क्लाइमेट चेंज कृषि को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है और आने वाले वर्षों में गन्ना की खेती पर भी बुरा असर होने का खतरा जताई गया है. चीनी उद्योग के शीर्ष निकाय इस्मा ने जारी की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि आने वाले समय में स्वास्थ्य चिंताओं के चलते चीनी की खपत पर असर पड़ने की संभावना है. हालांकि, ग्रामीण और मध्यमवर्गीय उपभोक्ताओं में चीनी की खूब मांग बनी रहेगी. इसके साथ ही इंडस्ट्री में पेय पदार्थ, मिठाई और पैक्ड फूड आदि में चीनी की खपत बढ़ेगी. वहीं, गुड़, खांडसारी और स्वीटनर का इस्तेमाल प्रीमियम वर्ग में बढ़ने की संभावना जताई गई है.
गन्ना और चीनी उत्पादन, खपत पर इस्मा ने पेश की रिपोर्ट
चीनी उद्योग के शीर्ष निकाय इस्मा ने भारत शर्करा एवं जैव ऊर्जा सम्मेलन 2025 के तीसरे संस्करण में गन्ना उत्पादन, चीनी खपत और जलवायु असर पर रिपोर्ट पेश की है. इस्मा ने कहा कि भारत विश्व का सबसे बड़ा चीनी उपभोक्ता है. आने वाले वर्षों में चीनी उद्योग की ग्रोथ इंडस्ट्री खपत (खासकर पेय पदार्थ, मिठाई और पैक्ड फूड) से बढ़ेगी. हालांकि, शहरी वर्ग में स्वास्थ्य कारणों से चीनी खपत धीमी होगी, लेकिन ग्रामीण और मध्यमवर्गीय उपभोक्ताओं से मांग बनी रहेगी.
उत्पादन में गिरावट ने चिंता बढ़ाई
इस्मा की रिपोर्ट के अनुसार 2024-25 में भारत का गन्ना उत्पादन 3750 लाख मीट्रिक टन रहा, जो 2018-19 से 9 फीसदी कम है. वहीं, चीनी उत्पादन 260 लाख मीट्रिक टन रहा, जिसमें अनुमानित 21 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है. इसकी वजह जलवायु बदलावों को माना गया है. देश में 765 चीनी मिलें हैं, जिनमें से करीब 70 फीसदी सक्रिय. महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक मिलकर 67 फीसदी चीनी उत्पादन करते हैं. औसत रिकवरी रेट घटकर 10.45 फीसदी रह गया है जो पहले 11.1 फीसदी था.
चीनी खपत के आंकड़े
इस्मा की रिपोर्ट में कहा गया है कि चीनी की कुल खपत 2024-25 में 28 MMT हुई, जो 2018-19 की तुलना में लगभग 10 फीसदी की बढ़ोत्तरी को दर्शाती है. सर्वाधिक बढ़ोत्तरी इंडस्ट्री खपत के रूप में दर्ज की गई है जो 60-65 फीसदी तक बड़ी है. यह खपत प्रमुख तौर पर पेय पदार्थों में 35-40 फीसदी और कन्फेक्शनरी यानी फूड प्रोडक्ट में 15-18 फीसदी खपत रही है. वहीं, घरेलू या रिटेल चीनी खपत 35-40 फीसदी बढ़ी है. प्रति व्यक्ति चीनी की खपत लगभग 20 किलोग्राम सालाना रही है. वैश्विक औसत खपत आंकड़ा 22 किग्रा है, जिससे यह कम रहा है.
चीनी, गुड़ और खांडसारी खपत के रुझान
रिपोर्ट बताती है कि संपन्न वर्ग (India 1) रिफाइन चीनी कम कर रहा है और वैकल्पिक स्वीटनर या पारंपरिक गुड़ की ओर झुकाव बढ़ रहा है. वहीं, मध्यवर्ग (India 2) में चीनी का स्थिर उपयोग है, धीरे-धीरे पैक्ड, ब्रांडेड चीनी की ओर रुझान बढ़ने की संभावना जताई गई है. इसी तरह निम्न आय वर्ग (India 3) में पैक्ड मीठे प्रोडक्ट का तेजी से विस्तार होने से छोटे पैक और मिठाइयों के रूप में चीनी का इस्तेमाल बढ़ रहा है. अगर शहरी क्षेत्रों की बात करें तो स्वास्थ्य जागरूकता व डायबिटीज के चलते चीनी की मांग में गिरावट देखी जा रही है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में खपत बढ़ रही है.

Jaggary consumption
चीनी के विकल्प के रूप में गुड़, खांडसारी का इस्तेमाल रिटेल खपत में 10-13 फीसदी तक किया जा रहा है. जबकि, इंडस्ट्री स्तर पर इसका इस्तेमाल केवल 1-2 फीसदी ही है. वहीं, स्टेविया जैसे वैकल्पिक स्वीटनर अभी महंगे और सीमित हैं. इस वजह से केवल शहरी या प्रीमियम वर्ग में ही यह लोकप्रिय हो रहे हैं.
आने वाले वर्षों में चीनी खपत का आंकड़ा कैसा होगा
इस्मा के अनुसार 2025 से 2030 तक चीनी खपत 1.5-2 फीसदी CAGR से बढ़ेगी. इंडस्ट्री में खपत बढ़ेगी, जबकि घरेलू खपत स्थिर रहेगी. फूड आइटम्स और आइसक्रीम जैसे सेगमेंट में खपत बढ़ेगी, लेकिन स्वास्थ्य नीतियों से प्रोसेस्ड फूड में दबाव बनने की संभावना है.
किसानों गन्ना का दिए जाने वाला दाम यानी FRP, चीनी बिक्री मूल्य यानी MSP, निर्यात-आयात नियंत्रण और एथेनॉल ब्लेंडिंग प्रमुख नीति उपकरण का हिस्सा होंगे. वहीं, एथेनॉल प्रोग्राम इंडस्ट्री के लिए स्थिर आय का सोर्स बनेगा.
गन्ना के लिए क्लाइमेट चेंज बड़ी चुनौती
रिपोर्ट में क्लाइमेट चेंज से गन्ना उत्पादन पर असर की चिंता जताई गई है. जलवायु परिवर्तन के साथ ही रेड रॉट जैसे रोग गन्ना उत्पादन को प्रभावित करेंगे. वहीं, चीनी पर स्वास्थ्य आधारित टैक्स और लेबलिंग नियम भी चुनौती रहेंगे. जबकि, मिलों में वित्तीय संकट और ओवरकैपेसिटी बड़ी चिंता की वजह रहने की आशंका है.
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