अमेरिकी टैरिफ और सस्ते आयात से कश्मीरी सेब उत्पादकों की चिंता बढ़ी

कश्मीरी सेब उत्पादकों को अमेरिकी टैरिफ और सस्ते आयात से खतरा है, जिससे उनकी आजीविका पर असर पड़ सकता है. केंद्र सरकार से उम्मीद है कि वह अमेरिकी सेबों पर टैरिफ बढ़ाकर देशी उत्पादकों की रक्षा करेगी.

Kisan India
Noida | Updated On: 18 Mar, 2025 | 01:38 PM

कश्मीर घाटी का सेब उद्योग देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देता है. भारत में कुल सेब उत्पादन का 75% हिस्सा अकेले कश्मीर में होता है, जिससे लाखों लोगों की आजीविका जुड़ी हुई है. हालांकि, आतंकवाद, प्राकृतिक आपदाओं और राजनीतिक अस्थिरता के चलते यह उद्योग पहले से ही कई चुनौतियों का सामना कर रहा है. अब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा 2 अप्रैल से लागू किए जाने वाले पारस्परिक टैरिफ (Reciprocal Tariffs) के फैसले ने कश्मीरी सेब उत्पादकों की चिंताओं को और बढ़ा दिया है.

सस्ते अमेरिकी सेबों से लोकल बाजार पर खतरा

कश्मीर घाटी में सेब उत्पादन करने वाले किसान और व्यापारी इस फैसले से परेशान हैं. उन्हें डर है कि सस्ते अमेरिकी सेबों के भारत में आने से उनके सेब की मांग कम हो जाएगी, जिससे उनकी आजीविका पर बुरा असर पड़ेगा. श्रीनगर, सोपोर और बारामूला सहित 13 जिलों के सेब उत्पादकों का प्रतिनिधित्व करने वाली ‘कश्मीर वैली फ्रूट ग्रोअर्स-कम-डीलर्स यूनियन’ (KVFGU) ने इस मुद्दे को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है.

यूनियन का कहना है कि कश्मीर का सेब उद्योग पहले ही कई मुश्किलों से गुजर रहा है. 2014 की विनाशकारी बाढ़, बागों को नुकसान पहुंचाने वाले मौसम और घाटी में जारी अशांति ने सेब उत्पादकों की कमर तोड़ दी है. अब अगर सस्ते वाशिंगटन सेब (Washington Apples) भारतीय बाजार में आ जाते हैं, तो देशी सेबों की कीमतें गिर जाएंगी और किसानों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ेगा.

डीलर्स यूनियन के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में 7 लाख से अधिक परिवार डायरेक्ट या इन डायरेक्ट रूप से सेब उद्योग पर निर्भर हैं. यूनियन ने केंद्र सरकार से मांग की है कि अमेरिकी टैरिफ पर बातचीत करने की बजाय भारत में आने वाले अमेरिकी सेबों पर 100% आयात शुल्क लगाया जाए ताकि लोकल किसानों को बचाया जा सके. इसके साथ ही यूनियन ने हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के किसानों की दुर्दशा का भी जिक्र किया है, क्योंकि इन राज्यों में भी सेब उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है. अगर सरकार ने कोई कड़ा कदम नहीं उठाया, तो न केवल कश्मीर, बल्कि हिमाचल और उत्तराखंड के लाखों छोटे किसानों की आजीविका खतरे में पड़ जाएगी.

क्या कह रही है केंद्र सरकार?

उद्योग विशेषज्ञों का मानना है कि अगर सरकार ने अमेरिकी सेबों पर टैरिफ कम कर दिया, तो इसका बुरा असर सिर्फ किसानों पर ही नहीं, बल्कि राज्य सरकार के राजस्व पर भी पड़ेगा. अमेरिका के सस्ते सेब भारतीय बाजार में बिकेंगे, जिससे देशी सेबों की बिक्री कम हो जाएगी और किसानों को भारी नुकसान होगा. हालांकि, केंद्र सरकार ने टैरिफ घटाने के ट्रंप के दावे का खंडन किया है.
business line के अनुसार वाणिज्य सचिव(Commerce Secretary) सुनील बर्थवाल ने कहा की ‘भारत ने अभी तक अमेरिका से टैरिफ कम करने की कोई वादा नहीं किया है और इस मुद्दे पर बातचीत जारी है. सरकार ने संकेत दिया है कि वह कुछ उत्पादों पर टैरिफ कम करने पर विचार कर सकती है, लेकिन सेब और डेयरी उद्योग जैसे संवेदनशील क्षेत्रों की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाएगी.

कश्मीरी किसान फैसले का कर रहे इंतजार

जैसे-जैसे अप्रैल की डेडलाइन नजदीक आ रही है, कश्मीर के सेब उत्पादक चिंता में हैं. वे अपने कारोबार को बचाने के लिए सरकार से उचित हस्तक्षेप की उम्मीद कर रहे हैं. डीलर यूनियन का कहना है कि कश्मीर के सेब उत्पादक इस साल अच्छी फसल की उम्मीद कर रहे हैं, लेकिन अगर अमेरिकी सेब बाजार में आ गए, तो उनकी सारी मेहनत बेकार हो सकती है.

अब आगे क्या होगा ?

अब सभी कश्मीरी किसानों की नजरें केंद्र सरकार के फैसले पर टिकी हैं. यदि सरकार अमेरिकी सेबों पर टैरिफ बढ़ाने का फैसला करती है, तो कश्मीरी किसानों को राहत मिल सकती है. लेकिन अगर टैरिफ कम होता है, तो देशी सेब उत्पादकों को तगड़ा झटका लग सकता है.
बता दें की सरकार जल्द ही इस मुद्दे पर फैसला लेगी ताकि लाखों किसानों की आजीविका को सुरक्षित किया जा सके और भारत के फल उद्योग को बचाया जा सके.

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Published: 18 Mar, 2025 | 01:00 PM

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