कम दूध और कमजोर पशु? वजह चारा नहीं, पेट में छिपे परजीवी- ऐसे करें जांच

कई विशेषज्ञों का कहना है कि पशुओं के पेट, आंत और खून में रहने वाले परजीवी उनके शरीर से लगातार पोषक तत्व चूसते रहते हैं. यह प्रक्रिया इतनी धीमी होती है कि किसान अक्सर समय पर समझ नहीं पाते. परजीवी आंखों से नहीं दिखते, लेकिन उनके प्रभाव बहुत गहरे होते हैं.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 11 Dec, 2025 | 01:02 PM

livestock health: गांवों में पशुपालन करने वाले किसानों के लिए सबसे बड़ी चिंता तब होती है जब दूध देने वाले पशु अचानक कमजोर पड़ने लगते हैं. चारा अच्छा, पानी पर्याप्त और देखभाल पूरी, फिर भी दूध कम और थकान ज्यादा. कई बार किसान इसे मौसम, चारे या नस्ल की कमजोरी मानकर नजरअंदाज कर देते हैं. लेकिन सच यह है कि पशु हालातों से नहीं, बल्कि अदृश्य दुश्मन परजीवियों से लड़ रहा होता है. अच्छी बात यह है कि इससे बचाव का तरीका बेहद आसान है-गोबर की एक छोटी-सी जांच.

पशु के पेट में छिपे अदृश्य खतरे

कई विशेषज्ञों का कहना है कि पशुओं के पेट, आंत और खून में रहने वाले परजीवी उनके शरीर से लगातार पोषक तत्व चूसते रहते हैं. यह प्रक्रिया इतनी धीमी होती है कि किसान अक्सर समय पर समझ नहीं पाते. परजीवी आंखों से नहीं दिखते, लेकिन उनके प्रभाव बहुत गहरे होते हैं. धीरे-धीरे पशु का वजन कम होने लगता है, वह बार-बार बीमार पड़ता है और सबसे बड़ा असर दूध उत्पादन पर होता है. कई गंभीर मामलों में यह परजीवी जान के लिए भी खतरा बन जाते हैं.

ऐसे में गोबर की जांच पशु स्वास्थ्य के लिए अत्यंत कारगर साबित होती है. डॉक्टर इस जांच में परजीवियों के अंडे देखकर तुरंत दवा लिखते हैं. उपचार के कुछ दिनों बाद ही जानवर पहले से अधिक सक्रिय और स्वस्थ दिखाई देने लगता है.

शरीर के बाहर के भी दुश्मन कम नहीं

जुएं, पिस्सू और किलनी जैसे परजीवी पशु की त्वचा से चिपककर लगातार खून चूसते रहते हैं. इसका असर शरीर में खून की कमी, बेचैनी और लगातार खुजलाहट के रूप में दिखाई देता है. कई बार ये किलनियां टिक फीवर जैसी गंभीर बीमारी का कारण भी बन जाती हैं, जो समय पर इलाज न मिले तो जानलेवा साबित हो सकती है.

इन बाहरी परजीवियों से छुटकारा पाने के लिए बाजार में कई दवाएं उपलब्ध हैं, लेकिन बेतरतीब उपयोग खतरनाक हो सकता है. इसलिए हर दवा हमेशा पशु चिकित्सक की सलाह पर ही देनी चाहिए.

क्यों बढ़ जाती है नुकसान की संभावना?

किसान अक्सर समझते हैं कि परजीवी तो हर पशु में होते हैं, लेकिन इससे ज्यादा नुकसान नहीं होता. यही सबसे बड़ी गलती होती है. कम दूध उत्पादन, इलाज पर बढ़ता खर्च, पशु का कमजोर होना और बार-बार बीमारी, ये छोटे-छोटे नुकसान मिलकर पशुपालक की पूरी आमदनी पर सीधा असर डालते हैं. अगर हर कुछ महीने में गोबर की जांच करवा ली जाए तो परजीवियों को शुरुआत में ही खत्म किया जा सकता है और भारी नुकसान से बचा जा सकता है.

पशु को स्वस्थ रखने के आसान तरीके

स्वच्छता, समय पर जांच और डॉक्टर की सलाह, यही पशु को परजीवियों से बचाने की सबसे मजबूत ढाल है. हर 3–4 महीने में गोबर की जांच करवाना, किलनीपिस्सू दिखते ही तुरंत उपचार करना और नए आने वाले पशुओं की पहले जांच करना बेहद जरूरी है.

थोड़ी सी सतर्कता न केवल पशु को स्वस्थ रखती है, बल्कि किसान की आय भी सुरक्षित करती है. सही देखभाल के साथ पशु लंबे समय तक अधिक दूध देते हैं और पूरे परिवार की आजीविका को मजबूत बनाते हैं.

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