हरियाणा के किसानों के लिए एक राहत भरी खबर है. राज्य सरकार ने ऐलान किया है कि 1 जून से सूरजमुखी की फसल की न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर सरकारी खरीद शुरू की जाएगी. यह खरीद 30 जून तक चलेगी और किसानों को प्रति क्विंटल ₹7280 का MSP मिलेगा. इस फैसले से सूरजमुखी उगाने वाले हजारों किसानों को उनकी मेहनत का सही दाम मिलेगा और बाजार की अनिश्चितता से भी राहत मिलेगी.
17 मंडियों में होगी फसल की खरीद
सरकार ने राज्यभर में 17 मंडियों को सूरजमुखी की खरीद केंद्र के रूप में चिह्नित किया है. इनमें अंबाला शहर, अंबाला कैंट, मुलाना, बराड़ा, शहजादपुर, साहा, नारायणगढ़, करनाल, इस्माइलाबाद, थानेसर, थोल, शाहबाद, लाडवा, बबैन, झांसा, बरवाला (पंचकूला) और जगाधरी शामिल हैं. इन केंद्रों पर किसानों को अपनी फसल बेचने के लिए सहूलियत और पारदर्शिता दोनों का ध्यान रखा जाएगा.
44 हजार मीट्रिक टन सूरजमुखी की उम्मीद
राज्य के कृषि विभाग के अनुसार, इस साल हरियाणा में लगभग 44,000 मीट्रिक टन सूरजमुखी उत्पादन होने का अनुमान है. सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि इस उपज की खरीद के लिए हैफेड और हरियाणा वेयरहाउसिंग कॉर्पोरेशन जैसे संस्थान मोर्चा संभालेंगे.
खेती को बढ़ावा देने के लिए 1267 करोड़ की मंजूरी
केवल सूरजमुखी ही नहीं, हरियाणा सरकार ने पूरे कृषि और बागवानी क्षेत्र को मजबूती देने के लिए 1267.49 करोड़ रुपये का बजट भी पास किया है. इस राशि का इस्तेमाल कृषि विश्वविद्यालयों, अनुसंधान संस्थानों और नई तकनीकों को बढ़ावा देने में किया जाएगा.
तिलहन और तेल बीजों पर खास ध्यान
राज्य सरकार ने तिलहन के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिए 24.17 करोड़ रुपये राष्ट्रीय तिलहन मिशन के तहत मंजूर किए हैं. इससे सूरजमुखी जैसी फसलों की पैदावार और गुणवत्ता में सुधार होगा. इसके अलावा बीज वितरण, बागवानी, कृषि विस्तार और पोषण मिशन के लिए भी बड़ी धनराशि को हरी झंडी मिल चुकी है.
भूजल संकट से निपटने की तैयारी
खेती में पानी की बढ़ती जरूरत और गिरते भूजल स्तर को देखते हुए सरकार अब ऑन-फार्म जल प्रबंधन पर जोर दे रही है. खासकर करनाल, कुरुक्षेत्र, पानीपत, यमुनानगर जैसे जिलों में यह योजना भूजल को बचाने में मदद करेगी.
प्राकृतिक खेती और तकनीक की ओर कदम
राज्य सरकार अब खेती को प्राकृतिक और टिकाऊ बनाने की दिशा में भी काम कर रही है. इसमें प्राकृतिक खेती मॉडल, मशरूम उत्पादन केंद्र, सब्जी फोकस्ड खेती मॉडल, और मशीनीकरण जैसी योजनाएं शामिल हैं. इससे न सिर्फ किसान की आय बढ़ेगी, बल्कि खेती आसान और पर्यावरण के अनुकूल भी बनेगी.