चीन को पछाड़कर दुनिया का सबसे बड़ा चावल उत्पादक बना भारत, फिर भी क्यों परेशान हैं किसान?

भारत दुनिया के कुल चावल निर्यात का करीब 40 फीसदी हिस्सा करता है, इसलिए उत्पादन में कोई भी बदलाव वैश्विक बाजार को प्रभावित कर सकता है. भारत अपनी घरेलू जरूरत से कहीं ज्यादा चावल पैदा करता है, जबकि 2023 में देश की आबादी चीन को पीछे छोड़ते हुए 1.4 अरब से ज्यादा हो गई.

नोएडा | Updated On: 30 Dec, 2025 | 04:56 PM

Rice export: इस साल भारत, चीन को पछाड़कर दुनिया का सबसे बड़ा चावल उत्पादक देश बन गया. सरकार व कृषि संगठनों ने इसे किसानों की मेहनत और नीतियों की सफलता बताया है. पिछले दस साल में भारत का चावल निर्यात भी दोगुना होकर 200 लाख टन से ज्यादा पहुंच गया है. लेकिन हकीकत यह है कि कई चावल किसान खुश नहीं हैं. किसानों, अधिकारियों और कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि चावल की ज्यादा पानी मांगने वाली खेती देश के पहले से ही कमजोर भूजल स्तर को तेजी से खत्म कर रही है. हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों में जहां दस साल पहले 30 फीट पर पानी मिल जाता था, अब किसानों को 80 से 200 फीट तक बोरवेल खोदने पड़ रहे हैं. इससे लागत बढ़ रही है और किसान कर्ज में फंसते जा रहे हैं.

द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, किसानों का कहना है कि हर साल बोरवेल और गहरा करना पड़ता है, जो अब बहुत महंगा हो गया है. वहीं, सरकारी सब्सिडी  और धान पर मिलने वाला न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों को कम पानी वाली फसलों की ओर जाने से रोकता है. विशेषज्ञों के मुताबिक, नतीजा यह है कि पानी की भारी कमी झेल रहा भारत खुद किसानों को ज्यादा भूजल इस्तेमाल करने के लिए बढ़ावा दे रहा है.

पांच साल पहले देशभर में बड़े किसान आंदोलन हुए

रॉयटर्स की रिपोर्ट पर कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय और जल संसाधन मंत्रालय ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि कानूनों में सुधार की कोशिश की थी, जिसमें निजी क्षेत्र को ज्यादा खरीद के लिए बढ़ावा देने जैसे प्रावधान थे. लेकिन इससे किसानों को डर था कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य  पर अनाज खरीद कम कर देगी. इसी आशंका के चलते करीब पांच साल पहले देशभर में बड़े किसान आंदोलन हुए, जिसके बाद सरकार को कदम पीछे खींचने पड़े.

दुनिया के कुल चावल निर्यात में भारत का हिस्सा करीब 40 फीसदी

भारत दुनिया के कुल चावल निर्यात का करीब 40 फीसदी हिस्सा करता है, इसलिए उत्पादन में कोई भी बदलाव वैश्विक बाजार को प्रभावित कर सकता है. भारत अपनी घरेलू जरूरत से कहीं ज्यादा चावल पैदा करता है, जबकि 2023 में देश की आबादी चीन को पीछे छोड़ते हुए 1.4 अरब से ज्यादा हो गई. विशेषज्ञों का कहना है कि चावल के वैश्विक व्यापार में भारत की भूमिका बेहद अहम है, लेकिन यह सवाल भी उठता है कि क्या देश को इतना ज्यादा चावल उगाना और बेचना चाहिए.

किसान सतही और भूजल दोनों पर निर्भर हैं

वहीं, सिंचाई को लेकर स्थिति भी चिंता का विषय है. देश के कई हिस्सों में किसान सतही और भूजल  दोनों पर निर्भर हैं, लेकिन पंजाब और हरियाणा जैसे उत्तर भारत के प्रमुख धान उत्पादक राज्यों में किसान मुख्य रूप से भूजल पर ही निर्भर हैं, जिससे पानी की लागत और संकट लगातार बढ़ता जा रहा है. भूजल पर ज्यादा निर्भरता के कारण पंजाब और हरियाणा के धान किसान जलवायु परिवर्तन के प्रति ज्यादा संवेदनशील हो गए हैं. कमजोर मानसून होने पर एक्विफर पूरी तरह रिचार्ज नहीं हो पाते. हालांकि पिछले दो साल मानसून अच्छा रहा, लेकिन अत्यधिक पानी निकालने की वजह से हरियाणा और पंजाब के बड़े हिस्सों में भूजल स्तर को सरकार ने ‘अत्यधिक दोहन’ और ‘गंभी’ श्रेणी में रखा है.

57 फीसदी ज्यादा भूजल निकाल रहे हैं

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 2024 और 2025 में दोनों राज्य अपनी प्राकृतिक भरपाई से 35 से 57 फीसदी ज्यादा भूजल निकाल रहे हैं. हालात सुधारने के लिए 2023 में कई इलाकों में नए बोरवेल पर रोक लगा दी गई. इसके बावजूद किसान पुराने बोरवेल से पानी निकालने के लिए लंबी पाइप और ज्यादा ताकतवर पंप जैसे उपकरणों पर हर साल हजारों रुपये खर्च कर रहे हैं. 

Published: 30 Dec, 2025 | 04:50 PM

Topics: