क्या आपने आजमाई प्लास्टिक मल्चिंग? जानें आधुनिक खेती में इसके फायदे और लागत

किसानों को आधुनिक तकनीकों को अपनाने के लिए सरकार की ओर से सब्सिडी भी प्रदान की जाती है. कई राज्यों में प्लास्टिक मल्चिंग पर आर्थिक सहायता मिलती है, ताकि किसान कम लागत में बेहतर खेती कर सकें.

नई दिल्ली | Published: 24 Nov, 2025 | 12:50 PM

Farming Tips: आज के समय में खेती करना पहले से कहीं ज्यादा चुनौतीपूर्ण हो गया है. एक तरफ पानी की कमी की समस्या, दूसरी तरफ बढ़ती लागत और मौसम की अनिश्चितता. ऐसे में किसान ऐसी तकनीकों की ओर बढ़ रहे हैं, जो कम मेहनत में अधिक फायदा दें. इन्हीं आधुनिक तकनीकों में से एक है प्लास्टिक मल्चिंग. यह तकनीक किसानों की आय बढ़ाने और फसल सुरक्षा के लिए बेहद कारगर साबित हो रही है.

प्लास्टिक मल्चिंग क्या है?

प्लास्टिक मल्चिंग में पौधों के आसपास की मिट्टी को एक विशेष प्लास्टिक शीट से ढक दिया जाता है. यह प्लास्टिक अलग-अलग मोटाई और रंगों में मिलती है जैसे काली, सफेद-काली, चांदी-काली आदि. इसकी खास बात है कि यह मिट्टी की नमी को सुरक्षित रखना, खरपतवार कोउगने देना और पौधों को बेहतर पोषणवातावरण देना. इस तकनीक का उपयोग सब्जियों, फूलों और फलदार पौधों में सबसे ज्यादा किया जाता है.

प्लास्टिक मल्चिंग के बड़े फायदे

प्लास्टिक से जमीन ढकने पर मिट्टी का तापमान नियंत्रण में रहता है और पानी का वाष्पीकरण काफी कम हो जाता है.

इसका सीधा फायदा किसान को मिलता है

इससे जमीन कड़ी नहीं होती और मिट्टी की उर्वरता भी बनी रहती है.

सब्जियों की खेती में कैसे करें मल्चिंग?

फलदार पौधों में कैसे करें उपयोग?

आम, अमरूद, नींबू जैसे पेड़ों के चारों तरफ 100 माइक्रोन की मोटी फिल्म लगाई जाती है. इससे तने के पास नमी बनी रहती है, बढ़वार अच्छी होती है और खरपतवार नहीं उगता. इसकी मदद से लंबे समय तक पौधा हरा-भरा रहता है.

प्लास्टिक मल्चिंग लगाते समय ध्यान रखें

कितनी आती है लागत?

लागत फसल और प्लास्टिक की क्वालिटी पर निर्भर करती है. आमतौर पर एक बीघा में लगभग 8,000 रुपये तक खर्च आता है अगर मशीन से मिट्टी भराई करवाएं, तो खर्च थोड़ा बढ़ सकता है.

सरकार क्या देती है मदद?

किसानों को आधुनिक तकनीकों को अपनाने के लिए सरकार की ओर से सब्सिडी भी प्रदान की जाती है. कई राज्यों में प्लास्टिक मल्चिंग पर आर्थिक सहायता मिलती है, ताकि किसान कम लागत में बेहतर खेती कर सकें. उदाहरण के तौर पर, मध्यप्रदेश में इस तकनीक पर 50 प्रतिशत तक अनुदान या अधिकतम 16,000 रुपये प्रति हेक्टेयर की सहायता दी जाती है. यह लाभ “पहले आओ, पहले पाओ” के आधार पर मिलता है और किसान अपने विकासखंड के उद्यान विभाग में आवेदन कर सकते हैं. सिर्फ मध्यप्रदेश ही नहीं, अन्य राज्यों में भी ऐसी योजनाएं लागू हैं, जिनकी विस्तृत जानकारी किसान अपने नजदीकी कृषि कार्यालय, कृषि विस्तार अधिकारी या ग्राम सेवक से प्राप्त कर सकते हैं. इससे किसानों पर बोझ कम होता है और वे आधुनिक एवं लाभदायक खेती की ओर तेजी से आगे बढ़ पाते हैं.

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