पृथ्वी पर बढ़ा गर्मी का खतरा: WMO की रिपोर्ट में खुलासा, 2023 से 2025 बने अब तक के सबसे गर्म साल

धरती की अतिरिक्त गर्मी का 90 फीसदी से अधिक हिस्सा महासागर सोख रहे हैं. इसके कारण समुद्रों का तापमान लगातार बढ़ रहा है, जिससे आर्कटिक और अंटार्कटिक की बर्फ तेजी से पिघल रही है. इस साल आर्कटिक की समुद्री बर्फ अपने अब तक के न्यूनतम स्तर पर दर्ज की गई है, जबकि अंटार्कटिक बर्फ का फैलाव औसत से काफी नीचे रहा है.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 7 Nov, 2025 | 09:32 AM

Global Warming: दुनिया का तापमान लगातार बढ़ रहा है और अब इसका असर साफ-साफ दिखने लगा है. विश्व मौसम संगठन (WMO) की नई रिपोर्ट के मुताबिक 2023 से 2025 तक के तीन साल इतिहास के सबसे गर्म सालों में दर्ज किए गए हैं, वहीं 2015 से 2025 के बीच का पूरा दशक अब तक का सबसे ज्यादा गर्म दशक बन गया है. यह रिपोर्ट जलवायु परिवर्तन की गंभीरता को उजागर करती है और बताती है कि धरती का तापमान अब औद्योगिक क्रांति से पहले के स्तर से लगभग 1.4 डिग्री सेल्सियस ज्यादा हो चुका है.

बढ़ता तापमान, घटती ठंड

रिपोर्ट के अनुसार, साल 2025 भी रिकॉर्ड गर्म सालों में शामिल होने वाला है यह अब तक का दूसरा या तीसरा सबसे गर्म वर्ष हो सकता है. जनवरी से अगस्त 2025 के बीच धरती की औसत सतही तापमान वृद्धि 1.42 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गई है. यानी गर्मी अब सिर्फ एक मौसम नहीं रही, बल्कि एक स्थायी समस्या बन चुकी है.

WMO का कहना है कि एल नीनो और ला नीना जैसे मौसमी पैटर्न भी अब जलवायु बदलाव से प्रभावित हो रहे हैं. जहां एल नीनो ने 2023 और 2024 में वैश्विक तापमान को बढ़ाया, वहीं 2025 में ला नीना जैसी परिस्थितियों के बावजूद तापमान सामान्य से काफी अधिक रहा.

महासागर में बढ़ती गर्मी और पिघलती बर्फ

धरती की अतिरिक्त गर्मी का 90 फीसदी से अधिक हिस्सा महासागर सोख रहे हैं. इसके कारण समुद्रों का तापमान लगातार बढ़ रहा है, जिससे आर्कटिक और अंटार्कटिक की बर्फ तेजी से पिघल रही है. इस साल आर्कटिक की समुद्री बर्फ अपने अब तक के न्यूनतम स्तर पर दर्ज की गई है, जबकि अंटार्कटिक बर्फ का फैलाव औसत से काफी नीचे रहा.

इसी वजह से समुद्र का जलस्तर भी लगातार बढ़ रहा है. रिपोर्ट बताती है कि 1993 से 2002 के बीच समुद्र का स्तर हर साल औसतन 2.1 मिलीमीटर बढ़ रहा था, जो अब 4.1 मिलीमीटर प्रति वर्ष तक पहुंच चुका है. यह वृद्धि सीधे गर्मी बढ़ने, ग्लेशियरों के पिघलने और समुद्री जल के फैलाव की वजह से हो रही है.

ग्लेशियरों का रिकॉर्ड नुकसान

WMO की रिपोर्ट में बताया गया है कि 2023-24 के दौरान ग्लेशियरों में बर्फ पिघलने का रिकॉर्ड नुकसान हुआ है. यह लगातार तीसरा साल है जब ग्लेशियरों का द्रव्यमान घटा है. दुनियाभर में करीब 450 गीगाटन बर्फ पिघल गई, जिससे समुद्र का जलस्तर करीब 1.2 मिलीमीटर और बढ़ गया. यह 1950 के बाद से अब तक का सबसे बड़ा नुकसान माना जा रहा है.

ग्रीनहाउस गैसों का स्तर बना चिंता का कारण

रिपोर्ट में बताया गया है कि कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂), मीथेन (CH₄) और नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O) जैसी गैसें इतिहास के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच चुकी हैं.

साल 1750 में CO₂ का स्तर 278 ppm था, जो अब 2024 में 423.9 ppm तक पहुंच गया है यानी 53 फीसदी की वृद्धि. केवल 2023-24 के बीच ही इसका स्तर 3.5 ppm बढ़ा, जो एक साल में अब तक की सबसे बड़ी वृद्धि है.

अब भी संभव है सुधार, लेकिन वक्त बहुत कम है

WMO की महासचिव सेलेस्ट साओलो ने चेतावनी दी है कि अगर यही रफ्तार जारी रही, तो आने वाले कुछ सालों में 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा पार हो जाएगी, जिसे वैज्ञानिक जलवायु स्थिरता की “रेड लाइन” मानते हैं. उन्होंने कहा कि यह अभी भी संभव है कि सदी के अंत तक तापमान को नियंत्रित किया जा सके, लेकिन इसके लिए तुरंत और बड़े स्तर पर कदम उठाने होंगे.

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भी कहा कि अगर वैश्विक तापमान 1.5°C से ऊपर जाता रहा, तो इससे अर्थव्यवस्था, खाद्य सुरक्षा और मानव जीवन पर गंभीर असर पड़ेगा. उन्होंने देशों से अपील की कि वे तेज और सामूहिक जलवायु कार्रवाई करें.

शुरुआती चेतावनी प्रणालियों की जरूरत

रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि 2015 में जहां 56 देशों के पास ही मल्टी-हैजर्ड अर्ली वार्निंग सिस्टम (MHEWS) थे, वहीं अब यह संख्या 119 देशों तक पहुंच गई है. बावजूद इसके, दुनिया के 40 फीसदी देशों में अभी भी यह सिस्टम नहीं है. जलवायु संकट से निपटने के लिए समय रहते चेतावनी प्रणाली, हरित ऊर्जा, और पर्यावरणीय शिक्षा को मजबूत बनाना बेहद जरूरी है.

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