तमिलनाडु में धान की खेती करने वाले किसानों के लिए बड़ी खबर है. कृषि विशेषज्ञों की एक समिति ने राज्य सरकार से सिफारिश की है कि वह किसानों को धान की खेती में मदद करने के लिए गाइडेंस दें. एक्सपर्ट ने अपनी सिफारिशों में जोर दिया कि उपलब्ध भूजल संसाधनों का सही इस्तेमाल कर कम से कम 4 लाख एकड़ में कुरुवई फसल की खेती होनी चाहिए. लेकिन इस खरीफ सीजन के दौरान प्रदेश के जलाशयों में जरूरत से काफी कम पानी बचा है. ऐसे में जल सकंट खड़ा हो सकता है.
विशेषज्ञों ने चेतावनी दी कि खेती के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए कम से कम 330 हजार मिलियन क्यूबिक फीट (टीएमसी) पानी की जरूरत होगी. फिलहाल जलाशयों में सिर्फ 76 टीएमसी पानी है, जिसमें से सिंचाई के लिए केवल 70 टीएमसी ही उपयोगी है. इस स्थिति को देखते हुए, उन्होंने राज्य सरकार से अपील की कि वह कर्नाटक से अंतर-राज्यीय समझौते के तहत तमिलनाडु के हिस्से का 167.25 टीएमसी पानी दिलाने के लिए जरूरी कदम उठाए.
नहरों की सफाई बहुत जरूरी
इसके अलावा, विशेषज्ञों की समिति ने C और D नहरों और उनसे जुड़ी शाखा नहरों की सफाई को जल्द पूरा करने की जरूरत बताई, ताकि पानी बिना रुकावट आखिरी सिरों तक आसानी से पहुंच सके. उन्होंने कहा कि अगर नहरों की समय पर सफाई, तय समय पर पानी की आपूर्ति और फसलों की समझदारी से योजना बनाई जाए, तो इस बार की खेती में अच्छी पैदावार मिल सकती है.
30 जून तक कर सकते हैं नर्सरी की बुवाई
समिति ने यह भी जोर दिया कि जलवायु में आ रहे बदलावों से निपटने और राज्य में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए किसानों को जागरूक करना, पानी का समझदारी से उपयोग करना और सभी विभागों का तालमेल बेहद जरूरी है. पूर्वोत्तर मॉनसून के दौरान फसलों को संभावित नुकसान से बचाने के लिए विशेषज्ञों ने सलाह दी कि कुरुवई की नर्सरी की बुवाई 30 जून तक और सांबा की बुवाई 15 अगस्त तक पूरी कर ली जाए.
किसानों को सही सलाह और समर्थन की जरूरत
समिति ने कहा कि अगर किसानों को सही सलाह और समर्थन दिया जाए, तो इसका पूरा फायदा उठाया जा सकता है. इस समिति में पी. कलैवन्नन, पी. वेंकटेशन, वी. पलानीअप्पन और वी. कलियामूर्ति शामिल हैं. उन्होंने सरकार के उस फैसले का स्वागत किया, जिसमें मेट्टूर डैम से 12 जून से पानी छोड़े जाने की घोषणा की गई है.