आक का सफेद दूध आयुर्वेद में स्किन प्रॉब्लम्स जैसे दाद, खाज और एक्जिमा के लिए बेहद असरदार माना गया है. इसे प्रभावित स्थान पर लेप के रूप में लगाने से जलन और खुजली में राहत मिलती है. इसके एंटीसेप्टिक गुण त्वचा को संक्रमण से बचाते हैं.
गठिया, जोड़ों के दर्द या पीठ दर्द में आक की पत्तियों का उपयोग पारंपरिक घरेलू उपायों में लंबे समय से होता रहा है. इसकी पत्तियों को गरम करके सरसों के तेल में भिगोकर लगाने से सूजन और दर्द में आराम मिलता है. यह नसों की जकड़न भी कम करता है.
ग्रामीण और पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों में आक को विषहर औषधि के रूप में भी जाना जाता है. आक के दूध का उपयोग सांप या बिच्छू के काटने पर विष के असर को कम करने के लिए किया जाता है. हालांकि यह उपचार केवल अनुभवी आयुर्वेदाचार्य की देखरेख में ही किया जाना चाहिए.
आक की जड़ और पत्तियों का प्रयोग पेट से जुड़ी समस्याओं में जैसे गैस, कब्ज, पेट दर्द और अपच में उपयोगी होता है. यह पाचन शक्ति को मजबूत करने में मदद करता है. आयुर्वेद में इसके अर्क या चूर्ण का सीमित और नियंत्रित सेवन किया जाता है.
आक की पत्तियों का काढ़ा बनाकर पीने से वायरल बुखार, सर्दी-जुकाम और खांसी में राहत मिलती है. यह शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है और रोगों से लड़ने की ताकत देता है. इसका नियमित सेवन केवल विशेषज्ञ की सलाह पर ही करना चाहिए.
सावन के महीने में आक का पौधा भगवान शिव को चढ़ाने के लिए विशेष महत्व रखता है. इसे भगवान शिव का प्रिय वृक्ष माना जाता है. मान्यता है कि इसकी पूजा से मनोकामनाएं पूरी होती हैं. साथ ही इसके वैज्ञानिक लाभ इसे पूजा और औषधि दोनों दृष्टिकोण से अनमोल बनाते हैं. (इस खबर में दी गई जानकारी केवल सामान्य ज्ञान पर आधारित है.)