बरसात कब होगी? फसल की बुआई कब शुरू करें? यह सवाल हर किसान के मन में होता है, लेकिन हर बार जवाब मौसम विभाग या मोबाइल ऐप्स नहीं देते. आज भी किसान अपनी नजर और अनुभव से मौसम का हाल समझते हैं और इसमें उनकी सबसे बड़ी मददगार होती है एक छोटी-सी पक्षी टिटहरी.
आप भी सोच रहे होंगे भला कोई चिड़िया कैसे किसानों की मदद कर सकती है. ना उसके पास रडार है, ना सेटेलाइट… दरअसल, उसके अंडों की दिशा और समय, इतनी सटीक भविष्यवाणी करते हैं कि बड़े-बड़े वैज्ञानिक भी हैरान रह जाएं. तो चलिए जानते हैं कैसे कुसान कुदरत के संकेतों से जानते हैं बारिश का हाल.
टिटहरी के अंडों से मिलता है बारिश का इशारा
गांव के बुजुर्ग और अनुभवी किसान आज भी मानते हैं कि अगर खेतों में टिटहरी ने अंडे दे दिए हैं, तो समझ लीजिए मानसून की आहट शुरू हो गई है. और अगर अंडे से बच्चे निकल आए हैं, तो अब बारिश किसी भी दिन दस्तक दे सकती है. पुरानी कहानियों के अनुसार अगर टिटहरी के चार अंडों में से तीन का नुकीला सिरा घोंसले के अंदर की तरफ है, तो बारिश करीब तीन महीने तक चलेगी. अगर चौथा अंडा थोड़ा घूम गया है, तो बारिश साढ़े तीन महीने तक चलेगी.
नीम और बेर के पेड़ से भी लगाते हैं पता
सिर्फ टिटहरी ही नहीं, किसान पहले पेड़-पौधों को देखकर भी बारिश का अनुमाल लगाते हैं. नीम के पेड़ पर जब निंबोड़ी पककर गिरने लगती है, तो माना जाता है कि मानसून अब जल्द ही गांव में कदम रखने वाला है. वहीं खरीफ की बुआई के लिए बेर के पेड़ को देखा जाता है. यदि पतझड़ के बाद बेर फिर से हरा-भरा हो गया है, तो यह संकेत है कि अब बुआई का समय है.
मिट्टी के लड्डू से तय होती है फसल की बुआई
पहले जब मशीने नहीं होती थीं तो किसान खेत में 4 इंच गहराई से मिट्टी निकालकर जब उससे लड्डू बनाते हैं और वह न टूटे, तो इसका मतलब है कि जमीन बुआई के लिए तैयार है. यह तकनीक पीढ़ियों तक चलती रही हैं. हालांकि आज के लोग इस तरह के एक्सपेरिमेंट पर कम ही भरोसा करते हैं.
रोहिणी नक्षत्र भी करता है इशारा
गांवों में यह भी मान्यता है कि अगर रोहिणी नक्षत्र के दौरान बारिश नहीं होती है, तो पूरा मानसून अच्छा रहेगा. और अगर इस समय बारिश होकर पानी बह जाता है, तो बीच-बीच में बारिश रुकने और खंड वर्षा की संभावना होती है.
वैज्ञानिक नहीं करते इन बातों पर भरोसा
कृषि वैज्ञानिक इन तरीकों को पूरी तरह वैज्ञानिक नहीं मानते, लेकिन वे भी इस बात से इनकार नहीं करते कि ये परंपराएं सालों की प्रकृति-परख पर बनी हैं. वहीं आज भी पहले के लोग इन चीजों को देखकर ही बारिश का हाल बता देते हैं.