शीतलहर में भी सरसों पर नहीं होगा तना गलन और सफेद रतुआ का असर.. गंधक बनेगा ढाल

सर्दी में पाला, रोग और माहू कीट से सरसों को भारी नुकसान का खतरा रहता है. हल्की सिंचाई, धुआं, सल्फर व प्रोपिकोनाजोल जैसे छिड़काव से बचाव संभव है. माहू नियंत्रण के लिए नीम काढ़ा व इमिडाक्लोप्रिड उपयोगी हैं. नियमित निगरानी से किसान 25 से 30 फीसदी नुकसान रोक सकते हैं.

नोएडा | Published: 12 Dec, 2025 | 08:38 PM

Mustard cultivation: दिसंबर की दस्तक के साथ ही कड़ाके की ठंड शुरू हो गई है. बिहार-उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में शीतलहर और पाले भी पड़ने लगे हैं. इससे फसलों को नुकसान पहुंच रहा है. लेकिन सबसे ज्यादा सरसों की खेती करने वाले किसान चिंतित है. क्योंकि पाला से सरसों की फसल में रोग लगने और कीटों के हमले की संभावना बढ़ जाती है. खासकर माहू कीट का खतरा बहुत रहता है. इससे पैदावार पर असर पड़ता है. लेकिन किसान नीचे बताए गए तकनीक को अपनाकर सरसों की फसल को रोग, कीट और पाले से बचा सकते हैं. 

कृषि एक्सपर्ट के मुताबिक, सर्दी का मौसम सरसों के लिए अच्छा माना जाता है. लेकिन जब तापमान अचानक नीचे चला जाता है या पाला पड़ने लगता है, तब  फसल को नुकसान होता है. कड़ाके की ठंड से पौधों की बढ़वार  रुक जाती है और फूल झड़ने लगते हैं, जिससे उत्पादन कम हो जाता है. खासकर दिसंबर और जनवरी में तापमान बहुत नीचे जाने पर सरसों को पाले का खतरा बढ़ जाता है. अगर किसान समय पर जरूरी उपाय न करें, तो फसल की गुणवत्ता और पैदावार दोनों प्रभावित हो सकती हैं.

इमिडाक्लोप्रिड दवा का उपयोग करें

कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक, समय पर हल्की सिंचाई करने और खेत में धुआं करने से सरसों को पाला से बचाया जा सकता है. अगर किसान चाहें, तो सल्फर का छिड़काव भी कर सकते हैं. इसके अलावा माहू कीट से बचाव के लिए इमिडाक्लोप्रिड दवा का उपयोग किया जा सकता है. अगर किसान फसल को सही पोषण दें और सिंचाई का सही प्रबंधन करें, तो वे 25 से 30 फीसदी तक होने वाले नुकसान से बच सकते हैं और बेहतर पैदावार हासिल कर सकते हैं.

शुरुआती लक्षण दिखे तो तुरंत दवा का छिड़काव करें

खास बात यह है कि सर्दी के दिनों में सरसों पर पाउडरी मिल्ड्यू, तना गलन, सफेद रतुआ और माहू  जैसे रोग और कीट तेजी से फैलते हैं. इनकी वजह से पत्तियां सफेद पड़ जाती हैं, पौधे कमजोर हो जाते हैं और फलियों का विकास रुक जाता है. इसलिए नियमित निगरानी बहुत जरूरी है. किसानों को समय-समय पर पत्तों की निचली सतह जरूर जांचनी चाहिए. जैसे ही बीमारी के शुरुआती लक्षण दिखे, तुरंत दवा का छिड़काव करें.

25 से 30 फीसदी तक होने वाले नुकसान से बच सकते हैं

किसान पाउडरी मिल्ड्यू को नियंत्रित करने के लिए 0.2 फीसदी घुलनशील गंधक  का छिड़काव कर सकते हैं. वहीं, तना गलन के लिए किसान कार्बेन्डाजिम या मैनकोजेब का उपयोग कर सकते हैं. जबकि, सफेद रतुआ की स्थिति में प्रोपिकोनाजोल का छिड़काव करना बेहतर रहेगा. अगर फसल में माहू बढ़ने लगे, तो नीम का काढ़ा, थायोमेथॉक्साम या इमिडाक्लोप्रिड को सीमित मात्रा में इस्तेमाल किया जा सकता है. इससे किसान 25 से 30 फीसदी तक होने वाले नुकसान से बच सकते हैं.

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