देश को आजादी 1947 में मिली. तब से पूरे देश में संविधान के तहत शासन व्यवस्था चल रही है. हर पांच साल पर ग्राम पंचायत, विधानसभा और लोकसभा का चुनाव होता है. जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिध विधानसभा और लोकसभा में पहुंचकर कानून बनाने का काम करते हैं. लेकिन क्या आपको मालूम है कि भारत में एक ऐसी भी जगह है, जहां मांझी सरकार का शासन चलता है. मांझी सरकार के वर्दीधारी सैनिक न केवल जल, जंगल और जमीन की रक्षा करते हैं, बल्कि आदिवासी गांवों के तमाम छोटे-मोटे विवादों को भी अपने स्तर पर ही सुलझा देते हैं. भले ही आप सुनकर चौंक गए होंगे, लेकिन यह हकीकत है.
दरअसल हम, जिस मांझी सरकार के बारे में बात करने जा रहे हैं, वह शासन व्यवस्थान आज भी मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में सक्रिय है. ये जिला आदिवासी बहुल्य है. यहां पर मांझी सरकार के तहत ही शासन व्यवस्था चलती है. दरअसल, मांझी सरकार एक आदिवासी समुदाय की अपनी शासन व्यवस्था है, जिसे स्वतंत्रता संग्राम के दौरान स्थापित किया गया था. यह व्यवस्था अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष में आदिवासी समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए बनाई गई थी. मांझी सरकार का उद्देश्य जल, जंगल और जमीन की रक्षा करना और आदिवासी समुदाय के उत्थान के लिए काम करना है.
सुभाष चंद्र बोस ने बनाई थी मांझी सरकार
देश की आजादी से पहले आदिवासियों के लिए जल, जंगल, जमीन के संरक्षण और अंग्रेजों के खिलाफ आवाज बुलंद करने के लिए इस मांसी सरकार का गठन किया गया था. आजाद हिंद फौज के संस्थापक सुभाष चंद्र बोस और भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में गठित मांझी सरकार आज भी आदिवासी परंपरा और समाज के उत्थान के लिए काम कर रही है. वर्तमान में मांझी सरकार के पास 2 लाख से ज्यादा वर्दीधारी सैनिक हैं.
बैतूल में मांझी सरकार आज भी सक्रिय
मांझी सरकार की सेना की नींव साल 1910 में रखी गई थी. पूरे देशभर में ये मांझी सेना फैली है. साल 1951 से बैच बिल्ला बनना शुरू हुआ. मांझी सेना को 1956 में राष्ट्रीय ध्वज से सम्मानित किया गया. छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के बैतूल में मांझी सरकार की वर्दीधारी सेना आज भी सक्रिय है . श्री मांझी अंतरराष्ट्रीय संगठन के मध्य प्रदेश का प्रांतीय संरक्षक आरएस ठाकुर ने बताया आदिवासियों के विवादों को मांझी सरकार के द्वारा शांतिपूर्ण ढंग से सुनवाई की जाती है और उनका समाधान किया जाता है.
मांझी सैनिकों का ये है काम
मांझी सेना के अध्यक्ष बलराम उईके का कहना है कि आदिवासी गांवों से आने वाले विवादों में हम लोग खुद ही निपटारा कर देते हैं. ऐसे में रोगों को कोर्ट नहीं जाना पड़ता है. जबकि, मांझी सेना के सचिव सुमंण लाल ने कहा कि 10-10 मांझ सैनिकों की टीम बनी हुई है. गर्मी के मौसम में यदि जंगल के अंदर आग लग जाती है, तो हम लोग खुद ही बुझा देते हैं. इससे जंगल को नुकसान नहीं पहुंचता है. साथ ही जंगली जानवरों को शिकारियों से भी बचातें हैं. घायल जानवरों को इलाज किया जाता है.
रिपोर्ट- धर्मेंद्र सिंह