आमों का राजा है यह आम, 1300 रुपये दर्जन है रेट.. 1575 में पुर्तगाली पादरी ने नाम दिया अल्फांसो

अल्फांसो आम, जिसे हापुस भी कहते हैं, भारत का खास फल है और आमों का राजा माना जाता है. मुख्य रूप से रत्नागिरी, देवगढ़ और सिंधुदुर्ग में उगाया जाता है. इसका स्वाद मीठा और रसीला होता है. अल्फांसो आम जीआई टैग प्राप्त है और भारत से यूरोप में निर्यात होता है.

नोएडा | Published: 21 Dec, 2025 | 04:32 PM

Alphonso Mango: आम फलों का राजा है. ये कहावत सभी लोग जानते हैं. लेकिन क्या किसी को मालूम है कि आमों का राजा कौन है. अगर नहीं मालूम है तो आज  जान लीजिए. ही जहां आमों का राज अल्फांसो है, जिसे पश्चिम भारत में ‘हापुस’ के नाम से जाना जाता है. इसे अक्सर ‘आमों का राजा’ कहा जाता है. इसके बावजूद भी बहुत कम लोगों को इस आम की खासियत के बारे में जानकारी है. कहा जाता है कि यह खास आम इसलिए विकसित किया गया था ताकि इसे आसानी से काटकर सीधे टेबल पर परोसा जा सके. ऐसे कहा जाता है कि अल्फांसो आम का नाम पुर्तगाली वाइसराय अल्फोंसो डी अल्बुकर्क से लिया गया, जिन्होंने गोवा पर कब्जा किया और एशिया में पुर्तगाली साम्राज्य की नींव रखी.

आम को वैज्ञानिक रूप से ‘मैंगिफेरा इंडिका’ कहा जाता है. आम भारत का मूल फल है और इसका इतिहास हजारों साल पुराना है. हालांकि उपनिषदों, मौर्य शिलालेखों और मुगल इतिहास में आम का जिक्र मिलता है. हालांकि, अल्फांसो आम को 15वीं सदी में पुर्तगालियों के आने के बाद विकसित किया गया. लेकिन जब पुर्तगालियों ने आमों को यूरोप भेजना शुरू किया, तो उन्हें ऐसे आम चाहिए थे जो सीधे टेबल पर परोसे जा सकें. ऐसे में 1550 से 1575 ईस्वी के बीच गोवा में जेसुइट पादरी सबसे पहले आम के पौधों पर प्रयोग और ग्राफ्टिंग  करने की शुरुआत की. इस दौरान कई नई किस्में विकसित हुईं और उन्हें पुर्तगाली नाम दिए गए, जैसे अल्फांसो, पेरेस, रेबेलो, फर्नांदिना, फिलिपिना, एंटोनियो आदि. इनमें से कई किस्में अब खो गई हैं, लेकिन अल्फांसो आज भी बहुत लोकप्रिय है.

1300 रुपये दर्जन है रेट

ऐसे भारत में करीब डेढ़ हजार से ज्यादा आम की प्रजातियां हैं, जिनमें अल्फांसो  सबसे खास है. यही वजह है कि इसे आमों का राजा कहा जाता है. इसका स्वाद इतना लाजवाब है कि दुनिया भर के लोग इसके दीवाने हैं. अप्रैल-मई में ये आम ताजगी और रस से भरपूर होकर बाजार में आता है. खुदरा बाजार में इसकी कीमत लगभग 1000-1300 रुपये प्रति दर्जन होती है. इसका स्वाद इतना खास है कि एक आम खाने के बाद दूसरा खाए बिना रहना मुश्किल हो जाता है.

5 साल में तैयार हो जाता है पेड़

अल्फांसो आम का छिलका पीला होता है और इसका स्वाद बहुत रसीला होता है. यह आम नरम और कोमल होता है. इनमें रेशे नहीं होते और जब पूरी तरह पक जाता है तो छिलका आसानी से अलग हो जाता है. पकने के बाद इसे एक हफ्ते के अंदर खाना सबसे अच्छा होता है, तभी इसका स्वाद बना रहता है. अल्फांसो आम के पेड़ से अंकुर निकलने से लेकर फल पकने तक का समय लगभग 5-8 साल होता है और फल उगने में 3 से 5 महीने लगते हैं.

एक फल का वजन 300 ग्राम

अल्फांसो आम बहुत फायदेमंद होता है. इसमें पाचन के लिए मददगार एंजाइम और पोटैशियम व मैग्नीशियम  प्रचुर मात्रा में होते हैं. यह बेहद मीठा होने के बावजूद फैट में बहुत कम (1 फीसदी से भी कम) होता है. इसलिए इसे खाने से वजन नहीं बढ़ता. अल्फांसो आम मुख्य रूप से रत्नागिरी में उगाया जाता है. ऐसे इसकी सबसे अच्छी पैदावार  समुन्द्र के आसपास के इलाकों में होती है. ऐसे एक आम का वजन 150 से 300 ग्राम के बीच होता है. खास बात यह है कि अल्फांसो आम को जीआई टैग भी मिल चुका है और भारत से इसका सबसे ज्यादा निर्यात यूरोप में होता है.

एक पेड़ से 200 किलो तक उत्पादन

अल्फांसो आम मुख्य रूप से महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र- रत्नागिरी, देवगढ़, सिंधुदुर्ग और आसपास के इलाकों में उगाया जाता है. इसके अलावा गुजरात के वलसाड व नवसारी जिलों में भी इसकी खेती होती है. रत्नागिरी में सबसे अच्छी गुणवत्ता वाला आम मिलता है. हालांकि, कर्नाटक के कुछ हिस्सों में भी किसान अल्फांसो उगते हैं. अगर उत्पादन की बात करें तो एक पेड़ से औसतन 20-200 किलोग्राम आम मिलते हैं, लेकिन पेड़ की उम्र और खेती के तरीके के हिसाब से यह 200-600 किलोग्राम तक भी हो सकता है. अभी इसकी डिमांड विदेशों में खूब है.

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