चीनी से जीवन में मिठास आती है, बीमारियां नहीं… जानें क्यों गलत हैं इससे जुड़ी धारणाएं

अब एक आंकड़ा देखते हैं. क्या भारत प्रति व्यक्ति सबसे ज्यादा चीनी खाने वाले देशों में है? जवाब होगा- नहीं. बल्कि भारत पर कैपिटा सबसे कम चीनी की खपत वाले देशों में गिना जाता है. यह बताता है कि चीनी वह सबसे प्रमुख कारण नहीं है, जिससे डायबिटीज या ऐसी कुछ बीमारियां होती हैं, जिन्हें लोग चीनी के साथ जोड़ देते हैं.

Kisan India
नोएडा | Published: 27 Nov, 2025 | 09:00 AM

जीवन में कुछ अच्छा होता है तो वो मिठास से जुड़ता है. आम जीवन में कहा जाता है कि फलां काम से जीवन में मिठास आ गई. शुभ काम होता है तो मिठास से होता है. मुंह मीठा कराया जाता है. मिठास ऐसी चीज है, तो धर्म, वर्ग, संप्रदाय, क्षेत्र सबसे परे है. हर जगह, हर शुभ काम में, हर त्योहार में मिठास के साथ ही शुरुआत होती है. 

हिंदू धर्म में शुभ काम भगवान गणेश की पूजा से शुरू होता है और इसमें लड्डू खिलाया जाता है. जाहिर है, लड्डू मीठा होता है. बच्चे का अन्नप्राशन होता है तो उसे चीनी, मिसरी खिलाई जाती है. शादी के लड्डू हम सबने खाए भी होंगे और इससे जुड़ी कहावतें भी सुनी होंगी. होली की गुझिया, ईद की सिवइयां, दिवाली के लड्डू… सब तो चीनी की मिठास लिए होते हैं. शादी-ब्याह, गृह प्रवेश, नामकरण या कोई भी शुभ काम… सबकी शुरुआत चीनी से ही होती है. यह परंपरा हमें बताती है कि मिठास बांटना ही असली भारतीय संस्कृति है. सिर्फ भारतीय नहीं, पूरी दुनिया में रिश्तों की डोर बांधने का काम चीनी या मिठास करती है. 

पिछले कुछ समय में एक धारणा बनती दिखी है कि एक उम्र के बाद चीनी कम कर देनी चाहिए. किसी को सेहत बेहतर करनी हो, बॉडी बनानी हो. सबसे पहला खयाल कि चीनी छोड़ देते हैं. 35-40 की उम्र आते ही खयाल आने लगते हैं कि चीनी कम कर देनी चाहिए. सवाल यही है कि क्या यह धारणा सही है?

भारत को डायबिटीज कैपिटल कहने वाले कम नहीं हैं. जितनी तेजी से डायबिटीज के मामले सामने आए हैं, वो चिंता की बात है. जैसे ही कोई डायबिटिक होता है या बॉर्डर लाइन पर पहुंचता है, आमतौर पर दो वजह मान लेता है. पहली, जेनेटिक यानी परिवार में किसी की हिस्ट्री रही है डायबिटीज की. दूसरी, चीनी. यानी आप मीठा ज्यादा खाते हैं. यहां पर एक खास शब्द पर गौर करना जरूरी है. वह शब्द है ‘ज्यादा’. नमक, चीनी यहां तक कि दवाओं का भी सेवन जरूरत के हिसाब से होता है. जरूरत से ज्यादा होने पर ही कोई चीज नुकसान करती है. यह धारणा पूरी तरह गलत है कि जीवन में चीनी की मिठास होने से आपकी सेहत खराब होगी. इस बात के पुख्ता प्रमाण हैं.

