भारत ने यूरोपीय संघ (EU) को कम टैरिफ यानी सस्ती दर पर चीनी भेजने का कोटा तय कर दिया है. वर्ष 2025-26 के लिए 5,841 टन चीनी के निर्यात की अनुमति दी गई है. यह कोटा एक खास योजना के तहत आता है जिसे टैरिफ रेट कोटा (TRQ) कहा जाता है. इस योजना में एक तय मात्रा तक ही माल कम शुल्क पर भेजा जा सकता है, उसके बाद उस पर भारी टैक्स लग जाता है. ऐसे में यह फैसला भारत के शुगर मिलों, किसानों और निर्यातकों के लिए राहत और मुनाफे वाला साबित हो सकता है.
क्या है TRQ और क्यों है यह खास?
टैरिफ रेट कोटा (TRQ) एक तरह की व्यापारिक व्यवस्था है जिसमें किसी देश को सीमित मात्रा में सामान दूसरे देश को सस्ती दरों पर भेजने की इजाजत मिलती है. भारत को यूरोपीय संघ से यह सुविधा मिली है. यानी 5,841 टन तक भारत की चीनी को EU में कम टैक्स देना होगा. लेकिन इस सीमा से ज्यादा निर्यात होने पर भारी शुल्क देना पड़ेगा.
2025-26 के लिए तय हुआ कोटा
भारत सरकार ने 1 अगस्त 2025 को इस कोटे की अधिसूचना जारी की है. इसके मुताबिक अक्टूबर 2025 से लेकर सितंबर 2026 तक के लिए यह कोटा लागू रहेगा. यह कोटा खासतौर पर एग्रीकल्चर एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी (APEDA) के माध्यम से लागू किया जाएगा.
इन कंपनियों को मिलेगा फायदा
इस योजना के तहत जो भी कंपनियां या शुगर मिलें चीनी का निर्यात करना चाहती हैं, उन्हें APEDA की सिफारिश पर मुंबई स्थित विदेश व्यापार महानिदेशालय (DGFT) से प्रमाण पत्र (Certificate of Origin) लेना होगा. इसी के आधार पर तय होगा कि किस कंपनी को कितनी मात्रा में चीनी भेजने की अनुमति मिलेगी.
किसानों के लिए क्या मायने रखता है ये फैसला?
भारतीय गन्ना किसान लंबे समय से शुगर मिलों की बकाया भुगतान और एक्सपोर्ट लिमिट की समस्याओं से जूझ रहे हैं. ऐसे में यूरोपीय बाजार में भारत को एक्सपोर्ट का रास्ता खुलना उनके लिए राहत भरी खबर है. इससे घरेलू चीनी की खपत का दबाव घटेगा और चीनी मिलों को ज्यादा रेट मिलने की संभावना बढ़ेगी, जिसका असर किसानों के भुगतान पर भी दिख सकता है.
भारत की चीनी निर्यात नीति में यह कदम क्यों अहम है?
भारत में चीनी उत्पादन हर साल ज्यादा हो रहा है, लेकिन वैश्विक बाजार में कई बार निर्यात पर रोक या शर्तें लागू की जाती हैं. TRQ जैसे सीमित और लक्षित निर्यात समझौते भारत को वैश्विक बाजार में संतुलन बनाए रखने में मदद करते हैं. इससे अंतरराष्ट्रीय संबंध भी मजबूत होते हैं और घरेलू उद्योग को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में टिकने का मौका मिलता है.