठंड से भी बचाती हैं. DAP गेहूं की शुरुआती बढ़वार के लिए सबसे अहम खाद मानी जाती है. इसे बुवाई के समय खेत में मिलाना चाहिए. इससे जड़ें मजबूत होती हैं और पौधा तेजी से बढ़ता है. अगर बुवाई के समय DAP न डाली जा सके, तो 10 से 12 दिन के भीतर दे देनी चाहिए. मजबूत जड़ें मिट्टी की नमी को लंबे समय तक बनाए रखती हैं, जिससे फसल सूखे और ठंड में भी अच्छा प्रदर्शन करती है.
यूरिया का कब करें इस्तेमाल
गेहूं की तेज बढ़वार और गहरे हरेपन के लिए यूरिया का संतुलित इस्तेमाल बहुत जरूरी है. इसमें मौजूद नाइट्रोजन पौधे को हरा-भरा बनाती है, तने मजबूत करती है और बालियां लंबी व दाने भरी हुई बनाती है. पहली सिंचाई के बाद यूरिया देना सबसे फायदेमंद होता है, क्योंकि इसी समय पौधा तेजी से बढ़ रहा होता है. दूसरी सिंचाई पर थोड़ी मात्रा में यूरिया देने से फसल की कमजोरी दूर होती है और उत्पादन बढ़ता है.
गेहूं के खेत में पोटाश की क्या है भूमिका
दूसरी तरफ, दानों की गुणवत्ता और चमक बढ़ाने में पोटाश की बड़ी भूमिका है. यह पौधे को मजबूत बनाता है और ठंड व बीमारियों से बचाने में मदद करता है. पोटाश की कमी से पौधा कमजोर हो जाता है और बालियां ठीक से नहीं भर पातीं. इसलिए पहली या दूसरी सिंचाई के दौरान पोटाश देना जरूरी है ताकि दाने अच्छे, भारी और चमकदार बन सकें.
बढ़ जाएगी रोग-प्रतिरोधी क्षमता
वहीं, बेहतर उपज और स्वस्थ फसल के लिए सूक्ष्म पोषक तत्वों का संतुलन बनाए रखना बहुत जरूरी है. हर खेत की मिट्टी की जरूरत अलग होती है, इसलिए जिंक, सल्फर और बोरॉन जैसे माइक्रो न्यूट्रिएंट्स की कमी को पूरा करना जरूरी होता है. इनका स्प्रे करने से फसल हरी-भरी, मजबूत और रोग-प्रतिरोधी बनती है, जिससे उत्पादन में साफ बढ़ोतरी होती है.