झारखंड के पलामू ज़िले के एक छोटे से गांव पिचुलिया की 25 महिलाओं ने वो कर दिखाया, जो कई नेता और अधिकारी सिर्फ वादों में ही कहते हैं. सालों से सड़क की मांग की जा रही थी, आवेदन दिए गए, पंचायत से लेकर जिला प्रशासन तक गुहार लगाई गई- लेकिन जब कहीं से कोई जवाब नहीं मिला, तो गांव की महिलाओं ने अब बहुत हो गया कहकर खुद सड़क बनाने की ठानी.
इन महिलाओं को ताकत दी राज्य सरकार की मैया सम्मान योजना ने, जिसमें हर पात्र महिला को हर महीने 2,500 रुपये मिलते हैं. उसी पैसे को इकट्ठा कर इन महिलाओं ने गांव की पहली मोटरेबल सड़क बना डाली- बिना किसी सरकारी मशीनरी, ठेकेदार या मदद के.
जब इलाज के लिए सड़क नहीं, तो जान बचाना नामुमकिन हो गया
बासंती देवी की कहानी दिल को चीर देती है. उनके पति को ब्रेन ट्यूमर था. एक दिन अचानक हालत बहुत बिगड़ गई. लेकिन सड़क ना होने की वजह से एम्बुलेंस नहीं आ सकती थी. मजबूरी में बांस की चारपाई पर उन्हें लिटाकर 5 किलोमीटर दूर अस्पताल तक ले जाया गया. वो तो ट्यूमर से मरे, लेकिन मैं हमेशा सोचती हूं, अगर सड़क होती, तो शायद बच जाते, बासंती की आंखें भर आती हैं.
बच्चा जनने के लिए भी भाई को बनना पड़ा एम्बुलेंस
SHG की एक और सदस्य ममता कुमारी का अनुभव भी कुछ ऐसा ही है. जब वह गर्भवती थीं, तो प्रसव पीड़ा अचानक शुरू हो गई. सड़क ना होने की वजह से कोई वाहन गांव तक नहीं आ सकता था. मेरे भाइयों और भतीजों ने मुझे दो किलोमीटर तक कंधे पर उठाकर अस्पताल पहुंचाया, ममता कहती हैं. ये वो दर्द है जो सिर्फ शरीर का नहीं, सिस्टम से मिले उपेक्षा का भी है.
रिश्तेदार और रिश्ते दोनों रुक गए थे इस गांव के लिए
पिचुलिया गांव की लड़कियों और लड़कों के लिए शादी के रिश्ते आने बंद हो गए थे. वजह थी- गांव में सड़क नहीं है. बाहर के लोग ये सोचते थे कि जिस गांव तक गाड़ी नहीं पहुंच सकती, वहां रिश्तेदारी कैसे निभेगी? SHG सदस्य गीता देवी बताती हैं, राखी पर मेरी बहनें आई थीं, लेकिन उन्होंने कहा कि अगली बार तभी आएंगी जब सड़क बनेगी. नंगे पांव चलना पड़ा उन्हें. वो दिन बहुत चुभा दिल को.
अब सिर्फ शिकायत नहीं, काम करना है
अगस्त में SHG (महिला स्व-सहायता समूह) की एक खास बैठक हुई. सबने कहा- अब सरकार का इंतजार बेकार है. SHG की 25 महिलाओं ने ठान लिया कि अपना हक खुद बनाना है. सरकार की मैया सम्मान योजना से उन्हें 2,500 रुपये महीने मिलते हैं. इस योजना का मकसद था महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त करना- लेकिन पिचुलिया की महिलाओं ने इससे भी एक कदम आगे जाकर गांव का भविष्य बदल दिया. हमने मिलकर 70,000 रुपये जमा किए. खुद फावड़ा उठाया, तसले में मिट्टी भरी और सड़क बनाना शुरू किया, गीता देवी बताती हैं.
हाथों में तसला, सिर पर सपना
जब पूरा राज्य दुर्गा पूजा की तैयारी में लगा था, पिचुलिया की महिलाएं दिन-रात काम कर रही थीं. रेत, गिट्टी और मिट्टी से वो गांव की पहली मोटरेबल सड़क बना रही थीं. कोई जेसीबी नहीं, कोई ट्रैक्टर नहीं, कोई मजदूर नहीं- सिर्फ महिलाएं, हौसला और जज्बा. 28 सितंबर को जब सड़क बनकर तैयार हुई, तो गांव में पहली बार गाड़ियां आईं. बच्चों ने दौड़कर सड़क को छुआ, जैसे कोई सपना सच हो गया हो. पूरी सड़क कच्ची है, लेकिन मजबूत है. अभी के लिए इतना काफी है कि अब कोई बीमार हो जाए, तो समय पर अस्पताल पहुंच सकता है, ममता मुस्कराकर कहती हैं.
सरकार की योजना और गांव की सोच
मैया सम्मान योजना, हेमंत सोरेन सरकार की एक महत्वाकांक्षी स्कीम है. इसके तहत झारखंड की 18 से 50 साल की राशन कार्डधारी महिलाओं को 2,500 रुपये हर महीने मिलते हैं ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें. पिचुलिया की महिलाओं ने इस पैसे को खाने-पीने या कपड़े-गहनों में खर्च करने की बजाय, गांव के भविष्य पर लगाया. ऐसी मिसाल शायद ही कहीं और देखने को मिले. उन्होंने साबित कर दिया कि अगर योजना का सही इस्तेमाल हो, तो कोई भी गांव आत्मनिर्भर बन सकता है.
अब सिर्फ सड़क नहीं, आगे और सपने हैं इन महिलाओं के पास
आज पिचुलिया गांव सिर्फ एक सड़क नहीं, नई उम्मीदों का रास्ता बन गया है. अब गांव तक एम्बुलेंस पहुंच सकती है, बच्चे साइकिल से स्कूल जा सकते हैं, महिलाएं हाट-बाजार तक जा सकती हैं, और रिश्तेदारों को भी अब आने में झिझक नहीं होगी. SHG की महिलाएं अब यहीं नहीं रुकना चाहतीं. अगला लक्ष्य है- गांव में एक छोटी लाइब्रेरी, एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, और स्वच्छ पानी की सुविधा. बासंती देवी मुस्कुराकर कहती हैं, जब सड़क बना सकते हैं, तो कुछ भी कर सकते हैं. अब कोई भी सपना अधूरा नहीं लगेगा.