छोटे किसानों के लिए नई उम्मीद बनी पपीते की खेती, कम खर्च में बंपर कमाई

पपीता की खेती अब छोटे और सीमांत किसानों के लिए एक लाभदायक विकल्प बन गई है, क्योंकि यह कम समय में ज्यादा उत्पादन देता है और इसकी मांग बाजार में साल भर बनी रहती है. भारत दुनिया का सबसे बड़ा पपीता उत्पादक देश है और सरकार की योजनाएं भी इसकी खेती को बढ़ावा दे रही हैं.

Kisan India
नोएडा | Published: 26 Apr, 2025 | 09:00 AM

खेती-किसानी के बदलते दौर में अब समय आ गया है कि किसान पारंपरिक फसलों के साथ-साथ ऐसी फसलों की तरफ भी ध्यान दें, जो कम लागत में ज्यादा आमदनी दें और जिसकी मांग बाजार में हमेशा बनी रहें. इनमें से एक है पपीता (Carica papaya), पोषण और औषधीय गुणों से भरपूर होने के साथ आर्थिक रूप से भी अब मददगार साबित हो सकता हैं. वहीं इसकी खेती अब देश के छोटे और सीमांत किसानों के लिए नई उम्मीद की बन कर उभर रही हैं. पपीता एक ऐसा फल है जो सालों-साल फल देता है. जिस कारण किसनों को इसकी खेती से अधिक मुनाफा होता है.

भारत दुनिया का सबसे बड़ा पपीता उत्पादक देश है, जो वैश्विक उत्पादन का लगभग 40 फीसदी उत्पादित हिस्सा माना जाता है. आंध्र प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्य पपीता उत्पादन के प्रमुख राज्य है.

कम समय, ज्यादा उत्पादन, साल भर फल

पपीता की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें विटामिन A, C, E, फाइबर और पेपेन जैसे एंजाइम पाए जाते हैं जो पाचन में सहायक होते हैं और कई दवाइयों में भी काम आते हैं. इसके अलावा, पपीता की पत्तियां, बीज और लेटेक्स भी औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं, जिससे इसकी औद्योगिक तौर पर भी मांग बढ़ रहीं हैं. इसकी खेती साल भर आसानी से की जा सकती है और इससे 6 से 9 महीने में फल मिलने लगते हैं. यही वजह है कि यह फसल अब छोटे और सीमांत किसानों के लिए भी फायदेमंद बन रही है.

कैसे करें पपीता की खेती?

पपीता की खेती के लिए 25 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान और अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है. खेत की तैयारी के बाद 1.8 मीटर x 1.8 मीटर की दूरी पर पौधे लगाए जाते हैं. अच्छी फसल के लिए हर पौधे को साल भर में 250 ग्राम नाइट्रोजन, 250 ग्राम फॉस्फोरस और 500 ग्राम पोटाश देना जरूरी होता है. आप इसे बीज या टिशू कल्चर दोनों तरीकों से पौधे तैयार किए जा सकते हैं, लेकिन टिशू कल्चर से पौधे बीमारियों से मुक्त रहते हैं.

उन्नत किस्में और रोग नियंत्रण

भारत में कई उन्नत किस्में जैसे रेड लेडी, पूसा ड्वार्फ, ताइवान 786 और CO सीरीज काफी लोकप्रिय हैं. ये किस्में ज्यादा फल देती हैं और बाजार में अच्छी कीमतों पर भी बिकती हैं. हालांकि, पपीता मेलीबग, पपीता रिंग स्पॉट वायरस (PRSV) और पाउडरी मिल्ड्यू जैसी बीमारियां खेती में बाधा बन सकती हैं. इसके लिए आईपीएम (इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट) को अपनाना बेहद जरूरी है.

इन तरीकों से बढ़ सकती हैं निर्यात की संभावना.

देश में पपीते के निर्यात की काफी संभावना है. अगर कोल्ड स्टोरेज, ग्रेडिंग और पैकेजिंग जैसी सुविधाएं बढ़ाई जाएं तो पपीते को अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक पहुंचाया जा सकता है. साथ ही, ड्राय पपीता, जैम, जूस और पेपेन पाउडर जैसे उत्पाद बनाकर किसानों की आमदनी और भी अधिक बढ़ाई जा सकती है. इसके साथ ही सरकार की मिशन फॉर इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ हॉर्टिकल्चर (MIDH) जैसी योजनाएं पपीता की खेती को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभा रही हैं.

Get Latest   Farming Tips ,  Crop Updates ,  Government Schemes ,  Agri News ,  Market Rates ,  Weather Alerts ,  Equipment Reviews and  Organic Farming News  only on KisanIndia.in

Published: 26 Apr, 2025 | 09:00 AM

किस देश को दूध और शहद की धरती (land of milk and honey) कहा जाता है?

Poll Results

भारत
0%
इजराइल
0%
डेनमार्क
0%
हॉलैंड
0%