DAP की कीमतें $750 प्रति टन पहुंचीं, चीन के निर्यात रोकने से मचा हड़कंप

चीन ने हाल ही में DAP और यूरिया जैसे खादों के निर्यात पर रोक लगा दी है. विशेषज्ञों का मानना है कि भारत ने अपनी नई यूरिया खरीद टेंडर में चीन को शामिल नहीं किया, जिसके जवाब में चीन ने भी DAP की सप्लाई को सीमित कर दिया है.

नई दिल्ली | Published: 8 Jun, 2025 | 07:11 PM

हाल ही में दुनिया भर में एक अहम खाद, DAP (डाय-अमोनियम फॉस्फेट), की कीमतें अचानक तेजी से बढ़ गई हैं. पिछले महीने तक जहां इसकी कीमत करीब $720 प्रति टन थी, अब यह बढ़कर $750 प्रति टन पहुंच गई है. इसका सबसे बड़ा कारण चीन द्वारा DAP का निर्यात रोकना है. भारत, जो बड़ी मात्रा में DAP चीन से खरीदता है, अब इसके लिए और ज्यादा पैसा चुकाने को मजबूर है. इससे सरकार पर सब्सिडी का भार भी बढ़ गया है.

चीन ने क्यों रोका निर्यात?

चीन ने हाल ही में DAP और यूरिया जैसे खादों के निर्यात पर रोक लगा दी है. विशेषज्ञों का मानना है कि भारत ने अपनी नई यूरिया खरीद टेंडर में चीन को शामिल नहीं किया, जिसके जवाब में चीन ने भी DAP की सप्लाई को सीमित कर दिया है. इसका सीधा असर DAP की अंतरराष्ट्रीय कीमतों पर पड़ा है, और कीमतें लगातार ऊपर जा रही हैं. कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले समय में ये कीमतें $900 प्रति टन तक पहुंच सकती हैं, जैसी 2022 में देखी गई थीं.

भारत की जरूरतें और चुनौतियां

भारत को हर साल करीब 1 करोड़ टन DAP की जरूरत होती है, लेकिन घरेलू उत्पादन केवल 45 लाख टन के आसपास है. इतना भी उत्पादन पूरी तरह से भारत में नहीं होता, क्योंकि इसके लिए जरूरी कच्चा माल जैसे फॉस्फोरिक एसिड और रॉक फॉस्फेट भी बाहर से आयात किया जाता है. बाकी की जरूरतें सीधे DAP आयात करके पूरी की जाती हैं.

भारत ने मोरक्को और सऊदी अरब जैसे देशों से लंबी अवधि की सप्लाई डील की है, लेकिन ये डील केवल सप्लाई सुनिश्चित करती हैं, कीमत नहीं. यानी भारत को DAP के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार की मौजूदा दर पर ही भुगतान करना पड़ता है.

बढ़ती सब्सिडी बनी चिंता का कारण

DAP किसानों को सस्ती दर पर मिले, इसके लिए सरकार NBS (न्यूट्रिएंट-बेस्ड सब्सिडी) योजना के तहत सब्सिडी देती है. हालांकि, कंपनियां खुद खुदरा कीमत तय कर सकती हैं, लेकिन सरकार अनौपचारिक रूप से DAP का अधिकतम खुदरा मूल्य 1,350 रुपये (50 किलो के बोरे के लिए) बनाए रखने का प्रयास करती है.

खरीफ 2025 सीजन के लिए सरकार ने DAP पर 27,799 रुपये प्रति टन की सब्सिडी तय की है. लेकिन जब अंतरराष्ट्रीय कीमत $750 प्रति टन है, तो भारत में इसे लाकर किसानों को देने की कुल लागत 68,000 रुपये प्रति टन से भी ज्यादा हो जाती है. ऐसे में सरकार को आयात मूल्य और खुदरा मूल्य के बीच का पूरा अंतर चुकाना पड़ता है, जिससे सब्सिडी का खर्च काफी बढ़ गया है.

बाजार में किल्लत और कालाबाजारी

उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि फिलहाल DAP की उपलब्धता ठीक बनी हुई है, लेकिन कुछ इलाकों में इसकी कालाबाजारी की खबरें सामने आई हैं. चूंकि DAP की उपयोगिता बहुत ज्यादा है और यह अन्य खादों के मुकाबले सस्ता भी पड़ता है, इसलिए यह किसानों की पहली पसंद है. यही वजह है कि कुछ लोग इसका गलत फायदा उठाकर जमाखोरी और अवैध बिक्री में लगे हुए हैं.