पद्मश्री बाबूलाल दहिया का अनोखा म्यूजियम, सहेज रखे 300 से ज्यादा पुराने कृषि औजार

मध्य प्रदेश के सतना जिले के पद्मश्री सम्मानित किसान बाबूलाल दहिया ने अपने घर को कृषि विरासत का संग्रहालय बना दिया है. यह म्यूजियम खेती-किसानी की इतिहास को जीवित रखने का प्रयास है.

नोएडा | Published: 3 Jul, 2025 | 11:54 AM

मध्य प्रदेश के सतना जिले के एक बुजुर्ग किसान ने खेती-किसानी की विरासत को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए एक मिसाल कायम की है. पद्मश्री सम्मान से नवाजे गए बाबूलाल दहिया ने अपने ही घर को एक अनोखे संग्रहालय में बदल दिया है, जहां पुराने समय में इस्तेमाल होने वाले 300 से ज्यादा कृषि औजार, देशी बीज और अस्त्र-शस्त्र सहेजकर रखे गए हैं. उनके इस संग्रहालय को देखने देश-विदेश से लोग पहुंचते हैं.

घर बना विरासत का म्यूजियम

सतना जिले के पिथौराबाद गांव निवासी बाबूलाल दहिया ने अपने घर की ऊपरी मंजिल पर तीन कमरों में यह खास संग्रहालय तैयार किया है. इसमें उन्होंने पुराने, अब उपयोग से बाहर हो चुके कृषि औजारों को संभालकर रखा है. इनमें हल, जुआ, खुरपी, मिट्टी काटने वाले यंत्र, लकड़ी के बर्तन और कई देसी उपकरण शामिल हैं. यह म्यूजियम न सिर्फ अतीत की खेती की झलक दिखाता है, बल्कि नई पीढ़ी को भी उसकी जड़ों से जोड़ने का काम कर रहा है.

Babulal Dahiya museum

बाबूलाल दहिया संग्रहालय

संग्रहालय में किसानों के लिए मौजूद है अस्त्र-शस्त्र

बाबूलाल दहिया के संग्रहालय की एक खास बात यह है कि इसमें सिर्फ खेती के औजार ही नहीं, बल्कि खेत में काम करने वाले किसानों की सुरक्षा में इस्तेमाल होने वाले पारंपरिक हथियार भी मौजूद हैं. इनमें बरछी, गड़ासा, बल्लम, तलवार, फरसा और गुप्ती जैसी चीजें रखी गई हैं. वे बताते हैं कि पहले किसान रातभर खेतों में रहते थे और जंगली जानवरों से फसल की रखवाली करते थे, ऐसे में आत्मरक्षा के लिए ये हथियार जरूरी होते थे.

देशी बीजों का भी किया संरक्षण

बाबूलाल दहिया सिर्फ औजारों को ही नहीं, बल्कि देशी धान और मोटे गेहूं के बीजों को भी संरक्षित कर रहे हैं. उन्होंने वर्षों से ऐसे बीजों को इकट्ठा कर रखा है जो अब बाजार में नहीं मिलते. उनका उद्देश्य है कि जैव विविधता बनी रहे और किसान फिर से परंपरागत बीजों की ओर लौटें, जो कम लागत में उगते हैं और स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी होते हैं.

पर्यटक और छात्र ले रहे प्रेरणा

बाबूलाल दहिया का यह संग्रहालय अब सिर्फ गांव या जिले तक सीमित नहीं है. दूर-दराज से छात्र, किसान और शोधकर्ता यहां आते हैं. यहां तक कि विदेशी पर्यटक भी इस देसी विरासत को देखने आते हैं. 82 वर्ष की उम्र में भी बाबूलाल दहिया पूरी ऊर्जा के साथ इस कार्य को आगे बढ़ा रहे हैं. वे एक कवि भी हैं और अपने अनुभवों को कविता के माध्यम से भी साझा करते हैं.