जुलाई 2025 की शुरुआत के साथ ही देश के किसानों के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया- जब बारिश भरोसेमंद नहीं रही, तो खेती कैसे टिकेगी? इस बार की बारिश ने किसानों की सोच, नीति-निर्माताओं की रणनीति और तकनीक की उपयोगिता, सबकी परीक्षा ले ली. ऐसा इसलिए भी जरूरी हो गया क्योंकि जुलाई में भारत की औसत बारिश सामान्य से 8 फीसदी कम रही, जिससे 60 मिलियन हेक्टेयर से अधिक कृषि भूमि प्रभावित हुई.
फार्मोनॉट की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2024 में भारत में सस्टेनेबल खेती को लेकर जो कोशिशें शुरू हुई थीं, वे 2025 में और तेज हो गईं. अब बात सिर्फ उपज बढ़ाने की नहीं रही, बल्कि बदलते मौसम के साथ जूझने, मौसम-लचीली खेती अपनाने और खेत को जलवायु के अनुकूल ढालने की हो रही है.
ऐसे समय में यह समझना जरूरी है कि कौन से क्षेत्र किस तरह की जलवायु मार झेल रहे हैं, किन फसलों पर असर पड़ा है और किसान क्या उपाय कर रहे हैं- ताकि खेती बची रहे और किसान भी.
कहीं बारिश ज्यादा, कहीं कम?
पश्चिम बंगाल और ओडिशा: इन राज्यों में भारी बारिश ने धान की खेती को मुश्किल में डाल दिया. पानी भरने से खेत जलमग्न हो गए और बुवाई में देरी हुई.
महाराष्ट्र और कर्नाटक: यहां मानसून ने धोखा दे दिया. 35 फीसदी से ज्यादा बारिश कम हुई, जिससे दालों, मूंगफली और तिलहन की फसलों पर असर पड़ा.
हरियाणा, पंजाब और यूपी: यहां गर्मी और अनियमित बारिश ने मक्का, सोयाबीन और कपास जैसी फसलों को झटका दिया.
किसानों के लिए अब तकनीक बना हथियार
AI और सैटेलाइट टेक्नोलॉजी अब सीधे खेतों में पहुंच चुकी है. जैसे:
- कई सरकारी ऐप्स किसानों को खेत की मिट्टी में नमी, पौधों की सेहत और मौसम की जानकारी रियल टाइम में दे रहे हैं.
- ड्रोन कैमरे खेतों की निगरानी कर रहे हैं, कहां सूखा है, कहां ज्यादा पानी- सब कुछ ऑटोमैटिक मैपिंग से सामने आ रहा है.
- AI सलाहकार सेवाएं किसानों को बता रही हैं कि कब बीज बोना है, कब खाद डालनी है और कब पानी देना है.
- नई बीज किस्में जो गर्मी, कम बारिश और मिट्टी के खारेपन को सहन कर सकें, तेजी से अपनाई जा रही हैं.
सरकार की तरफ से भी बदलाव की कोशिशें तेज
बदलते मौसम के खतरे को देखते हुए सरकार की तरफ से भी खेती को टिकाऊ बनाने के लिए कई अहम सुधार किए जा रहे हैं. क्लाइमेट स्मार्ट खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है, साथ ही आधुनिक उपकरणों और मौसम-रोधी बीजों पर सब्सिडी भी दी जा रही है ताकि वे नई चुनौतियों का सामना कर सकें.
इसके अलावा, मंडी सुधार, डिजिटल भुगतान प्रणाली और फसल बीमा योजनाएं किसानों के लिए अधिक पारदर्शी और आसान बनाई जा रही हैं, ताकि उन्हें फसल बेचने से लेकर नुकसान की भरपाई तक में भरोसेमंद व्यवस्था मिल सके.
एक और बड़ी पहल के रूप में एग्रोफॉरेस्ट्री को भी बढ़ावा दिया जा रहा है. यानी किसान अब खेतों के साथ पेड़ भी लगा रहे हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और पर्यावरण को भी सहारा मिलता है. ये सभी कदम मिलकर खेती को जलवायु के अनुकूल बनाने की दिशा में एक मजबूत नींव तैयार कर रहे हैं.
जलवायु परिवर्तन का असर
बंगाल और ओडिशा में बाढ़ से परेशान किसान
पश्चिम बंगाल और ओडिशा के किसानों को इस बार असमय और अत्यधिक बारिश का सामना करना पड़ा. लगातार बारिश और बाढ़ की वजह से धान की फसल सबसे ज्यादा प्रभावित हुई है. खेतों में पानी भरने से फसलें खराब हो रही हैं. कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को सलाह दी है कि वे धान की रोपाई ऊंचे बिस्तरों पर करें और खेतों में जल निकासी की व्यवस्था सुनिश्चित करें, ताकि फसलों को डूबने से बचाया जा सके.
महाराष्ट्र और कर्नाटक में पानी की भारी कमी
महाराष्ट्र और कर्नाटक के कुछ हिस्सों में किसान इस बार आसमान की ओर टकटकी लगाए बैठे रहे, लेकिन बारिश नहीं हुई. खासकर दालें और तिलहनों की बुवाई बुरी तरह प्रभावित हुई है. सूखे की स्थिति ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है. ऐसे हालात में कृषि विशेषज्ञों की सलाह है कि किसान सूखा-रोधी किस्मों के बीज अपनाएं और माइक्रो-इरिगेशन (सूक्ष्म सिंचाई) तकनीक का इस्तेमाल करें, जिससे कम पानी में भी फसलें बचाई जा सकें.
पंजाब और हरियाणा में तापमान और सूखे की दोहरी मार
पंजाब और हरियाणा जैसे हरित क्षेत्रों में भी इस बार मौसम ने करवट ली. तापमान बढ़ने और बारिश की कमी ने कपास और मक्के की फसलों को संकट में डाल दिया है. इन राज्यों में अब ड्रिप इरिगेशन प्रणाली को बढ़ावा दिया जा रहा है. साथ ही किसानों को मौसम आधारित सलाह और पूर्वानुमान के आधार पर कृषि निर्णय लेने के लिए प्रेरित किया जा रहा है, ताकि नुकसान को कम किया जा सके.
अब जरूरत है गुणवत्ता की खेती की सोच
बढ़ती आबादी और जलवायु परिवर्तन की चुनौती के बीच भारत के सामने अब सिर्फ ज्यादा उपज लेने का नहीं, बल्कि बेहतर गुणवत्ता वाली और स्थायी खेती का लक्ष्य है. ऐसे में जरूरी हो गया है कि खेती के हर पहलू पर गहराई से ध्यान दिया जाए. सबसे पहली जरूरत है जमीन की सेहत बनाए रखने की. इसके लिए कार्बन खेती और ऑर्गेनिक फार्मिंग जैसे उपाय अपनाने होंगे, जिससे मिट्टी की उर्वरता लंबे समय तक बनी रहे.
दूसरी अहम बात है बीजों का चयन जलवायु के अनुसार करना, ताकि फसलें मौसम की मार झेल सकें और उत्पादन में गिरावट न आए. इसके साथ ही अब वक्त है तकनीक का स्थानीय जरूरतों के मुताबिक सही उपयोग करने का. ड्रोन, सेंसर, मौसम आधारित ऐप्स और माइक्रो-इरिगेशन जैसी टेक्नोलॉजी खेती को स्मार्ट और टिकाऊ बना सकती हैं. जब किसान वैज्ञानिक सलाह और तकनीक के साथ चलेंगे, तभी देश की खाद्य सुरक्षा मजबूत होगी.