नारियल की कमी से संकट में तेल उद्योग, आयात की तैयारी में निर्माता

इस संकट ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि कृषि और जलवायु आपस में कितने गहराई से जुड़े हुए हैं, और अगर समय रहते कदम न उठाए जाएं, तो इसका असर देश की अर्थव्यवस्था और लोगों की जेब दोनों पर पड़ सकता है.

नई दिल्ली | Published: 22 May, 2025 | 08:49 AM

भारत में नारियल और सूखे नारियल (कोपरा) की भारी कमी के कारण नारियल तेल उद्योग मुश्किल दौर से गुजर रहा है. नारियल तेल निर्माता अब इस संकट से उबरने के लिए विदेशों से नारियल और कोपरा आयात करने की अनुमति मांगने की तैयारी में हैं.

तेजी से घट रही आपूर्ति, 35 फीसदी तक की कमी

उद्योग से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि इस समय भारत में नारियल और कोपरा की उपलब्धता में करीब 30-35 प्रतिशत की कमी दर्ज की जा रही है और यह स्थिति दिन-ब-दिन और गंभीर होती जा रही है. इस कारण नारियल तेल की कीमतें भी तेजी से बढ़ रही हैं, जिससे उपभोक्ताओं और कारोबारियों दोनों पर असर पड़ा है.

जलवायु परिवर्तन ने बिगाड़ा संतुलन

अधिकारियों का कहना है कि इस संकट के पीछे ग्लोबल क्लाइमेट चेंज एक बड़ी वजह है. मौसम में आए बदलाव और असमय बारिश या सूखे ने नारियल की फसल को गंभीर नुकसान पहुंचाया है. इससे उत्पादन घटा है और मांग-आपूर्ति का संतुलन बिगड़ गया है.

आयात से मिलेगी राहत?

कोचीन ऑयल मर्चेंट्स एसोसिएशन (COMA) के अध्यक्ष थलाथ महमूद ने मीडिया को बताया कि उद्योग से जुड़े लोग अब केंद्र सरकार से आयात प्रतिबंधों में ढील की मांग करेंगे, ताकि इंडोनेशिया, फिलीपींस और श्रीलंका जैसे देशों से नारियल और कोपरा आयात किया जा सके.

उन्होंने कहा, “घरेलू उत्पादन मांग को पूरा नहीं कर पा रहा है, ऐसे में अंतरराष्ट्रीय बाजार से मदद लेना जरूरी हो गया है. अगर जल्द कोई कदम नहीं उठाया गया, तो कई छोटी तेल इकाइयों को ताले लगाने पड़ सकते हैं.”

उद्योग पर संकट, रोजगार पर असर

इस संकट का असर केवल उत्पादन और कीमतों पर ही नहीं, बल्कि लाखों मजदूरों और किसानों की आजीविका पर भी पड़ रहा है. कोपरा आधारित तेल उद्योग दक्षिण भारत के कई हिस्सों में रोजगार का अहम स्रोत है.

क्या कहती है सरकार?

फिलहाल सरकार की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन माना जा रहा है कि अगर स्थिति और बिगड़ी, तो आयात की अनुमति दी जा सकती है.

इस संकट ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि कृषि और जलवायु आपस में कितने गहराई से जुड़े हुए हैं, और अगर समय रहते कदम न उठाए जाएं, तो इसका असर देश की अर्थव्यवस्था और लोगों की जेब दोनों पर पड़ सकता है.