सिर्फ दिल्ली-NCR नहीं पूरे देश की समस्या बनी पराली जलाना, मध्य प्रदेश भी लिस्ट में आगे

कई बार किसानों को पराली जलाने के लिए दोषी ठहराया जाता है, लेकिन उनके पास ज्यादा विकल्प नहीं होते. फसल काटने के बाद खेत में जो सूखी पराली बचती है, उसे हटाने के लिए न तो किसानों के पास समय होता है और न ही सही संसाधन.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 13 May, 2025 | 09:39 AM

हर साल जब फसल की कटाई का वक्त आता है, तब खेतों में पराली जलाने की घटनाएं बढ़ जाती हैं. मीडिया और सरकार आमतौर पर दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों जैसे पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश पर ही ध्यान देती हैं. लेकिन अब ये समस्या सिर्फ दिल्ली तक सीमित नहीं रही.

अब मध्य प्रदेश भी आगे

पर्यावरण से जुड़ी प्रतिष्ठित वेबसाइट डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट के मुताबिक मध्य प्रदेश के जिलों, खासकर विदिशा जैसे इलाकों में पराली जलाने के मामले सबसे अधिक हो रहे हैं. लेकिन इसके बावजूद सरकार की चिंता अब भी केवल दिल्ली की हवा तक सिमटी हुई है.

किसान मजबूर हैं या दोषी?

कई बार किसानों को पराली जलाने के लिए दोषी ठहराया जाता है, लेकिन उनके पास ज्यादा विकल्प नहीं होते. फसल काटने के बाद खेत में जो सूखी पराली बचती है, उसे हटाने के लिए न तो किसानों के पास समय होता है और न ही सही संसाधन. अगली फसल बोने से पहले खेत साफ करना जरूरी होता है, और जब कोई आसान और सस्ता तरीका नहीं होता, तो जलाना ही आखिरी उपाय बचता है.

अब कई राज्य सरकारें पराली जलाने वाले किसानों को सरकारी योजनाओं से बाहर कर रही हैं. लेकिन असली समस्या नीति और सुविधाओं की कमी की है, जिस पर ध्यान देना जरूरी है.

हरित क्रांति का असर

हरित क्रांति से देश को खाने का भरोसा तो मिला, लेकिन इसके साथ कई दिक्कतें भी आईं. बार-बार एक ही तरह की फसल (जैसे गेहूं और धान) उगाने, मशीनों के ज्यादा इस्तेमाल और लगातार खेती करने से जमीन की ताकत, पानी की मात्रा और हवा की सफाई पर बुरा असर पड़ा है.

समस्या का हल क्या हो सकता है?

फसल में बदलाव लाना
गेहूं-धान के बजाय ऐसी फसलें उगाई जाएं जो कम पराली पैदा करें, जैसे सब्जियां या फल.

पराली को कचरा नहीं, काम की चीज मानना
अगर पराली को बेकार नहीं, बल्कि उपयोगी चीज समझा जाए तो इससे खाद, चारा, बिजली या कागज भी बनाया जा सकता है.

पराली का बाजारी इस्तेमाल
अगर सरकार या कोई कंपनी किसानों से पराली खरीदना शुरू कर दे, तो किसान उसे जलाने के बजाय बेचना पसंद करेंगे. इससे उनकी कमाई भी बढ़ेगी और प्रदूषण भी कम होगा.

जरूरत है समझदारी
सरकार को ऐसी योजनाएं बनानी होंगी जो केवल सजा देने की नहीं, बल्कि समस्या का हल निकालने की सोच पर आधारित हों. बायोमास (जैविक कचरे) से ऊर्जा बनाने की योजना को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, और राज्यों को पराली के फिर से इस्तेमाल और मिलीजुली खेती को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए.

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