बीमा में बेईमानी : कहीं और हुआ फसल को नुकसान , बीमा राशि पहुंची कहीं और
पंजाब और हरियाणा में फसल बीमा योजना की गड़बड़ियों को सरकार तक पहुंचा कर इन्हें दुरुस्त करने में अहम भूमिका निभाने वाले वरिष्ठ किसान नेता लखविंदर सिंह औलख ने बुंदेलखंड में हुई गड़बड़ी पर गंभीर चिंता जताई है. औलख ने कहा कि हरियाणा और पंजाब में फसल बीमा के दावों का भुगतान करने की प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर खामियां मिली थीं.
जलवायु परिवर्तन के संकट का सीधा और शुरुआती नुकसान किसानों को ही भुगतना पड रहा है. इस संकट से किसानों को उबारने के लिए भारत सरकार ने पीएम फसल बीमा योजना को शुरू किया था. बीते 10 सालों में सरकारी कर्मचारियों और बीमा कर्मियों ने अपने भ्रष्ट रवैये से इस योजना को गड़बड़ियों का गढ़ बना दिया है. फसल बीमा में किसानों के साथ व्यापक पैमाने पर हुई धोखाधड़ी के एक से एक नायाब नमूने सामने आने लगे हैं.
साल 2022 में पंजाब और हरियाणा के किसानों ने फसल बीमा में क्लेम के भुगतान में बीमा कंपनियों द्वारा की जा रही गड़बड़ियों के मामले उठा कर इस योजना में तकनीकी खामियों को उजागर किया था. इन राज्यों के किसान संपन्न और जागरूक हैं, इसलिए यहां चले लंबे संघर्ष के बाद क्लेम की भुगतान संबंधी गड़बड़ियों को काफी हद तक दूर कर लिया गया. इसके बाद अब बीमा कंपनियों के कर्मचारियों ने यूपी, बिहार और एमपी जैसे राज्यों में पिछड़े इलाकों को अपना निशाना बनाया है. इस कड़ी में यूपी और एमपी में बुंदेलखंड के 15 जिलों में फसल बीमा में फर्जीवाड़े के नित नए कारनामे सामने आने लगे हैं.
बीमा कर्मियों और कृषि विभाग के अफसरों की मिलीभगत से भ्रष्टाचार
इस साल अगस्त में यूपी के महाेबा जिले के जागरूक किसान गुलाब सिंह की शिकायत पर जांच के दौरान इन गड़बड़ियों को पकडा गया. फसल बीमा में फर्जीवाड़े की परतें खुलने के बाद अब पता चल रहा है कि बीमा कर्मियों और कृषि विभाग के अफसरों की मिलीभगत से भ्रष्टाचार में जमकर नवाचार किया गया है. फर्जी बीमा करने के ऐसे नायाब तरीके निकाले गए कि इसकी जद में आने से सामान्य किसान से लेकर एक सांसद महोदय तक खुद को बचा नहीं पाए. जांच में हजारों की संख्या में ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां बीमा कहीं और कराया गया और बीमा के क्लेम का भुगतान किसी दूसरे जिले के बैंक खाते में किया गया. जिस जमीन पर फसल का बीमा कराया गया, उस जमीन के मालिक किसान ने बीमा कराया ही नहीं और उस जमीन पर हुए फसल बीमा के प्रीमियम की राशि का भुगतान किसी दूसरे व्यक्ति ने करके बीमा का क्लेम भी ले लिया.
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जालसाजों ने झांसी के सांसद अनुराग शर्मा को भी नहीं छोड़ा
कुछ इसी तरह की गडबडी का शिकार झांसी के सांसद अनुराग शर्मा भी हो गए. नतीजा यह हुआ कि झांसी जिले में पिछले रबी सीजन के दौरान हुई ओलावृष्टि से फसल नष्ट होने का बीमा क्लेम की राशि झांसी के किसानों को मिलने के बजाय जालौन और हरदोई जिले में बंट गई. जांच में पता चला है कि इस तरह के मामलों में किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) से ऋण नहीं लेने वाले गैर ऋणी किसानों की आड में इन दोनों जिलों के कुछ लोगों के बैंक खातों में बीमा क्लेम भेज दिया. इस तरह के एक या दो नहीं, बल्कि 4130 मामले पकड़ में आए हैं और इनमें 8 करोड रुपये से ज्यादा रकम का बंदरबांट बीमा के नाम पर हुआ. सरकारी खजाने से निकला यह पैसा उन किसानों को मिलना चाहिए था जिनकी फसल खराब मौसम की भेंट चढ़ गई थी.
केसीसी से बीमा प्रीमियम राशि कटने से किसानों को जालसाजी का पता नहीं चला
जिन किसानों के पास केसीसी था, उनकी बीमा प्रीमियम की किस्त सीधे बैंक से भर गई, इसलिए केसीसी धारक किसान इस फर्जीवाड़े से बच गए. वहीं गैर ऋणी किसानों को जन सुविधा केंद्र से किस्त भरनी थी, इसलिए कृषि विभाग और बीमा कंपनी के कर्मचारियों ने जनसुविधा केंद्र के संचालकों के साथ मिलकर किसानों के खसरा खतौनी का दुरुपयोग करके फर्जी लाभार्थियों को बीमा क्लेम की राशि बांट दी. बीमा पोर्टल पर दर्ज आंकड़ों के मुताबिक रबी सीजन 2024 में झांसी जिले में गैर ऋणी किसानों के 13,577 बीमा क्लेम स्वीकार किए गए. इनमें से 4130 बीमा क्लेम की राशि जालौन और हरदोई जिले के बैंक खातों में भेजे गए. गौरतलब है कि बुंदेलखंड इलाके में फसल बीमा का काम देश की अग्रणी बीमा कंपनी इफको टोकियो को सौंपा गया है. फर्जीवाड़े की जांच के आधार पर कंपनी के दर्जन भर से ज्यादा कर्मचारियों और अधिकारियों को हिरासत में लिया गया है.
जालसाजी में बीमा पोर्टल की खामियां बनीं बड़ी वजह
पंजाब और हरियाणा में फसल बीमा योजना की गड़बड़ियों को सरकार तक पहुंचा कर इन्हें दुरुस्त करने में अहम भूमिका निभाने वाले वरिष्ठ किसान नेता लखविंदर सिंह औलख ने बुंदेलखंड में हुई गडबडी पर गंभीर चिंता जताई है. औलख ने कहा कि हरियाणा और पंजाब में फसल बीमा के दावों का भुगतान करने की प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर खामियां मिली थी. उन्होंने बुंदेलखंड इलाके में मिल रही गड़बड़ियों को बीमा कंपनियों और कृषि विभाग के कर्मचारियों द्वारा बीमा पोर्टल की खामियों का नतीजा बताया. औलख ने कहा कि सरकारी योजनाओं में फर्जीवाड़े को रोकने के लिए सरकार ने हर काम को ऑनलाइन कर दिया है. इससे फर्जीवाड़ा करने वालों की कारगुजारियां आसान हुई हें, जबकि किसानों के लिए अब मुसीबत बढ गई है. सरकारी योजनाओं का मामूली सा लाभ पाने के लिए किसानों को जन सुविधा केंद्रों पर निर्भरता को बढ़ाना पडा है और इन्हीं केंद्रों से किसानों के दस्तावेजों का दुरुपयोग होने की शुरुआत होती है. औलख ने सरकार से गुजारिश की है कि फार्मर रजिस्ट्री का काम पूरा किए बिना ऑनलाइन प्रक्रिया को अनिवार्य करने से बचना चाहिए.