कुछ साल पहले तक जो बिहार केला उत्पादन में पीछे माना जाता था, आज वह पूरे देश में मिसाल बनता जा रहा है. एक वक्त था जब यहां प्रति हेक्टेयर सिर्फ 20 मीट्रिक टन केला पैदा होता था, लेकिन अब यही आंकड़ा 45 मीट्रिक टन तक पहुंच गया है. यानी 125 फीसदी की जबरदस्त बढ़ोतरी. यह केवल एक आंकड़ा नहीं, बल्कि किसानों की मेहनत, सरकार की योजनाएं और वैज्ञानिक तकनीकों के मेल का नतीजा है, जिसने केले की खेती को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया है.
11 साल में तीन गुना बढ़ा केला उत्पादन
बिहार में साल 2004-05 में जहां केवल 5.45 लाख मीट्रिक टन केला पैदा होता था, वहीं 2022-23 में यह बढ़कर 19.68 लाख मीट्रिक टन तक पहुंच गया. इसी दौरान केले की खेती का कुल रकबा भी 27,200 हेक्टेयर से बढ़कर 42,900 हेक्टेयर हो गया. इस तरह रकबे में 58 फीसदी, उत्पादन में 261 फीसदी और उत्पादकता में 125 फीसदी की बढ़त दर्ज हुई है.
टिश्यू कल्चर और कृषि रोडमैप ने बदली तस्वीर
बिहार सरकार के कृषि रोडमैप और वैज्ञानिक तकनीक जैसे टिश्यू कल्चर ने किसानों को नई राह दिखाई. जी-9, मालभोग और चीनिया जैसे रोगमुक्त पौधे प्रयोगशाला में तैयार किए जाते हैं, जिससे खेती अधिक उपजाऊ और टिकाऊ बनती है. इससे प्रति हेक्टेयर उपज में बड़ा इजाफा हुआ है.
किसानों को मिला सीधा फायदा
बिहार सरकार की फल विकास योजना के तहत टिश्यू कल्चर से केले की खेती करने वाले किसानों को प्रति हेक्टेयर 1.25 लाख रुपये की लागत पर 50 फीसदी यानी 62,500 रुपये की सब्सिडी मिलती है. 2024-25 में अब तक 3,624 किसानों को इस योजना का लाभ मिल चुका है. इसका असर यह हुआ है कि किसान अब अच्छी उपज से बेहतर मुनाफा कमा रहे हैं.
क्या है टिश्यू कल्चर?
टिश्यू कल्चर एक वैज्ञानिक विधि है, जिसमें पौधे की कोशिकाओं को लैब में पोषक माध्यम पर उगाया जाता है. इससे जो पौधे तैयार होते हैं, वे एकसमान, रोगमुक्त और ज्यादा पैदावार देने वाले होते हैं. पारंपरिक तरीकों की तुलना में इससे उपज और गुणवत्ता दोनों बेहतर होती हैं.
अगर आप भी खेती से जुड़े हैं और केले की खेती करने की सोच रहे हैं, तो यह समय बिल्कुल सही है. वैज्ञानिक तकनीकों और सरकार की मदद से आप भी इस क्रांति का हिस्सा बन सकते हैं.