देशभर के कृषि विश्नविद्यालयों और उनमें पढ़ाने वाले कृषि वैज्ञानिकों का उद्देश्य यही रहता है कि वे किस तरह देश के कृषि क्षेत्र में क्रांति लाएं और किसानों को सीधे तौर पर मदद पहुंचाएं. अब इसी कड़ी में उत्तराखंड के गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, पंतनगर के वैज्ञानिकों ने बड़ी उपलब्धि हासिल की है. दरअसल, इन वैज्ञानिकों ने एक ऐसी प्लास्टिक बनाई है जो कि बैकटीरिया से लड़ने में सक्षम है. बता दें कि, इस प्लास्टिक के निर्माण से स्वास्थय और खाद्यान्न क्षेत्र में होने वाले प्लास्टिक उपकरणों को सुरक्षित किया जा सकेगा.
10 साल के शोध के बाद मिली सफलता
गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, पंतनगर विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय में रसायन विज्ञान विभाग के प्राध्यापक और उनकी टीम ने करीब 10 साल का गहन शोध किया. इन 10 सालों के शोध और मेहनत का ही नतीजा है कि वे इस तरह की प्लास्टिक को विकिसित कर आए. बता दें कि, वैज्ञानिकों द्वारा बनाई गई इस प्लास्टिक की सबसे खास बात ये भी हगै कि ये प्लास्टिक पानी के संपर्क में आने के बाद भी 72 घंटे तक बैक्टीरिया से लड़ने की क्षमता रखता है. यानी कि, ये प्लास्टिक बैक्टीरिया से संक्रमित नहीं होता और आसपास की चीजों को भी सुरक्षित रखता है.

छात्रों को जानकरी देते हुए वैज्ञानिक (Photo Credit- Canva )
इंसानों की सेहत के लिए फायदेमंद
पंतनगर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा बनाई गई इस प्लास्टिक की एक खासियत ये भी है कि इसको बनाने में किसी भी तरही को कार्बनिक रसायनों (केमिकल्स) का इस्तेमाल नहीं किया गया है . जिसके कारण पर्यावरण को भी सुरक्षित रखा जा सकता है. बता दें कि, ये प्लास्टिक व्यापर करने के लिहाज से बहुत काम की चीज साबित हो सकती है. क्योंकि इस प्लास्टिक को बनाने में बेहद ही सरल तकनीक का इस्तेमाल किया गया है, साथ ही इंसानों की सेहत के लिए भी फायदेमंद साबित होगी.
सरकार से मिला पेटेंट
समाचार एजेंसी प्रसार भारती के अनुसार, विश्वविद्यालय के कुलपति ने बताया कि इस तकनीक के इस्तेमाल के लिए उन्हें भारत सरकार की एक परियोजना के तहत 36 लाख रुपये दिए गए थे. उन्होंने बताया कि साल 2023 मे भारत सरकार द्वारा इस प्लास्टिक को पेटेंट मिल चुका है. उन्होंने आगे शोध कार्य को एक बड़ी वैज्ञानिक उपलब्धि बताया और शोध करने वाली शोध टीम को बधाई भी दी. उनका मानना है कि यह प्लास्टिक भविष्य में स्वास्थ्य क्षेत्र, खाद्य पैकेजिंग, पानी की बोतलों और घरेलू उपयोग की वस्तुओं में इस्तेमाल की जाएगी. बता दें कि , इस तकनीक की मदद से ऐसे उपकरण बनाए जा सकेंगे जो बैक्टीरिया और अन्य सूक्ष्म जीवों से बचाव करने में कारगर साबित होगा.