गर्मी और क्‍लाइमेट चेंज का असर! अब चावल खेती में भी होगी गिरावट, अधिकारियों ने किया आगाह

भारत का गेहूं उत्पादन फसल वर्ष 2023-24 में 113.29 मिलियन टन तक पहुंच गया था. जबकि चावल की फसल 137 मिलियन टन से ज्‍यादा थी. लेकिन जलवायु परिवर्तन से उत्‍पादन में गिरावट आ सकती है और किफायती भोजन तक पहुंच प्रभावित होगी.

Kisan India
Noida | Updated On: 2 Mar, 2025 | 10:12 AM

क्‍लाइमेट चेंज या जलवायु परिवर्तन का असर अब गेहूं के बाद चावल के उत्‍पादन में भी देखने को मिलेगा. वरिष्‍ठ अधिकारियों की तरफ से इस बाबत एक चेतावनी दी गई है. उन्‍होंने कहा है कि जलवायु परिवर्तन के कारण भारत के चावल और गेहूं उत्पादन में छह से 10 प्रतिशत की तक गिरावट आने का अनुमान है. इससे लाखों लोगों के लिए किफायती भोजन तक पहुंच प्रभावित होगी.

बड़ी आबादी का मुख्‍य आहार

भारत का गेहूं उत्पादन फसल वर्ष 2023-24 में 113.29 मिलियन टन तक पहुंच गया था. यह आंकड़ा ग्‍लोबल प्रोडक्‍शन का करीब 14 प्रतिशत था. जबकि चावल की फसल 137 मिलियन टन से ज्‍यादा थी. चावल और गेहूं देश की 1.4 बिलियन आबादी के लिए मुख्य आहार हैं. इनमें से 80 प्रतिशत कई सरकारी योजनाओं के जरिये सप्‍लाई किए जाने वाले सब्सिडी वाले खाद्यान्न पर निर्भर हैं.

क्‍लाइमेट चेंज की वजह से घट रही पैदावार

मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्रा ने न्‍यूज एजेंसी पीटीआई को बताया, ‘क्‍लाइमेट चेंज से गेहूं और चावल दोनों की पैदावार में 6 से 10 प्रतिशत की कमी आएगी जिसका किसानों और देश की खाद्य सुरक्षा पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा.’ उन्होंने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग वेस्‍टर्न डिस्‍टर्बेंस की फ्रिक्‍वेंसी और ताकत को भी कम कर रही है. वेस्‍टर्न डिस्‍टर्बेंस भूमध्यसागरीय क्षेत्र से उभरने वाला एक वेदर सिस्‍टम है जो नॉर्थ-वेस्‍ट भारत में सर्दियों की बारिश और बर्फबारी लाती है.

पानी की होगी गंभीर कमी

वहीं अर्थ साइंस मिनिस्‍ट्री के सचिव एम रविचंद्रन ने महापात्रा से रजामंदी जताई. उन्‍होंने कहा कि इससे आने वाले समय में हिमालय और उसके नीचे के मैदानी इलाकों में रहने वाले अरबों लोगों के लिए पानी की गंभीर कमी हो सकती है. क्‍लाइमेट रिजीलियंट एग्रीकल्‍चर (जलवायु अनुकूल कृषि) में राष्‍ट्रीय इनोवेशंस (एनआईसीआरए) के अनुसार, भारत में गेहूं की पैदावार 2100 तक 6-25 प्रतिशत तक घटने का अनुमान है. सिंचित चावल की पैदावार 2050 तक 7 प्रतिशत और 2080 तक 10 प्रतिशत कम होने की उम्मीद है.

मछली पालन पर भी असर

भारत में करीब आधी आबादी कृषि पर निर्भर है. सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि 80 प्रतिशत से ज्यादा किसान छोटे और सीमांत किसान हैं. उनके पास 2 हेक्टेयर से भी कम जमीन है. रविचंद्रन ने कहा कि समुद्र का बढ़ता तापमान भी तट के पास मछली पकड़ने में कमी ला रहा है. आईएमडी के आंकड़ों के अनुसार, साल 1901 से 2018 के बीच भारत का औसत तापमान लगभग 0.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ा है. ग्‍लोबल ट्रेंड्स के अनुसार, साल 2024 भारत में 1901 के बाद से अब तक का सबसे गर्म वर्ष रहा, जिसमें औसत न्यूनतम तापमान 0.7 डिग्री सेल्सियस रहा.

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Published: 1 Mar, 2025 | 05:54 PM

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