जहरीले सांप के डसने के बाद कितनी देर में बचाई जा सकती है जान? जानें

भारत में हर साल लगभग दो लाख लोग सर्प दंश का शिकार होते हैं. इनमें से 50 हजार से अधिक लोगों की जान चली जाती है. इनमें 90 प्रतिशत मौतें वही चार खतरनाक सांप -स्पेक्टिकल्ड कोबरा, कॉमन करैत, रसल वाइपर और सॉ स्केल्ड वाइपर के डसने से होती हैं.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 6 Sep, 2025 | 12:42 PM

भारत में पाए जाने वाले सांपों की कुल 361 प्रजातियों में से केवल 10 प्रतिशत ही विषैले हैं. हालांकि इनमें कुछ हल्के विष वाले सांप भी शामिल हैं, जिनके डसने से जान का खतरा कम होता है, लेकिन पेट दर्द, उल्टी और चक्कर जैसी परेशानियां हो सकती हैं. इसके बावजूद, हर साल सर्प दंश से हजारों लोगों की जान खतरे में पड़ जाती है. इसका मुख्य कारण चार सबसे खतरनाक सांप हैं, जिन्हें आमतौर पर “बिग फोर” कहा जाता है, और ये चारों ही देश में सर्प दंश से होने वाली अधिकतर मौतों के जिम्मेदार हैं. तो चलिए आज जानते हैं कि अगर इन जहरीले सांपों के काटने के बाद इंसान के पास जिंदा रहने के लिए कितना समय बचता है.

भारत में सर्प दंश की स्थिति

भारत में हर साल लगभग दो लाख लोग सर्प दंश का शिकार होते हैं. इनमें से 50 हजार से अधिक लोगों की जान चली जाती है. इनमें 90 प्रतिशत मौतें वही चार खतरनाक सांप –स्पेक्टिकल्ड कोबरा, कॉमन करैत, रसल वाइपर और सॉ स्केल्ड वाइपर के डसने से होती हैं. यही कारण है कि भारत में बन रहे एंटीवेनम का मुख्य लक्ष्य इन्हीं चार सांपों के विष का उपचार करना है.

बिग फोर” सांपों के विष का प्रकार

स्पेक्टिकल्ड कोबरा और कॉमन करैत: इनमें न्यूरोटॉक्सिक विष होता है. यह रक्त में मिलते ही तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है और तेजी से लकवा और ब्रेन फेलियर जैसी स्थिति पैदा कर सकता है.

रसल वाइपर और सॉ स्केल्ड वाइपर: इनमें हिमोटॉक्सिक और साइटोटॉक्सिक विष पाया जाता है. यह रक्त को जमने और अंगों में गंभीर नुकसान पहुंचाने का काम करता है.

डसने के बाद बचाव का “गोल्डन आवर

न्यूरोटॉक्सिक विष के मामलों में डसने के 30 से 60 मिनट को गोल्डन आवर माना जाता है. इस दौरान अगर सही इलाज शुरू हो जाए, तो पीड़ित की जान बचने की संभावना काफी बढ़ जाती है. कई बार स्थिति इतनी गंभीर हो जाती है कि 40 मिनट से भी कम समय में व्यक्ति की जान जा सकती है.

हीमोटॉक्सिक विष में भी डसने के एक घंटे को गोल्डन आवर माना जाता है. सही समय पर उपचार मिलने पर पीड़ित की जान बच सकती है. हीमोटॉक्सिक विष में खून जेली की तरह जमने लगता है, त्वचा फटने लगती है और किडनी फेल होने का खतरा होता है.

समय पर उपचार 

सांप का विष चाहे न्यूरोटॉक्सिक हो या हीमोटॉक्सिक, जल्दी इलाज मिलने पर ही पीड़ित की जान बच सकती है. न्यूरोटॉक्सिक विष अधिक तेजी से असर करता है और इसलिए इसे अधिक खतरनाक माना जाता है. भारत में सबसे ज्यादा खतरनाक सांपों में स्पेक्टिकल्ड कोबरा और कॉमन करैत आते हैं, इसके बाद रसल वाइपर और सॉ स्केल्ड वाइपर का नंबर आता है.

इसलिए जंगल में या ग्रामीण इलाकों में रहते हुए सावधानी रखना और समय पर अस्पताल पहुंचना जीवन रक्षक साबित हो सकता है.

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