sugar MSP hike: देश के गन्ना किसानों की चिंता एक बार फिर बढ़ने लगी है. चालू पेराई सत्र की शुरुआत में ही गन्ना भुगतान का बकाया 2,000 करोड़ रुपये के पार पहुंच गया है. यह आंकड़ा न सिर्फ किसानों की परेशानियों को दिखाता है, बल्कि चीनी उद्योग में गहराते नकदी संकट की भी ओर इशारा करता है. हालात को संभालने के लिए केंद्र सरकार चीनी के न्यूनतम बिक्री मूल्य में बढ़ोतरी जैसे अहम कदमों पर गंभीरता से विचार कर रही है, ताकि मिलों की आर्थिक स्थिति सुधरे और किसानों को समय पर मेहनत की कमाई मिल सके.
शुरुआती महीनों में ही बिगड़े हालात
बिजनेस लाइन के अनुसार, आमतौर पर पेराई सत्र के शुरुआती दौर में भुगतान की स्थिति बेहतर रहती है, लेकिन इस बार तस्वीर अलग दिख रही है. निजी चीनी मिलों के संगठन इंडियन शुगर एंड बायो-एनर्जी मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन का कहना है कि केवल पहले दो महीनों में ही बकाया 2,000 करोड़ रुपये तक पहुंच जाना गंभीर संकेत है. इसका सीधा असर गन्ना किसानों पर पड़ रहा है, जो खेती, खाद और मजदूरी के खर्च के लिए समय पर भुगतान पर निर्भर रहते हैं.
क्यों फंसी मिलों की नकदी
चीनी मिलों का कहना है कि घरेलू बाजार में चीनी के दाम कमजोर हैं, जबकि गन्ने की लागत लगातार बढ़ रही है. सरकार हर साल गन्ने का दाम बढ़ाती है, जिसे मिलों को कानूनन चुकाना होता है, लेकिन चीनी का न्यूनतम बिक्री मूल्य कई वर्षों से नहीं बढ़ा है. इसके अलावा, निर्यात पर सीमाएं, एथनॉल के लिए सीमित डायवर्जन और वैश्विक बाजार में अधिक आपूर्ति ने मिलों की आमदनी पर दबाव बढ़ा दिया है.
एमएसपी बढ़ाने पर सरकार का विचार
खाद्य मंत्रालय के अधिकारियों ने संकेत दिए हैं कि सरकार चीनी के न्यूनतम बिक्री मूल्य में संशोधन पर सक्रियता से मंथन कर रही है. सरकार को अंदेशा है कि जनवरी के मध्य तक गन्ना बकाया और बढ़ सकता है. ऐसे में एमएसपी बढ़ाना, निर्यात को कुछ राहत देना और एथनॉल के लिए ज्यादा मात्रा में चीनी डायवर्ट करने जैसे विकल्पों पर विचार हो रहा है. माना जा रहा है कि आने वाले एक महीने में इस दिशा में ठोस फैसला लिया जा सकता है.
उद्योग की पुरानी मांग
चीनी उद्योग लंबे समय से यह मांग करता रहा है कि चीनी का न्यूनतम बिक्री मूल्य कम से कम उत्पादन लागत के बराबर तय किया जाए. उद्योग के अनुसार, इस समय एक किलो चीनी बनाने की औसत लागत 41 रुपये से ज्यादा है, जबकि एमएसपी करीब 31 रुपये प्रति किलो पर अटका हुआ है. इस अंतर की वजह से मिलों को हर साल घाटा उठाना पड़ता है, जिसका असर सीधे किसानों के भुगतान पर पड़ता है.
राज्यों में अलग-अलग स्थिति
बकाया की स्थिति राज्यों में भी अलग-अलग है. महाराष्ट्र में भुगतान का दबाव ज्यादा देखा जा रहा है, जबकि उत्तर प्रदेश में पेराई अपेक्षाकृत देर से शुरू होने के कारण वहां स्थिति फिलहाल संभली हुई है. नियमों के अनुसार, मिलों को गन्ना खरीदने के 14 दिनों के भीतर भुगतान करना होता है, इसके बाद राशि बकाया मानी जाती है.
उत्पादन और निर्यात की तस्वीर
अनुमान है कि 2025-26 सीजन में देश में चीनी का उत्पादन करीब 343 लाख टन रह सकता है. इसमें से एक हिस्सा एथनॉल बनाने के लिए इस्तेमाल होगा, जिससे अतिरिक्त स्टॉक कुछ हद तक कम हो सकता है. निर्यात को लेकर सरकार सतर्क है, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय कीमतें अभी घरेलू कीमतों के मुकाबले ज्यादा आकर्षक नहीं हैं. हालांकि, ब्राजील जैसे बड़े उत्पादक देशों का सीजन खत्म होने के बाद हालात सुधरने की उम्मीद जताई जा रही है.
2018-19 जैसे हालात की आशंका
उद्योग से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो हालात 2018-19 जैसे हो सकते हैं, जब गन्ना बकाया 20,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया था. उस समय सरकार को एमएसपी बढ़ाने और निर्यात प्रोत्साहन जैसे बड़े फैसले लेने पड़े थे.
किसानों की उम्मीदें
फिलहाल सरकार और उद्योग दोनों की प्राथमिकता यही है कि गन्ना किसानों को समय पर भुगतान मिले और अतिरिक्त चीनी का बोझ न बढ़े. आने वाले हफ्तों में एमएसपी, निर्यात और एथनॉल से जुड़े फैसले यह तय करेंगे कि गन्ना किसानों की राहत कितनी जल्दी जमीन पर नजर आएगी.