किसानों के लिए काला सोना! जानें कैसे अफीम की खेती से किसान कमा सकते हैं लाखों, समझें पूरा प्रोसेस!

Afeem Ki Kheti: अफीम की खेती… सुनने में जितनी रहस्यमयी लगती है, हकीकत में उतनी ही सख्त और मुनाफेदार भी है. इसे “काला सोना” कहा जाता है, क्योंकि अगर सही तरीके से की जाए तो यह किसानों को करोड़ों का मुनाफा दिला सकती है. लेकिन इसकी राह आसान नहीं हर बीज, हर इंच जमीन और हर बूंद रस सरकारी निगरानी में होती है. लाइसेंस से लेकर कटाई तक की हर प्रक्रिया नियमों से बंधी होती है. ऐसे में आइए जानते हैं आखिर अफीम की खेती क्यों इतनी खास है और कैसे बनती है ये देश की सबसे नियंत्रित लेकिन फायदेमंद फसल.

Isha Gupta
नोएडा | Updated On: 6 Oct, 2025 | 01:02 PM
1 / 7Afeem Ki Kheti: अफीम की खेती कोई आम फसल नहीं है. इसके लिए केंद्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो से लाइसेंस लेना अनिवार्य है और किसान केवल उतनी ही जमीन पर खेती कर सकते हैं जितनी की अनुमति मिली हो.

Afeem Ki Kheti: अफीम की खेती कोई आम फसल नहीं है. इसके लिए केंद्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो से लाइसेंस लेना अनिवार्य है और किसान केवल उतनी ही जमीन पर खेती कर सकते हैं जितनी की अनुमति मिली हो.

2 / 7Afeem Ki Kheti Ke Liye License: अफीम की खेती के लिए वित्त मंत्रालय द्वारा जारी लाइसेंस अनिवार्य है और यह हर जगह नहीं मिलता. सरकार यह तय करती है कि किस किसान को और कितनी जमीन पर खेती करने की अनुमति होगी. लाइसेंस मिलने पर ही नारकोटिक्स विभाग से बीज उपलब्ध कराए जाते हैं (विस्तार व शर्तें क्राइम ब्यूरो ऑफ नारकोटिक्स की वेबसाइट पर देखें).

Afeem Ki Kheti Ke Liye License: अफीम की खेती के लिए वित्त मंत्रालय द्वारा जारी लाइसेंस अनिवार्य है और यह हर जगह नहीं मिलता. सरकार यह तय करती है कि किस किसान को और कितनी जमीन पर खेती करने की अनुमति होगी. लाइसेंस मिलने पर ही नारकोटिक्स विभाग से बीज उपलब्ध कराए जाते हैं (विस्तार व शर्तें क्राइम ब्यूरो ऑफ नारकोटिक्स की वेबसाइट पर देखें).

3 / 7Opium Cultivation: अफीम की पैदावार मिट्टी और जलवायु पर निर्भर करती है. बुवाई अक्टूबर-नवंबर में होती है, जब मौसम ठंडा और नमी वाला होता है. इससे पौधों की वृद्धि बेहतर होती है.

Opium Cultivation: अफीम की पैदावार मिट्टी और जलवायु पर निर्भर करती है. बुवाई अक्टूबर-नवंबर में होती है, जब मौसम ठंडा और नमी वाला होता है. इससे पौधों की वृद्धि बेहतर होती है.

4 / 7Opium Variety: जवाहर अफीम-539, जवाहर अफीम-16 और जवाहर अफीम-540 जैसी किस्में ज्यादा उत्पादन देती हैं. एक एकड़ में 2 किलो बीज लगते हैं और पौधों के बीच 30 सेंटीमीटर की दूरी रखनी चाहिए.

Opium Variety: जवाहर अफीम-539, जवाहर अफीम-16 और जवाहर अफीम-540 जैसी किस्में ज्यादा उत्पादन देती हैं. एक एकड़ में 2 किलो बीज लगते हैं और पौधों के बीच 30 सेंटीमीटर की दूरी रखनी चाहिए.

5 / 7Opium Cultivation Rules: अफीम बोने से पहले किसान को नारकोटिक्स विभाग को सूचना देनी होती है. अधिकारी मौके पर पहुंचकर खेत का निरीक्षण करते हैं और फिर खेती की अनुमति दी जाती है.

Opium Cultivation Rules: अफीम बोने से पहले किसान को नारकोटिक्स विभाग को सूचना देनी होती है. अधिकारी मौके पर पहुंचकर खेत का निरीक्षण करते हैं और फिर खेती की अनुमति दी जाती है.

6 / 7Opium Cultivation In India: यह फसल मुनाफेदार जरूर है, लेकिन कीट और रोगों से बहुत जल्दी प्रभावित होती है. इसलिए रोजाना खेत की निगरानी और हर 8-10 दिन में कीटनाशक छिड़काव जरूरी होता है.

Opium Cultivation In India: यह फसल मुनाफेदार जरूर है, लेकिन कीट और रोगों से बहुत जल्दी प्रभावित होती है. इसलिए रोजाना खेत की निगरानी और हर 8-10 दिन में कीटनाशक छिड़काव जरूरी होता है.

7 / 7Opium Farming: बीज बोने के करीब 100 दिन बाद पौधे पर डोडे आते हैं. इनमें चीरा लगाकर निकलने वाला तरल पदार्थ ही अफीम होता है, जिसे सुबह सूरज निकलने से पहले इकट्ठा किया जाता है.

Opium Farming: बीज बोने के करीब 100 दिन बाद पौधे पर डोडे आते हैं. इनमें चीरा लगाकर निकलने वाला तरल पदार्थ ही अफीम होता है, जिसे सुबह सूरज निकलने से पहले इकट्ठा किया जाता है.

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Published: 6 Oct, 2025 | 12:57 PM

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