धान सबसे अहम फसलों में से एक है. यह न सिर्फ देश की आधी से ज्यादा आबादी का पेट भरता है, बल्कि लाखों किसानों की रोजी-रोटी का जरिया भी है. लेकिन आजकल धान की खेती करना पहले जितना आसान नहीं रहा. कम पैदावार, बदलता मौसम, कीटों का प्रकोप और लगातार बढ़ती लागत किसानों की चिंता बढ़ा रहे हैं. ऐसे में खेती की सफलता अब काफी हद तक अच्छे बीज के चुनाव पर निर्भर हो गई है. इसी जरूरत को ध्यान में रखते हुए हाइब्रिड बीज कोकिला-33 तैयार किया गया है.
105 से 110 दिनों में पककर तैयार
कोकिला-33 एक मध्यम अवधि का धान बीज है जो लगभग 105 से 110 दिनों में पककर तैयार हो जाता है. जो न केवल खुशबूदार और चमकदार दानों वाली है बल्कि किसान के लिए ज्यादा उत्पादन और कम जोखिम का भरोसा भी देती है. यह किस्म पीबी 1509 और पीबी 1692 को मिलकर तैयार की गई है. इसकी लंबाई मध्यम होती है, लेकिन तना मजबूत होता है, जिस कारण यह फसल हवा या तेज बारिश में भी नहीं गिरती है.
इस किस्म की उत्पादन लगभग 20 से 25 क्विंटल प्रति एकड़ होती है. इसके अलावा, यह बीज बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट जैसी घातक बीमारी के प्रति भी प्रतिरोधक मानी जाती है, जिसे फसलों का नुकसान भी काफी कम होता है.
प्रति एकड़ 8 से 10 किलो बीज की जरूरत
कोकिला-33 की नर्सरी मई से जून के बीच लगाई जाती है और 20 से 25 दिन बाद रोपाई करनी होती है. प्रति एकड़ 8 से 10 किलो बीज की जरूरत होती है. बीज को कीटनाशकों से अच्छी तरह उपचारित कर बोना चाहिए ताकि जड़े बीमारियों से सुरक्षित रह सकें. रोपाई से पहले पौधों को कार्बेन्डाजिम के घोल में डुबोकर लगाना लाभकारी रहता है. इसके साथ ही रोपाई करते समय पौधों की कतारों में 8 इंच और पौधों के बीच 6 इंच की दूरी रखें.
उर्वरक प्रबंधन और कीट नियंत्रण
बेहतर उपज के लिए प्रति हेक्टेयर 115 किलो यूरिया, 60 किलो डीएपी, 25 किलो पोटाश और 10 किलो जिंक सल्फेट का प्रयोग करना चाहिए. डीएपी, पोटाश और जिंक एक साथ रोपाई के समय दें और यूरिया दो हिस्सों में दें. जिनमें एक 10-15 दिन बाद और दूसरा फूल निकलने के समय. इसके अलावा खरपतवार नियंत्रण के लिए रोपाई के 3 दिन बाद बुटाक्लोर या प्रेटीले-क्लोर और 15–20 दिन बाद नोमिनी गोल्ड नामक दवा से छिड़काव करें. कीटों से बचाव के लिए कारटैप हाइड्रोक्लोराइड या फिप्रोनील का छिड़काव करें.