पंजाब में खेतों की सेहत की जांच शुरू,10,000 से अधिक मिट्टी नमूने लिए गए

किसानों से अपील की गई है कि वे पुसा-44 और कुछ हाइब्रिड किस्मों की खेती से बचें, क्योंकि इनसे मिट्टी की सेहत पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है. साथ ही, पीएम किसान सम्मान निधि जैसी सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने की भी सलाह दी गई है.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 13 Jun, 2025 | 09:54 AM

पंजाब में खेती को नई दिशा देने और मिट्टी की सेहत का ख्याल रखने के लिए एक सराहनीय पहल की गई है. पटियाला के कृषि विभाग ने खरीफ सीजन से पहले एक विशेष मुहिम शुरू की है, जिसमें किसानों के खेतों की मिट्टी का वैज्ञानिक तरीके से परीक्षण किया जा रहा है. इस अभियान का मकसद है सही जानकारी देना, ताकि किसान न तो जरूरत से ज्यादा खाद डालें और न ही जरूरत से कम.

10 हजार से ज्यादा नमूने इकट्ठे

मुख्य कृषि अधिकारी डॉ. जसविंदर सिंह ने मीडिया को बताया कि पटियाला जिले में कुल 16,500 मिट्टी नमूनों को इकट्ठा करने का लक्ष्य रखा गया है. अब तक 10,000 से ज्यादा सैंपल इकट्ठा किए जा चुके हैं और यह अभियान पूरे जून तक चलेगा. जिन ब्लॉकों से ये नमूने लिए गए हैं उनमें भुनरहेड़ी (458), घनौर (1491), नाभा (998), पटियाला (865), पतरन (1095), राजपुरा (1510), समाना (1204) और सनौर (1896) शामिल हैं.

नाइट्रोजन की कमी सबसे ज्यादा

जांच में सबसे ज्यादा नाइट्रोजन की कमी पाई गई है. यह वह पोषक तत्व है जो पौधों की हरी-भरी बढ़त के लिए बेहद जरूरी होता है. बिना जांच के खाद डालना न सिर्फ फसल को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि मिट्टी की ताकत भी धीरे-धीरे खत्म करता है. ऐसे में रिपोर्ट के अनुसार उर्वरक का संतुलित इस्तेमाल करना जरूरी है.

किसानों को दी खास सलाह

किसानों से अपील की गई है कि वे पुसा-44 और कुछ हाइब्रिड किस्मों की खेती से बचें, क्योंकि इनसे मिट्टी की सेहत पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है. साथ ही, पीएम किसान सम्मान निधि जैसी सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने की भी सलाह दी गई है.

गांव-गांव में चल रही जागरूकता मुहिम

किसानों को जानकारी देने के लिए विभाग ने गांवों में जागरूकता शिविर लगाए हैं. इन शिविरों में कृषि विकास अधिकारी, एग्रीकल्चर एक्सटेंशन ऑफिसर, ब्लॉक टेक्नोलॉजी मैनेजर और असिस्टेंट मैनेजर जैसे विशेषज्ञ किसानों को जानकारी दे रहे हैं. दौन कलां, फरीदपुर, कौली, अलोहरा कलां, जलालाबाद, सादोहड़ी, बोहर खुर्द, ऊचागांव, खेरी मैनियां और मंडौर जैसे गांवों में ये कैंप लगाए जा चुके हैं.

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