भारत–न्यूजीलैंड FTA में किसानों की जीत, डेयरी और फसलों पर नहीं होगी कोई रियायत
सेब और कीवी जैसे फलों के मामले में भी सरकार ने संतुलित रास्ता चुना है. तय सीमा तक ही कम शुल्क पर आयात की इजाजत होगी. अगर इससे ज्यादा फल आते हैं, तो पुराने भारी शुल्क ही लागू होंगे. इससे हिमाचल, जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड जैसे सेब उत्पादक राज्यों के किसानों को नुकसान नहीं होगा.
India New Zealand FTA: देश के किसानों के लिए राहत भरी खबर सामने आई है. भारत सरकार ने न्यूजीलैंड के साथ होने वाले मुक्त व्यापार समझौते यानी एफटीए(FTA) को इस तरह से तैयार किया है कि इससे देश के किसानों, छोटे कारोबारियों और घरेलू उद्योगों के हितों को कोई नुकसान न पहुंचे. भारत और न्यूजीलैंड के बीच यह समझौता अगले कुछ महीनों में लागू होने की संभावना है, लेकिन इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें किसानों की चिंता को केंद्र में रखा गया है.
डेयरी और फसलों पर कोई समझौता नहीं
इकोनॉमिक्स टाइम्स की खबर के अनुसार, भारत में करोड़ों किसान डेयरी और खेती से अपनी रोजी-रोटी चलाते हैं. यही वजह है कि सरकार ने इस एफटीए में दूध, दही, पनीर, क्रीम, व्हे पाउडर जैसे डेयरी उत्पादों को पूरी तरह बाहर रखा है. अगर इन पर आयात शुल्क कम किया जाता, तो विदेशी सस्ते उत्पाद भारतीय बाजार में भर जाते और दूध उत्पादक किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता.
इसी तरह प्याज, चना, मटर, मक्का, बादाम और चीनी जैसी जरूरी फसलों को भी इस समझौते से अलग रखा गया है. सरकार का साफ कहना है कि इन फसलों में देश पहले से आत्मनिर्भर है, इसलिए यहां विदेशी हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है.
छोटे उद्योगों की सुरक्षा भी प्राथमिकता
यह फैसला केवल किसानों तक सीमित नहीं है. एफटीए में तांबा, एल्यूमिनियम, आभूषण, हथियार और गोला-बारूद जैसे गैर-कृषि क्षेत्रों को भी आयात रियायतों से बाहर रखा गया है. इससे देश के MSME यानी छोटे और मझोले उद्योगों को बड़ी राहत मिलेगी. सरकार मानती है कि अगर इन सेक्टरों में सस्ते आयात की छूट दी जाती, तो घरेलू उद्योगों के लिए टिके रहना मुश्किल हो जाता.
सीमित रास्ता, पूरी निगरानी
हालांकि सरकार ने पूरी तरह आयात पर रोक नहीं लगाई है. कुछ चुनिंदा कृषि उत्पादों को सीमित मात्रा में देश में आने की अनुमति दी गई है. इसे टैरिफ रेट कोटा कहा जाता है, यानी एक तय सीमा तक ही कम या शून्य शुल्क पर आयात होगा. मनुका शहद इसका बड़ा उदाहरण है. अभी इस शहद पर भारत में करीब 66 फीसदी आयात शुल्क लगता है. नए समझौते के तहत तय मात्रा तक इसे बिना शुल्क मंगाया जा सकेगा, लेकिन इसके लिए न्यूनतम कीमत भी तय की गई है. इससे बाजार में सस्ता शहद भरने का खतरा नहीं रहेगा और देसी शहद उत्पादकों की सुरक्षा बनी रहेगी.
सेब और कीवी पर संतुलन की नीति
सेब और कीवी जैसे फलों के मामले में भी सरकार ने संतुलित रास्ता चुना है. तय सीमा तक ही कम शुल्क पर आयात की इजाजत होगी. अगर इससे ज्यादा फल आते हैं, तो पुराने भारी शुल्क ही लागू होंगे. इससे हिमाचल, जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड जैसे सेब उत्पादक राज्यों के किसानों को नुकसान नहीं होगा, वहीं उपभोक्ताओं को भी सीमित मात्रा में विदेशी फल मिल सकेंगे.
किसानों के लिए मजबूत संदेश
इस पूरे समझौते से एक बात साफ हो जाती है कि भारत अब व्यापार समझौते आंख बंद करके नहीं कर रहा. सरकार ने यह संदेश दिया है कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार जरूरी है, लेकिन किसानों की मेहनत और उनकी आय से कोई समझौता नहीं किया जाएगा.
भारत–न्यूजीलैंड एफटीए का यह खाका किसानों के लिए बड़ी जीत माना जा रहा है. इससे देश वैश्विक बाजार से भी जुड़ेगा और अपने अन्नदाताओं को सुरक्षित रखने का भरोसा भी कायम रखेगा. यही वजह है कि इस समझौते को आने वाले समय में भारतीय कृषि के लिए एक मजबूत और समझदारी भरा कदम माना जा रहा है.