किसानों के हक में सख्त भारत, अमेरिका को नहीं मिलेगी चावल-गेहूं में छूट

भारत और अमेरिका दोनों इस सप्‍ताह या सितंबर तक व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करना चाहते हैं. लेकिन भारत चाहता है कि पहले एक छोटा प्रारंभिक समझौता हो जाए, जिससे वह 9 जुलाई से लगने वाले अमेरिका के जवाबी टैरिफ (26 फीसदी) से बच सके.

नई दिल्ली | Published: 11 Jun, 2025 | 09:57 AM

भारत और अमेरिका के बीच एक बड़ा व्यापार समझौता बनने की कगार पर है, लेकिन इसके बीच में सबसे अहम मुद्दा बनकर उभरा है-भारत की खेती और किसानों का भविष्य. अमेरिका चाहता है कि भारत अपने कृषि बाजार को ज्यादा खुले, लेकिन भारत ने साफ कह दिया है किसानों के हितों से समझौता नहीं होगा.

इसी के साथ सरकार ने कृषि उत्पादों को तीन श्रेणियों में बांटते हुए अपनी नीति को एकदम स्पष्ट कर दिया है “ना-सुलझाने योग्य”, “अत्यंत संवेदनशील” और “उदार”. यह फैसला भारत के खाद्य सुरक्षा, ग्रामीण रोजगार और राजनीतिक-सामाजिक संतुलन को ध्यान में रखकर लिया गया है.

तीन स्तरों में बंटी खेती की सुरक्षा नीति

ना-सुलझाने योग्य (Non-Negotiable): इस श्रेणी में चावल, गेहूं जैसे देश के मुख्य खाद्य पदार्थ हैं. इन पर किसी भी हालत में कोई आयात शुल्क (टैरिफ) में छूट नहीं दी जाएगी. सरकार का मानना है कि यह भारत की खाद्य आत्मनिर्भरता की रीढ़ हैं.

अत्यंत संवेदनशील (Very Sensitive): इसमें सेब जैसी फसलें शामिल हैं, जिनका सीधा संबंध हिमाचल, उत्तराखंड जैसे राज्यों के किसानों और राजनीति से है. इन पर सीमित रियायतें दी जा सकती हैं, वो भी “टैरिफ-दर-कोटा” जैसे सीमित विकल्पों के माध्यम से.

उदार (Liberal): बादाम, पिस्ता, अखरोट, ब्लूबेरी जैसे महंगे और आमतौर पर अमीर तबकों द्वारा खपत किए जाने वाले उत्पाद इस श्रेणी में आते हैं. इन पर भारत टैरिफ में कटौती के लिए तैयार है, जिससे अमेरिका को संतुलन बनाने का मौका मिलेगा.

समझौते की जल्दबाजी क्यों?

भारत और अमेरिका दोनों इस सप्‍ताह या सितंबर तक व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करना चाहते हैं. लेकिन भारत चाहता है कि पहले एक छोटा प्रारंभिक समझौता हो जाए, जिससे वह 9 जुलाई से लगने वाले अमेरिका के जवाबी टैरिफ (26 फीसदी) से बच सके. इस पहले चरण का फोकस बाजार पहुंच (Market Access) पर होगा यानी अमेरिका को किन उत्पादों में भारत के बाजार में जगह दी जा सकती है.

अमेरिका की मांगें और उद्योग की चिंता

अमेरिकी कृषि उद्योग भारत में अपने उत्पादों को बेचने का बड़ा मौका देख रहा है, लेकिन भारत की सब्सिडी नीति और टैरिफ को लेकर वह चिंतित है.

डेयरी उद्योग: अमेरिकी डेयरी कंपनियों का कहना है कि अगर लैक्टोज, व्हे प्रोटीन जैसे उत्पादों पर प्रतिबंध हटे, तो $52 मिलियन का निर्यात दोगुना हो सकता है.

गेहूं: यूएस व्हीट एसोसिएट्स के अनुसार, भारत की घरेलू सब्सिडी नीति और आयात टैरिफ उनके लिए बाधा हैं. अगर नियम बदले तो उन्हें $792 मिलियन तक का लाभ मिल सकता है.

मक्का और इथेनॉल: अमेरिका चाहता है कि GMO मक्का और ईंधन के लिए इथेनॉल को भारत आयात करने दे. सिर्फ 15 फीसदी बाजार हिस्सेदारी मिलने से $22 मिलियन, और इथेनॉल से $237 मिलियन का सालाना लाभ हो सकता है.

सोयाबीन: अमेरिकी सोया उत्पादकों का कहना है कि भारत में 15 फीसदी-45 फीसदी के भारी टैरिफ और अन्य बाधाएं उनके लिए मुश्किलें पैदा करती हैं.

बादाम और ब्लूबेरी: ऑस्ट्रेलिया को पहले से 50 फीसदी शुल्क लाभ मिल रहा है. अमेरिका का कहना है कि अगर उन्हें भी राहत मिले, तो वे प्रतिस्पर्धा में बने रह सकते हैं.

भारत का जवाब: “किसानों की कीमत पर समझौता नहीं”

भारत के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि अमेरिका की मांगों को समझा जा रहा है, लेकिन किसानों की सामाजिक-राजनीतिक भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. अमेरिकी वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक ने भी कहा, “हमें राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ संतुलन बनाना होगा, जो दोनों देशों के लिए स्वीकार्य हो.”