8300 हेक्टेयर में जैविक विधि से होगी धान की खेती, किसानों को मिलेगी 12 हजार की सब्सिडी

सुन्‍दरगढ़ जिले में पारंपरिक गैर-बासमती धान की जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए योजना का विस्तार 8,300 हेक्टेयर तक किया गया है. किसानों को तीन साल तक प्रोत्साहन राशि और सब्सिडी मिलती है. SHG और CBOs की मदद से जैविक इनपुट और प्रशिक्षण उपलब्ध कराया जा रहा है.

Kisan India
नोएडा | Updated On: 27 Jul, 2025 | 02:19 PM

ओडिशा के सुन्‍दरगढ़ जिले के धान किसानों के लिए खुशखबरी है. क्योंकि जिले में अब पारंपरिक खुशबूदार और बिना खुशबू वाले गैर-बासमती धान की जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाएगा. 2025-26 के खरीफ सीजन के दौरान 3,000 हेक्टेयर ज्यादा जमीन पर खुशबूदार और बिना खुशबू वाले गैर-बासमती की खेती की जाएगी. इससे जिले में इसका कुल रकबा बढ़कर 8,300 हेक्टेयर हो जाएगा. खास बात यह है कि सरकार जैविक विधि से खेती करने वाले किसानों को प्रति हेक्टेयर 12000 रुपये की आर्थिक मदद भी देती है.

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, जैविक खेती योजना की शुरुआत साल 2023-24 में हुई थी, जब पहले चरण में सुबडेगा, बलिशंकरा, लेफ्रीपड़ा, राजगांगपुर और बरगांव ब्लॉकों में 1,000 हेक्टेयर में खेती शुरू की गई थी. फिर 2024-25 में गुरुंडिया और बोनाई ब्लॉकों को जोड़ते हुए 4,300 हेक्टेयर तक विस्तार किया गया. अब 2025-26 में सुंदरगढ़ और टंगरपाली ब्लॉक को शामिल करते हुए 3,000 हेक्टेयर और जोड़े गए हैं. इस योजना का मकसद स्थानीय बाजार और निर्यात के लिए उपयुक्त पारंपरिक धान की किस्मों को बढ़ावा देना है. साथ ही इस योजना का मकसद पारंपरिक धान की किस्मों को फिर से लोकप्रिय बनाना, उनकी बाजार में वैल्यू बढ़ाना और किसानों की आजीविका को बेहतर बनाना है.

किसानों को मिलती है सब्सिडी

इसमें निर्यात की संभावनाओं के साथ-साथ स्थानीय मांग को भी ध्यान में रखा गया है. लाभार्थी किसानों को इस योजना के तहत तीन साल तक मदद दी जाती है. पहले साल किसानों को प्रति हेक्टेयर 5,000 रुपये की नकद प्रोत्साहन राशि और 7,000 रुपये का इनपुट सब्सिडी (बीज, जैविक खाद आदि के लिए) दिया जाता है. दूसरे साल में यह नकद प्रोत्साहन घटकर 4,000 रुपये और सब्सिडी 2,500 रुपये हो जाती है. तीसरे साल में किसान को 3,500 रुपये की प्रोत्साहन राशि और 2,000 रुपये की इनपुट सब्सिडी दी जाती है.

1.5 लाख रुपये सालाना फंड मिलता है

योजना से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक, पहले साल सरकार की ओर से किसानों को बायो-फर्टिलाइजर और बायो-पेस्टीसाइड जैसे इनपुट्स दिए जाते हैं. दूसरे साल से हर 100 हेक्टेयर क्षेत्र के लिए एक स्वयं सहायता समूह (SHG) को जिम्मेदारी दी जाती है, जिसे 1.5 लाख रुपये सालाना फंड मिलता है ताकि वह बायो-इनपुट सप्लाई और टैंक निर्माण जैसे काम कर सके. इसके अलावा, गांव स्तर पर समुदाय आधारित संस्थाएं (CBOs) भी नियुक्त की जाती हैं, जो किसानों को प्रशिक्षण देने, योजना के क्रियान्वयन और फसल खरीद में मदद करती हैं.

देशी बीजों के उपयोग का बढ़ावा

सुन्‍दरगढ़ के मुख्य जिला कृषि अधिकारी (CDAO) एलबी मलिक ने कहा कि इस खरीफ सीजन में देशी खुशबूदार और बिना खुशबू वाले धान के बीजों का वितरण, जैविक खेती, ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन और नए CBOs की नियुक्ति जैसे काम चल रहे हैं. उन्होंने कहा कि सुंदरगढ़ एक आदिवासी बहुल जिला है, इसलिए यहां के किसानों के लिए जैविक खेती और देशी बीजों का उपयोग कोई नई बात नहीं है.

किसानों को मिलेगा 4,100 रुपये प्रति क्विंटल MSP

शुरुआत में जैविक तरीकों से उगाई जाने वाली पारंपरिक धान की किस्मों की प्रति हेक्टेयर औसत उपज, हाई-यील्डिंग किस्मों की तुलना में करीब 5 क्विंटल कम रहती है. इसको लेकर सुंदरगढ़ के मुख्य जिला कृषि अधिकारी (CDAO) ने कहा कि किसानों को शुरुआती कम उत्पादन से होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए योजना में प्रोत्साहन राशि और बायबैक पॉलिसी शामिल की गई है. इसके तहत किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 4,100 रुपये प्रति क्विंटल दिया जाता है.

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Published: 27 Jul, 2025 | 02:09 PM

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