chilli farming: पंजाब के फिरोजपुर सहित कई जिलों में लाल मिर्च की खेती एक समय किसानों की कमाई का बड़ा जरिया थी. खेतों में लहलहाती लाल मिर्च न केवल घरेलू बाजार की मांग पूरी करती थी, बल्कि निर्यात के जरिए किसानों को अच्छी आमदनी भी देती थी. परिवारों को इस फसल से दशकों तक सहारा मिला. लेकिन अब हालात पूरी तरह बदल चुके हैं. किसान लगातार मिर्च की खेती से दूरी बना रहे हैं क्योंकि मेहनत ज्यादा और फायदा बेहद कम रह गया है.
क्यों घट रही है खेती का रकबा
पहले जहां किसान 50 से 100 एकड़ में मिर्च उगाते थे, अब वही किसान आधी जमीन या उससे भी कम पर खेती कर रहे हैं. कई किसानों ने तो इस साल मिर्च की खेती बिल्कुल नहीं की. किसानों का मानना है कि कीमतें लगातार गिर रही हैं, मार्केटिंग की कोई प्रणाली नहीं है और सरकार की ओर से विशेष सहयोग भी नहीं मिलता. ऐसे में, जोखिम उठाकर खेती जारी रखना दिन-ब-दिन मुश्किल होता जा रहा है.
निर्यात में गिरावट से टूटी कमर
भारत में मिर्च के बड़े व्यापार केंद्र गुंटूर में पिछले कुछ वर्षों में कीट प्रकोप बढ़ा है. उन्हें नियंत्रित करने के लिए भारी रसायनों का प्रयोग किया गया जिससे गुणवत्ता परीक्षण में मिर्च फेल होने लगी. इसके बाद चीन सहित कई देशों ने आयात पर रोक लगा दी. जब दक्षिण भारतीय मिर्च का भाव गिरा, तो उसका असर पंजाब सहित पूरे देश के बाजार पर पड़ा. पंजाब की मिर्च गुणवत्ता के हिसाब से अच्छी थी, लेकिन बाजार भाव वहीं बैठ गया. किसानों को इस वर्ष मात्र 70 से 80 रुपये प्रति किलो ही मिला, जबकि पहले यही दाम 200 से 250 रुपये तक रहते थे.
बढ़ती लागत और घटती कमाई का संकट
मिर्च की खेती में मेहनत और लागत दोनों अधिक हैं. एक एकड़ पर लगभग एक लाख रुपये का खर्च आता है. सिंचाई, दवाइयों, मजदूरी और तुड़ाई की लागत अलग. पहले बाजार अच्छा होता था तो किसान लाभ में रहते थे. लेकिन इस वर्ष लागत निकालना भी भारी पड़ गया. उत्पादन तो मेहनत से हो जाता है, लेकिन बिक्री के वक्त किसानों को निराशा हाथ लगती है.
सरकार की उदासीनता से बढ़ी किसानों की परेशानी
किसानों का आरोप है कि सरकारें बार-बार फसल विविधिकरण की बात करती हैं, लेकिन जब मिर्च के लिए बाजार या प्रोसेसिंग की बारी आती है, तो कोई मदद नहीं मिलती. मिर्च क्लस्टर और मार्केट लिंकिंग की योजनाएं केवल कागजों में ही रह गईं. किसानों ने कई बार संबंधित अधिकारियों से मदद मांगी, लेकिन समाधान आज तक नहीं मिला. किसानों का कहना है कि उन्होंने अपनी मेहनत से मिर्च उद्योग खड़ा किया, और अब जब यह गिर रहा है, तो सरकारें चुप बैठी हैं.
मौसम की मार ने भी कम नहीं की मुश्किलें
इस साल धान की जल्दी बुवाई के कारण किसानों के पास मिर्च की तुड़ाई के लिए पर्याप्त समय नहीं मिला. बरसात और बाढ़ के कारण कई खेतों में तैयार फसल नष्ट हो गई. फसल कम होने से लागत और बढ़ गई तथा मुनाफा और घट गया.
किसानों की गुहार
किसानों का कहना है कि अगर सरकार ने अभी कदम नहीं उठाए तो पंजाब में मिर्च की खेती खत्म हो जाएगी. किसान चाहते हैं कि सरकार मार्केटिंग व्यवस्था मजबूत करे, निर्यात के रास्ते खोले और खरीद केंद्र स्थापित करे ताकि उन्हें अपनी मेहनत का उचित दाम मिल सके. किसान मानते हैं कि यदि सहयोग मिल जाए तो मिर्च की खेती पंजाब की आर्थिक मजबूती का बड़ा आधार बन सकती है.