चीनी का ऐतिहासिक रोल रहा है हमारी सभ्यता में, हमारी संस्कृति में, हमारे त्योहारों में, हमारी खुशियों में. इसके साथ स्वास्थ्य में भी चीनी को एनर्जी का स्रोत माना जाता है. शरीर और दिमाग दोनों को एनर्जी देने में चीनी अपना रोल अदा करता है. स्वाद तो बढ़ाता ही है. अगर हम अपनी संस्कृति से मिठाई हटा दें, तो सोच सकते हैं कि किस कदर सूनापन महसूस करेंगे. गुड़ और चीनी हमारे त्योहारों को ऐसा हिस्सा हैं, जिसे कोशिश करके भी अलग नहीं कर सकते.

अब एक आंकड़ा देखते हैं. क्या भारत प्रति व्यक्ति सबसे ज्यादा चीनी खाने वाले देशों में है? जवाब होगा- नहीं. बल्कि भारत पर कैपिटा सबसे कम चीनी की खपत वाले देशों में गिना जाता है.

चीनी की प्रति व्यक्ति खपत

  • भारत – लगभग 20.1 किलोग्राम प्रतिवर्ष
  • अमेरिका – लगभग 32 किलोग्राम प्रतिवर्ष
  • वैश्विक औसत – लगभग 22 किलोग्राम प्रतिवर्ष

यह बताता है कि चीनी वह सबसे प्रमुख कारण नहीं है, जिससे डायबिटीज या ऐसी कुछ बीमारियां होती हैं, जिन्हें लोग चीनी के साथ जोड़ देते हैं. दरअसल, इन बीमारियों का कारण आपकी लाइफस्टाइल से लेकर खान-पान की बाकी आदतें हैं. इसके साथ, आप अपने शरीर को कितना काम में लाते हैं, कितनी वर्जिश करते हैं. वर्जिश कम भी करें, तो फिजिकल एक्टिविटी कैसी है, उन सारी बातों के साथ बीमारियों का लेना-देना है. और यह बात भी सही है कि कोई भी चीज ज्यादा खाना नुकसानदेह होता है. भले ही वो कितनी भी लाभप्रद हो. जैसा ऊपर की पंक्तियों में भी जिक्र किया, दवा भी ज्यादा खाने से मना किया जाता है.

सेहत के अलावा इस धारणा को भी बदलने की जरूरत है कि चीनी की खपत बढ़ना मुश्किल है. खपत कम हुई भी नहीं है. इस्मा के महानिदेशक दीपक बल्लानी कहते हैं कि हेल्थ अवेयरनेस होना अच्छी बात है. लेकिन वह इन आशंकाओं को खारिज करते हैं कि हेल्थ अवेयरनेस की वजह से चीनी की खपत पर असर पड़ेगा. उन्होंने कहा कि भारत में घरेलू चीन की खपत स्थिर बनी हुई है. लगभग 280 लाख टन के आसपास खपत एक पैटर्न के मुताबिक है और उसमें कोई कमी आती नहीं दिख रही. 

साइंटिफिक तरीके से भारत में चीनी के खपत के पैटर्न का अध्ययन भी हो रहा है. इस काम में इस्मा बेहद गंभीरता से आगे बढ़ रहा है. अनुसंधान एजेंसियों के साथ जुड़कर पूरा जायजा लिया जा रहा है. क्षेत्रीय विविधताओं का भी इसमें ध्यान रखा जा रहा है. इस्मा के महानिदेशक दीपक बल्लानी ने बताया कि ग्रामीण और गैर-मेट्रो बाजारों का विस्तार हो रहा है. टियर टू और टियर थ्री शहरों में विकास की संभावना है, जहां जीवन शैली में बदलाव और आय के बढ़ते स्तर से पैकेज्ड खाद्य पदार्थों, मिठाइयों और पेय पदार्थों की मांग बढ़ रही है. वेल्यू ऐडेड प्रोडक्ट्स पर फोकस है. घरेलू पर कैपिटा कंजप्शन तो शायद बहुत तेजी से न बढ़े. लेकिन ब्रैंडेड और वेल्यू ऐडेड शुगर प्रोडक्ट्स के प्रोडक्शन और मार्केटिंग में काफी उम्मीदें हैं.

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Published: 27 Nov, 2025 | 09:00 AM

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