कंपनियों का कहना है कि A2 घी A1 घी की तुलना में अधिक सुपाच्य है और शरीर में सूजन को कम करता है. लेकिन नेशनल एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज के अनुसार, इस दावे को साबित करने वाले कोई ठोस वैज्ञानिक प्रमाण अभी तक मौजूद नहीं हैं.
A2 प्रोटीन की बात करके कंपनियां प्रोडक्ट को हेल्दी बताने की कोशिश करती हैं, जबकि हकीकत यह है कि घी लगभग 99.5% फैट होता है. ऐसे में प्रोटीन की मौजूदगी नाम के बराबर होती है, जिससे A2 या A1 का फर्क सेहत पर असर नहीं डालता.
A2 लेबल लगाकर वही घी जो सामान्य तौर पर ₹600-₹1000 प्रति किलो मिलता है, ₹2000-₹3000 तक बेचा जा रहा है. विशेषज्ञ इसे सिर्फ लोगों को भ्रमित करने की रणनीति मानते हैं.
भारत की फूड सेफ्टी अथॉरिटी FSSAI ने A1 और A2 लेबलिंग को फूड सेफ्टी एक्ट, 2006 का उल्लंघन बताया था और कंपनियों को ऐसी लेबलिंग से मना किया था. हालांकि बाद में यह एडवाइजरी हटा ली गई, लेकिन ये भ्रम अभी भी कायम है.
कंपनियां पारंपरिक विधि और आयुर्वेदिक गुणों का हवाला देती हैं, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि आयुर्वेदिक ग्रंथों में A2 घी को लेकर कोई स्पष्ट या खास उल्लेख नहीं है. यह दावा भी मार्केटिंग का हिस्सा हो सकता है.
चाहे वह A1 हो या A2, घी शरीर के लिए उपयोगी फैट और विटामिन A, D, E, K का स्रोत है. लेकिन अगर इसका सेवन जरूरत से ज्यादा किया जाए, तो यह मोटापा, कोलेस्ट्रॉल और हृदय संबंधी बीमारियों का कारण बन सकता है.