भारत के खेतों से निकली एक छोटी-सी चीज “खली”, जिसे किसान अक्सर सिर्फ पशुओं का चारा समझते हैं, अब दुनिया के कई देशों में कमाई का जरिया बनती जा रही है. चाहे वो सोयाबीन खली हो या रेपसीड खली, भारत की ये तिलहन खलियां अब विदेशों में पशुओं के आहार का अहम हिस्सा बन चुकी हैं. अप्रैल-मई 2025-26 में इसके निर्यात में मामूली सही, पर स्थिर बढ़त दर्ज की गई है, जो ग्रामीण भारत के लिए एक अच्छी खबर है.
दो महीने में हुआ 7.81 लाख टन का निर्यात
2025-26 के शुरुआती दो महीनों (अप्रैल-मई) में भारत ने कुल 7.81 लाख टन तिलहन खली का निर्यात किया, जबकि पिछले साल इसी समय ये आंकड़ा 7.67 लाख टन था. यानी 1.79 फीसदी की वृद्धि. मई 2025 में अकेले 3.15 लाख टन खली निर्यात की गई.
अफ्रीका और पश्चिम एशिया में बढ़ रही है मांग
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SEA) के मुताबिक अफ्रीका और पश्चिम एशिया के देश जैसे केन्या, कुवैत और UAE भारत से बड़ी मात्रा में सोयाबीन खली खरीद रहे हैं. अफ्रीकी देशों में पशुपालन के बढ़ते रुझान के कारण इन देशों में इसकी खपत बढ़ी है.
सोयाबीन खली और रेपसीड खली बनीं निर्यात की धुरी
सोयाबीन खली के निर्यात में इस साल अच्छी बढ़त देखने को मिली है. अप्रैल-मई 2025-26 के दौरान इसका निर्यात 3.44 लाख टन से बढ़कर 3.87 लाख टन तक पहुंच गया. वहीं दूसरी ओर, रेपसीड खली भी भारत की एक मजबूत निर्यात वस्तु बनकर उभरी है. इसकी सबसे ज्यादा मांग दक्षिण कोरिया, चीन, थाईलैंड और बांग्लादेश जैसे देशों में देखी जा रही है.
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन (SEA) के मुताबिक, भारतीय रेपसीड खली की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेहद प्रतिस्पर्धी हैं, जहां कांडला बंदरगाह से इसका FOB मूल्य लगभग $200 प्रति टन है, जबकि यूरोप के हैम्बर्ग में यही कीमत करीब $290 प्रति टन है. यही वजह है कि भारत से रेपसीड खली के निर्यात को नया बढ़ावा मिल रहा है.
किन देशों ने सबसे ज्यादा मंगाई भारत की खली?
दक्षिण कोरिया: 84,966 टन (जिसमें 60,856 टन रेपसीड, 13,681 टन अरंडी और 10,429 टन सोयाबीन खली)
चीन: 1.17 लाख टन (जिसमें 1.13 लाख टन रेपसीड खली)
बांग्लादेश: 1.02 लाख टन (54,762 टन रेपसीड और 47,880 टन सोयाबीन खली)
जर्मनी: 58,945 टन सोयाबीन खली
फ्रांस: 16,705 टन सोयाबीन खली
किसानों और देश की अर्थव्यवस्था के लिए राहत
इस छोटे लेकिन स्थिर बढ़त ने किसानों को राहत दी है, खासकर उन राज्यों में जहां तिलहन की खेती बड़े पैमाने पर होती है जैसे कि मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र. SEA की रिपोर्ट के मुताबिक, अगर इसी तरह वैश्विक मांग बनी रही, तो भारत के खली निर्यात को और भी बड़ा बाजार मिल सकता है.