भारत दुनिया में सबसे बड़े जीरा उत्पादक और निर्यातक देशों में गिना जाता है. लेकिन इस वर्ष जीरा व्यवसाय उतना चमकता नहीं दिख रहा. अंतरराष्ट्रीय बाजार में मांग घटने से भारतीय जीरा निर्यात पर दबाव बढ़ गया है. खासकर चीन और बांग्लादेश जैसे प्रमुख खरीदारों की ओर से मांग में आई कमजोरी ने निर्यातकों को परेशान कर दिया है. यह स्थिति न सिर्फ बाजार को प्रभावित कर रही है, बल्कि आने वाले महीनों में किसानों के बुवाई के फैसलों पर भी असर डाल सकती है.
चीन की अच्छी फसल ने कम की भारतीय जीरे की मांग
बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के सबसे बड़े खरीदार चीन में इस बार जीरे की घरेलू फसल काफी अच्छी रही. इसके कारण चीन की कीमतें भारतीय जीरे की तुलना में 200 से 250 डॉलर प्रति टन तक कम हैं. ऐसे में चीन के पास भारत से जीरा खरीदने का कोई बड़ा कारण नहीं बचा. व्यापार जगत से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि चीन ने इस वर्ष अब तक 10,000 टन से ज्यादा भारतीय जीरा आयात नहीं किया, जबकि सामान्य परिस्थितियों में यह खरीद कई गुना अधिक होती है. यह कमी भारत के कुल निर्यात पर सीधा असर डाल रही है.
चीन आमतौर पर भारत के लिए सबसे बड़ा बाजार रहा है, लेकिन इस बार की कमजोर मांग से निर्यातक खासे चिंतित हैं. घरेलू फसल अच्छी होने के कारण चीन के बाजार में भारतीय जीरे की जरूरत लगभग समाप्त सी हो गई है.
बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता से रुकी व्यापारिक गतिविधि
बांग्लादेश भारत का एक और बड़ा खरीदार रहा है, लेकिन वहां की राजनीति में जारी अस्थिरता के चलते भारतीय निर्यातकों ने जोखिम न लेने का निर्णय लिया है. अनेक शिपमेंट या तो धीमी हो गई हैं या फिर अभी तक रुकी हुई हैं. व्यापार विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक वहां की स्थिति सामान्य नहीं होती, निर्यातक बड़े सौदे करने से बचते रहेंगे. इस कारण भारतीय जीरे की मांग में और गिरावट देखी जा रही है.
निर्यात में भारी गिरावट, मूल्य भी घटा
स्पाइस बोर्ड द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल से अगस्त 2025 के बीच जीरा निर्यात में पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में 17 प्रतिशत की गिरावट दर्ज हुई है. मात्रा के हिसाब से निर्यात 1,11,532 टन से घटकर 92,810 टन रह गया. सिर्फ यही नहीं, मूल्य के मामले में भी बड़ी गिरावट देखी गई. पिछले वर्ष 367.57 मिलियन डॉलर की तुलना में इस वर्ष अप्रैल-अगस्त के बीच जीरे का मूल्य मात्र 257.10 मिलियन डॉलर दर्ज किया गया.
इस गिरावट के कारण बाजार में स्टॉक बढ़ते जा रहे हैं, जिसे ‘कैरी फॉरवर्ड स्टॉक’ कहा जाता है. अगर यह स्थिति लंबे समय तक बनी रही, तो किसानों की बुवाई योजनाओं पर भी असर पड़ना तय है, खासकर गुजरात जैसे बड़े उत्पादन वाले राज्यों में.
अगले साल सुधार की उम्मीद, लेकिन निर्भरता कई कारकों पर
विश्व स्पाइस संगठन के चेयरमैन रामकुमार मेनन का मानना है कि अभी जीरे की मांग कमजोर जरूर है, लेकिन आने वाले साल में स्थिति बेहतर हो सकती है. उनके अनुसार, बाजार की दिशा अगले कुछ महीनों में बुवाई, मौसम और कीमतों के उतार-चढ़ाव पर निर्भर करेगी. जनवरी तक जीरे की वास्तविक मांग और निर्यात के बारे में एक स्पष्ट तस्वीर सामने आने की संभावना है.
पिछले वित्त वर्ष में भारत ने 2.29 लाख टन से अधिक जीरा निर्यात किया था, जिसका मूल्य 732 मिलियन डॉलर था. इनमें अकेले चीन ने 38,700 टन से अधिक की खरीद की थी. इस वर्ष की स्थिति इससे बिल्कुल उलट है, और यह अंतर व्यापार और कृषि दोनों के लिए चिंता का विषय बन गया है.
भारत की अर्थव्यवस्था में मसालों का महत्वपूर्ण स्थान है, और जीरा उसमें प्रमुख भूमिका निभाता है. इसलिए वर्तमान में जीरे के निर्यात में आई गिरावट केवल व्यापारिक चिंता नहीं, बल्कि किसानों के लिए भी बड़ी चुनौती है. उम्मीद है कि आने वाले महीनों में मांग सुधरेगी और भारतीय जीरा फिर से वैश्विक बाजार में अपनी ताकत दिखाएगा.