रबी सीजन में गेहूं की फसल को इन 5 बीमारियों से बचाएं, वरना घट सकती है पैदावार

रबी सीजन की शुरुआत के साथ ही किसान देशभर में गेहूं की बुवाई में जुट गए हैं. लेकिन इस फसल से अच्छी पैदावार पाने के लिए सिर्फ मेहनत ही नहीं, सतर्कता भी जरूरी है. गेहूं की फसल पर कई तरह के कीट और बीमारियां हमला करती हैं, जो फसल की उपज को 20 से 40 प्रतिशत तक घटा सकती हैं.

नई दिल्ली | Published: 10 Nov, 2025 | 01:00 PM

Farming Tips: भारत में गेहूं सिर्फ एक फसल नहीं, बल्कि किसानों की आजीविका का सबसे बड़ा सहारा है. रबी सीजन की शुरुआत के साथ ही किसान देशभर में गेहूं की बुवाई में जुट गए हैं. लेकिन इस फसल से अच्छी पैदावार पाने के लिए सिर्फ मेहनत ही नहीं, सतर्कता भी जरूरी है. गेहूं की फसल पर कई तरह के कीट और बीमारियां हमला करती हैं, जो फसल की उपज को 20 से 40 प्रतिशत तक घटा सकती हैं. अगर किसान समय रहते इनका इलाज न करें, तो पूरा खेत बर्बाद हो सकता है.

सर्दियों में गेहूं की फसल पर क्यों बढ़ जाता है रोगों का खतरा

ठंड के मौसम में नमी बढ़ने और तापमान घटने के कारण फंगस और कीट तेजी से फैलते हैं. खासकर उत्तर भारत में सुबह की ओस और घना कोहरा फफूंद के लिए अनुकूल माहौल तैयार करता है. ऐसे में किसान अगर शुरुआती लक्षण पहचान लें और सही समय पर दवा या जैविक उपाय करें, तो फसल को नुकसान से बचाया जा सकता है.

भूरा रतुआ: गेहूं की पत्तियों पर लगने वाला सबसे खतरनाक रोग

भूरे रतुआ की पहचान पत्तियों पर भूरे या नारंगी रंग के छोटे-छोटे धब्बों से होती है. ये धीरे-धीरे पत्तियों की पूरी सतह को ढक लेते हैं, जिससे पौधे की प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया प्रभावित होती है. परिणामस्वरूप दाने पतले और हल्के हो जाते हैं.
बचाव: रोग दिखने पर प्रोपिकोनाजोल या टेबुकोनाजोल का छिड़काव करें. खेतों में बार-बार एक ही किस्म न लगाएं और फसल की नियमित निगरानी करें.

काला रतुआ: तनों को कमजोर कर देता है यह रोग

यह रोग फसल के तनों और पत्तियों पर काले-भूरे धब्बे बनाता है. यह पौधों की नमी सोखने की क्षमता को घटा देता है, जिससे दाने अधूरे रह जाते हैं. यह समस्या खासकर मध्य भारत और दक्षिणी क्षेत्रों में देखी जाती है.
बचाव: खेत में अधिक नमी न बनने दें और फसल को समय पर फफूंदनाशक से उपचारित करें.

पीला रतुआ: ठंडी जगहों में तेजी से फैलने वाला रोग

यह रोग हिमाचल, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर जैसे पहाड़ी इलाकों में आम है. पत्तियों पर पीली धारियां बनने लगती हैं, जिनसे एक पाउडर जैसा पदार्थ निकलता है.
बचाव: पीला रतुआ प्रतिरोधक किस्में लगाएं और खेतों में समय-समय पर निरीक्षण करते रहें.

माहू (एफिड): रस चूसकर फसल को कमजोर करता है

माहू या एफिड पौधे की पत्तियों और बालियों का रस चूसकर उन्हें कमजोर कर देता है. इनके कारण फसल में काली फफूंद लग जाती है, जिससे उपज घट जाती है.
बचाव: खेत में फेरोमोन ट्रैप लगाएं और जैविक कीटनाशक का छिड़काव करें. गंभीर स्थिति में क्विनालफॉस का इस्तेमाल किया जा सकता है.

दीमक का प्रकोप: जड़ों को खाकर कर देता है फसल को बर्बाद

दीमक गेहूं की जड़ों को कुतर देती है, जिससे पौधे सूख जाते हैं. यह प्रकोप आमतौर पर सूखी मिट्टी में ज्यादा होता है.
बचाव: खेत में गोबर की खाद डालें, पुरानी फसल के अवशेष हटा दें और सिंचाई के साथ क्लोरपाइरीफॉस का प्रयोग करें.

किसानों के लिए जरूरी सलाह

सर्दी के मौसम में गेहूं की फसल को नियमित रूप से देखना बेहद जरूरी है. खेत में नमी का संतुलन बनाए रखें, अत्यधिक पानी या सूखे से बचाएं. जैविक खाद और फफूंदरोधी दवाओं का सही समय पर प्रयोग करें. रोग दिखते ही तुरंत कृषि विशेषज्ञ से सलाह लें.

अगर किसान इन सावधानियों का पालन करें, तो वे न केवल अपनी फसल को रोगों से बचा सकते हैं, बल्कि अधिक पैदावार और बेहतर मुनाफा भी कमा सकते हैं. सर्दियों का यह सीजन गेहूं की खेती के लिए सुनहरा मौका है, बस जरूरत है थोड़ी समझदारी और सही देखभाल की.

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