सरकारी योजनाएं किसानों की मदद के लिए बनाई जाती हैं, लेकिन जब वही योजनाएं कुछ अफसरों की जेबें भरने का जरिया बन जाएं, तो सबसे ज्यादा नुकसान उस किसान को होता है जो ईमानदारी से मेहनत करता है. मध्यप्रदेश के डिंडोरी जिले में ऐसा ही एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां कागजों में तो बीज बंटे, लेकिन जमीन पर किसी किसान को कुछ नहीं मिला. अब आर्थिक अपराध शाखा (EOW) ने इस घोटाले का पर्दाफाश करते हुए दो अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया है.
क्या है पूरा मामला?
EOW के डायरेक्टर जनरल उपेन्द्र जैन ने मीडिया को बताया कि डिंडोरी जिले के मेहदवानी ब्लॉक में उस समय के कृषि उपनिदेशक अश्विन झारिया और खंड विकास अधिकारी (BDO) हेमंत मरावी ने मिलकर फर्जी किसानों की सूची बनाई. इस लिस्ट में कई ऐसे नाम थे जो असल में कभी मौजूद ही नहीं थे.
इन अधिकारियों ने दावा किया कि उन्होंने टीएफआरए योजना के तहत किसानों को चने और मसूर की प्रमाणित बीजें बांटीं, लेकिन सच्चाई यह है कि 372 “नकली किसानों” को चने और 295 “कागजी किसानों” को मसूर की बीज दिखाकर सरकारी धन हड़प लिया गया.
और कौन है शामिल?
इस घोटाले में एक और नाम जुड़ा है, इंदरलाल गोरिया, जो उस समय सेक्शन इंचार्ज थे और अब रिटायर हो चुके हैं. पुलिस ने इन तीनों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है. जांच में सामने आया है कि इस फर्जीवाड़े से राज्य सरकार को लगभग 3.39 लाख रुपये का नुकसान हुआ है.
सिर्फ डिंडोरी ही नहीं, जबलपुर में भी गड़बड़ी
इस मामले के साथ-साथ जबलपुर जिले के एक पंचायत में मनरेगा योजना के अंतर्गत मजदूरी वितरण में गड़बड़ी का मामला भी सामने आया है. वहां के पंचायत पदाधिकारियों पर भी जांच जारी है.