Stubble Burning: पंजाब में पराली जलाने की घटनाएं एक बार फिर बढ़ गई हैं. सोमवार को राज्य में सीजन का अब तक का सबसे बड़ा उछाल देखा गया, जब एक ही दिन में 147 नई घटनाएं सामने आईं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 15 सितंबर से अब तक कुल 890 पराली जलाने के मामले दर्ज हो चुके हैं. सबसे ज्यादा आग तरनतारण और अमृतसर जिलों में लगी है, जहां किसानों ने सरकार की अपीलों को नजरअंदाज करते हुए खेतों में पराली जलाना जारी रखा है.
तरनतारण और अमृतसर बने हॉटस्पॉट
पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (PPCB) के आंकड़ों के अनुसार, सबसे अधिक पराली जलाने के मामले तरनतारण जिले से सामने आए हैं, जहां कुल 249 घटनाएं दर्ज की गईं. इसके बाद अमृतसर में 169, फिरोजपुर में 87, संगरूर में 79, पटियाला में 46, गुरदासपुर में 41, और बठिंडा में 38 मामले दर्ज हुए हैं.
कपूरथला में 35, लुधियाना में 9, और होशियारपुर में 3 घटनाएं दर्ज की गईं. वहीं, पठानकोट और रूपनगर जिलों से अब तक पराली जलाने की कोई घटना नहीं आई है.
दिल्ली की हवा पर भी पड़ेगा असर
हर साल की तरह इस बार भी पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं से दिल्ली की हवा पर असर पड़ने की संभावना है. अक्टूबर और नवंबर में जब धान की फसल कटती है, तो किसानों के पास गेहूं बोने के लिए बहुत कम समय बचता है. इसी वजह से वे जल्दी में खेत साफ करने के लिए आग लगा देते हैं. इससे दिल्ली और एनसीआर की हवा जहरीली हो जाती है, और प्रदूषण स्तर खतरनाक श्रेणी तक पहुंच जाता है.
सरकार की सख्ती, लेकिन किसान नहीं मान रहे
राज्य सरकार ने किसानों से पराली न जलाने की बार-बार अपील की है और कई जगह जुर्माने भी लगाए हैं. पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, अब तक 386 मामलों में 19.80 लाख रुपये का पर्यावरण जुर्माना लगाया गया है, जिसमें से 13.40 लाख रुपये वसूल भी किए जा चुके हैं.
इसके अलावा, 302 एफआईआर दर्ज की गई हैं और 337 किसानों की जमीन पर रेड एंट्री कर दी गई है. रेड एंट्री का मतलब है कि अब किसान अपनी जमीन पर लोन नहीं ले सकते या उसे बेच नहीं सकते.
इतना बड़ा मुद्दा क्यों है पराली जलाना?
पंजाब में इस साल लगभग 31.72 लाख हेक्टेयर में धान की खेती हुई है, जिसमें से अक्टूबर के अंत तक करीब 60 फीसदी फसल की कटाई हो चुकी है. इतनी बड़ी मात्रा में फसल अवशेष (पराली) को निपटाना आसान नहीं है.
सरकार भले ही “हैप्पी सीडर” और “स्ट्रॉ मैनेजमेंट” मशीनें दे रही हो, लेकिन किसानों का कहना है कि ये मशीनें महंगी हैं और सब्सिडी समय पर नहीं मिलती.
कई किसान कहते हैं कि अगर सरकार पराली खरीदने या निपटाने का सीधा इंतजाम करे, तो वे आग लगाने की जरूरत ही नहीं महसूस करेंगे.
पिछले सालों की तुलना में गिरावट, लेकिन चिंता अब भी बरकरार
2024 में पंजाब में पराली जलाने की 10,909 घटनाएं दर्ज हुई थीं, जबकि 2023 में यह आंकड़ा 36,663 था. यानी पिछले साल की तुलना में करीब 70 फीसदी कमी देखी गई.
हालांकि, इस बार शुरुआती दिनों में ही बढ़ती घटनाओं से प्रशासन फिर से सतर्क हो गया है. राज्य सरकार का कहना है कि जो भी किसान पराली जलाते पकड़े जाएंगे, उन पर सख्त कार्रवाई की जाएगी.
कब थमेगी यह ‘धुएं की जंग’?
पंजाब में पराली जलाने की समस्या कोई नई नहीं है. हर साल यह मुद्दा उठता है, लेकिन समाधान अधूरा रह जाता है. किसानों की मजबूरी, मशीनों की कमी, और वैकल्पिक समाधान की धीमी रफ्तार, ये सब मिलकर इस समस्या को और गहरा बना देते हैं.
अब देखना यह होगा कि इस बार सरकार की सख्ती और किसानों के सहयोग से क्या पंजाब इस ‘धुएं की जंग’ को जीत पाएगा या नहीं.