सोयाबीन की बुवाई में भारी गिरावट, किसान क्यों बना रहे दूरी?

सोयाबीन का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) बढ़ाकर इस बार 5,328 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है. लेकिन इसके बावजूद किसानों को लाभ नहीं मिल पाया.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 6 Sep, 2025 | 08:46 AM

भारत में तेलहन फसलों की खेती लंबे समय से किसानों की आमदनी का बड़ा आधार रही है. इनमें सोयाबीन सबसे अहम फसल मानी जाती है. लेकिन इस साल सोयाबीन किसानों का उत्साह कुछ कम नजर आ रहा है. आंकड़े बताते हैं कि पिछले साल की तुलना में इस बार सोयाबीन के रकबे में 5 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आई है. यह गिरावट सिर्फ खेती तक सीमित नहीं है, बल्कि किसानों की कमाई और देश की खाद्य तेल आत्मनिर्भरता की दिशा में भी एक बड़ी चिंता बनकर सामने आ रही है.

भारत खाद्य तेल के लिए क्यों है आयात पर निर्भर?

बिजनेस लाइन की खबर के अनुसार, भारत दुनिया का सबसे बड़ा खाद्य तेल आयातक देश है. आज भी घरेलू जरूरत का लगभग 60 फीसदी से ज्यादा तेल बाहर से मंगाया जाता है. प्रधानमंत्री और वरिष्ठ नेता कई बार आत्मनिर्भरता पर जोर दे चुके हैं, लेकिन हकीकत यह है कि सस्ते आयातित तेलों की वजह से भारतीय किसानों की उपज को बाजार में सही दाम नहीं मिल रहा. यही कारण है कि धीरे-धीरे किसान सोयाबीन की खेती से दूरी बनाने लगे हैं.

MSP होने के बावजूद किसानों को नहीं मिला लाभ

सोयाबीन का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) बढ़ाकर इस बार 5,328 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है. लेकिन इसके बावजूद किसानों को लाभ नहीं मिल पाया. वजह है आयात शुल्क में कटौती और बाजार में सस्ते विकल्पों की उपलब्धता. नतीजा यह हुआ कि सोयाबीन और उससे बनने वाले तेल व खली की कीमतें लगातार दबाव में रहीं.

पिछले सीजन में हालात इतने खराब थे कि सरकार को 20 लाख टन सोयाबीन MSP पर खरीदना पड़ा, जिससे किसानों को कुछ राहत तो मिली लेकिन सरकार पर लगभग 2,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ आ गया.

बढ़ रहा है सरकार का खर्च

विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले समय में यह बोझ और बढ़ सकता है. अनुमान है कि अगर सरकार फिर से बड़े पैमाने पर खरीद करती है, तो इस बार खर्च 5,000 करोड़ रुपये से ज्यादा हो सकता है. सवाल यह उठता है कि क्या यह तरीका लंबे समय तक टिकाऊ है या फिर सरकार को नीति में कोई बड़ा बदलाव करना चाहिए.

किसानों की मांग: नीतियों में सुधार हो

सोयाबीन प्रोससर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) के कार्यकारी निदेशक डी.एन. पाठक ने सरकार से दो बड़े सुझाव दिए हैं.

पहला- आयातित खाद्य तेलों पर सीमा शुल्क बढ़ाया जाए. लंबे समय से शून्य या बहुत कम शुल्क पर आयात होने से घरेलू किसानों की उपज पर दबाव है. अगर आयात शुल्क कम से कम 10 फीसदी बढ़ाया जाए, तो किसानों को सही दाम मिल सकेगा.

दूसरा- भावांतर भुगतान योजना लागू की जाए. इस योजना के तहत किसानों को MSP और बाजार भाव के बीच का अंतर सीधे उनके बैंक खाते में भेजा जाता है. इससे वास्तविक किसानों को फायदा होगा और सरकार का खर्च भी कम हो जाएगा.

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