जैसे-जैसे ठंड, नमी और कोहरे का असर बढ़ रहा है, वैसे-वैसे आलू की फसल में रोगों का खतरा भी बढ़ने लगा है. आलू की फसल पर झुलसा रोग का खतरा मुख्य रूप से देखा जाता है. इस रोग के लगने से फसल की पत्तियां ज्यादा प्रभावित होती है. दिसंबर का मौसम किसानों के लिए काफी सतर्कता वाला माना जा रहा है. विशेषज्ञों का कहना है कि इस समय थोड़ी सी लापरवाही पूरी फसल को खराब कर सकती है.
आलू की बुवाई के लिए सही तापमान, समय और क्षेत्र बहुत ही महत्व रखते है. उत्तर भारत में आलू की बुवाई आमतौर पर 15 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच की जाती है, जब तापमान 18 से 25 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है. इस समय पौधे बढ़वार की अवस्था में होते हैं. उत्तर प्रदेश के अधिकतर जिलों में बुवाई को करीब एक महीना बीत चुका है. ठंड बढ़ते ही रोगों का खतरा भी बढ़ जाता है. ऐसे में मौसम में जरा-सी गड़बड़ी रोगों को न्योता दे देती है.
आलू में लगने वाले प्रमुख रोग
आलू की फसल में लेट ब्लाइट (झुलसा), अर्ली ब्लाइट, मोजेक रोग, काला पपड़ी (ब्लैक स्कर्फ) और सॉफ्ट रॉट जैसे रोग अधिक देखने को मिलते हैं. इन रोगों के कारण पत्तियां झुलस जाती हैं, पौधों की बढ़वार रुक जाती है और कंद सड़ने लगते हैं.
दिसंबर में बढ़ जाता है झुलसा रोग
आलू की खेती सर्दियों के मौसम में बड़े पैमाने पर की जाती है. यह कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली फसल मानी जाती है. लेकिन दिसंबर माह में अधिक कोहरा और नमी रहने के कारण झुलसा रोग का प्रकोप तेजी से बढ़ जाता है, जिससे किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है.
झुलसा रोग के लक्षण
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार झुलसा रोग फफूंद के कारण होता है और यह 18 से 22 डिग्री सेल्सियस तापमान, अधिक नमी और लगातार कोहरे में तेजी से फैलता है. इसकी शुरुआत पत्तियों पर छोटे भूरे या काले धब्बों से होती है, जो धीरे-धीरे पूरी पत्ती को झुलसा देते हैं. गंभीर स्थिति में तना कमजोर हो जाता है और कंदों में सड़न शुरू हो जाती है.
झुलसा रोग से बचाव के उपाय
एक्सपर्ट के अनुसार फसल बचाव के लिए रोगमुक्त बीज कंद का इस्तेमाल करना चाहिए, खेत में पानी निकासी की उचित व्यवस्था रखनी चाहिए और संतुलित उर्वरक देना चाहिए. रोग के शुरुआती लक्षण दिखते ही मैंकोजेब या क्लोरोथालोनिल का छिड़काव करें. अधिक प्रकोप की स्थिति में मेटालेक्सिल और मैंकोजेब मिश्रित दवाओं का उपयोग लाभकारी होता है.
फसल चक्र अपनाने की सलाह
यदि झुलसा रोग का समय रहते उपचार न किया जाए तो उत्पादन में भारी गिरावट आ सकती है.विशेषज्ञ किसानों को फसल चक्र अपनाने और हर साल फसल बदलने की सलाह देते हैं साथ ही संक्रमण बढ़ते ही तुरंत फफूंदनाशक दवाओं का छिड़काव करने की भी सलाह दी गई है, ताकि मिट्टी में फंगस के पनपने की संभावना कम हो सके. जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान का सामना न करना पड़े.