गिरते रुपये ने बढ़ाई भारतीय चीनी की दुनियाभर में मांग, 1 लाख टन के सौदे पक्के

भारत की चीनी खासकर एशिया और अफ्रीका में बेहद लोकप्रिय हो रही है. कई देशों ने भारतीय चीनी के लिए औपचारिक पूछताछ भी शुरू कर दी है. इनमें शामिल हैं अफगानिस्तान, श्रीलंका, सोमालिया, यमन, केन्या, और मध्य–पूर्व तथा अफ्रीका के कई अन्य देश हैं.

नई दिल्ली | Published: 4 Dec, 2025 | 09:09 AM

Sugar Export: भारत के चीनी उद्योग में इस समय जबरदस्त हलचल है. सरकार द्वारा 14 नवंबर 2025 को चीनी मिलों को 15 लाख टन चीनी निर्यात करने की अनुमति मिलते ही बाजार में नई रौनक आ गई. शुरुआत में निर्यातकों को शक था कि भारत की चीनी अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत के मुकाबले टिक नहीं पाएगी, लेकिन पिछले कुछ हफ्तों में रुपये का तेज गिरना, डॉलर के मुकाबले 90 रुपये के पार पहुंचना पूरा खेल बदल चुका है. अब तक 1 लाख टन से अधिक चीनी के निर्यात सौदे पक्के हो चुके हैं, और खेपों की डिलीवरी जनवरी तक की जा रही है.

कमजोर रुपया बना चीनी निर्यातकों का सबसे बड़ा साथी

बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के अनुसार,  रुपये का कमजोर होना आमतौर पर देश के लिए चिंता का विषय माना जाता है, लेकिन निर्यातकों के लिए यह किसी वरदान से कम नहीं है. जब शुरुआती सौदे हुए थे, उस समय डॉलर की कीमत लगभग 88 रुपये थी, लेकिन अब 90 रुपये के पार की गिरावट ने भारतीय चीनी को वैश्विक बाजार में काफी सस्ता और आकर्षक बना दिया है.

उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले दिनों में और भी कई बड़े सौदे होने की उम्मीद है, क्योंकि मौजूदा विदेशी मुद्रा स्थिति निर्यात के लिए बिल्कुल सही माहौल तैयार कर रही है.

कौन–कौन से देश भारतीय चीनी खरीदने के लिए तैयार?

भारत की चीनी खासकर एशिया और अफ्रीका में बेहद लोकप्रिय हो रही है. कई देशों ने भारतीय चीनी के लिए औपचारिक पूछताछ भी शुरू कर दी है. इनमें शामिल हैं अफगानिस्तान, श्रीलंका, सोमालिया, यमन, केन्या, और मध्य–पूर्व तथा अफ्रीका के कई अन्य देश हैं.

व्यापारियों का कहना है कि ज्यादातर सौदे 440–450 डॉलर प्रति टन (FOB वेस्ट कोस्ट) पर हुए हैं. कुछ देशों में यह रेट थोड़ा ज्यादा है. केन्या के लिए लगभग 510 डॉलर/टन और ईरान के बांदर अब्बास के लिए लगभग 470 डॉलर/टन, पड़ोसी देशों के लिए भारत से चीनी आयात काफी आसान और तेज होने के कारण वहां मांग में लगातार वृद्धि हो रही है.

यूपी की मिलों का दिलचस्प कदम

खाद्य मंत्रालय ने मिलों को निर्यात का कोटा पिछले तीन वर्ष के औसत उत्पादन के आधार पर दिया है. प्रत्येक मिल को उसके औसत उत्पादन का 5.286 फीसदी निर्यात करने की अनुमति मिली है. दिलचस्प बात ये है कि उत्तर प्रदेश की कई छोटी–मध्यम चीनी मिलों ने अपना कोटा खुद निर्यात करने के बजाय सीधा निर्यातकों को बेच दिया है, क्योंकि वे निर्यात प्रक्रियाओं को संभालने की क्षमता नहीं रखते. अनुमान है कि यह बेची गई मात्रा करीब 30,000–40,000 टन के बीच है. यह तरीका छोटे उद्योगों के लिए काफी फायदेमंद साबित हो रहा है.

अतिरिक्त 10 लाख टन निर्यात की मांग क्यों उठी?

नेशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज का कहना है कि केवल 15 लाख टन की अनुमति काफी नहीं है. उनका तर्क यह है 1 अक्टूबर 2025 तक मिलों के पास लगभग 7.5 मिलियन टन चीनी का स्टॉक बचा रहेगा. इससे मिलों की भारी पूंजी फंस जाएगी औऱ ब्याज का बोझ बढ़ता जाएगा.

कृषि मंत्रालय के अनुमान भी इस चिंता को सही ठहराते हैं. इस साल गन्ना उत्पादन बढ़कर 475.6 मिलियन टन होने की संभावना है, जो पिछले साल 454.6 मिलियन टन था. साल के पहले दो महीनों (अक्टूबर–नवंबर) में ही चीनी उत्पादन 50 फीसदी बढ़कर 4.14 मिलियन टन तक पहुंच गया है. यानी, उत्पादन भी बढ़ रहा है और स्टॉक भी भरता जा रहा है, ऐसे में निर्यात को बढ़ाना ही तर्कसंगत विकल्प लगता है.

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