केरल में बारिश बनी वरदान, इस साल 10 फीसदी तक बढ़ सकता है रबड़ का उत्पादन

अंतरराष्ट्रीय बाजार में रबड़ की कीमतें पिछले कुछ दिनों में गिर गई हैं. दो हफ्तों में इसकी कीमत 156 से 142 रुपये प्रति किलो तक आ गई है. इससे भारत में भी रबड़ की कीमतों पर असर पड़ सकता है.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 4 Jun, 2025 | 05:17 PM

केरल में इस साल मानसून ने किसानों के चेहरे पर मुस्कान ला दी है. अच्छी बारिश से रबड़ की फसल में बढ़ोतरी की उम्मीदें जाग गई हैं, जो किसानों के लिए राहत की खबर है. हालांकि, इस खुशियों के बीच कुछ चुनौतियां भी बनी हुई हैं, जैसे कीमतों में उतार-चढ़ाव और बदलते मौसम की अनिश्चितता, जो रबड़ की खेती को प्रभावित कर सकती हैं.

इस साल किसानों को भरोसा है कि रबड़ की पैदावार 5 से 10 प्रतिशत तक बढ़ सकती है. बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के अनुसार इंडियन रबड़ डीलर्स फेडरेशन के अध्यक्ष जॉर्ज वेली ने कहा कि अगर बारिश के कारण टैपिंग के दिन खराब नहीं होते, तो रबड़ की मात्रा पिछले साल से ज्यादा होगी. 2023-24 में भारत में कुल 8,57,000 टन प्राकृतिक रबड़ पैदा हुआ था.

कीमतों में गिरावट से परेशानी

अंतरराष्ट्रीय बाजार में रबड़ की कीमतें पिछले कुछ दिनों में गिर गई हैं. दो हफ्तों में इसकी कीमत 156 से 142 रुपये प्रति किलो तक आ गई है. इससे भारत में भी रबड़ की कीमतों पर असर पड़ सकता है. खासकर तब जब इंडस्ट्री के पास बाहर से रबड़ खरीदने के कई विकल्प हैं.

मानसून ने दी उम्मीद

अच्छी बारिश से जून के बीच से जुलाई और अगस्त तक ताजा रबड़ बाजार में आने की उम्मीद है. कई खेतों में पेड़ों को बारिश से बचाने का काम चल रहा है. रबड़ खरीदने वाले बड़े कारखाने भी बाजार में खरीदारी कर रहे हैं, लेकिन वे दुनिया के हालात पर नजर बनाए हुए हैं. फिलहाल बाजार में कीमतें स्थिर हैं. हाल ही में 189 रुपये प्रति किलो की कीमत रही.

जलवायु में बदलाव की चिंता

हैरिसन्स मलयालम लिमिटेड के सीईओ संतोष कुमार ने बताया कि अच्छी बारिश से फसल अच्छी होने की उम्मीद है, लेकिन पिछले कुछ सालों में मौसम में अनियमितता और बीमारियां बढ़ गई हैं. पत्ते झड़ना भी एक बड़ी समस्या है जो फसल को नुकसान पहुंचा सकती है.

कीमतों की अनिश्चितता

कीमतों को लेकर किसानों और कारोबारियों में चिंता बनी हुई है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें गिरने की वजह कई आर्थिक और राजनीतिक कारण हैं. भारत में जो रबड़ आता है, उसका बड़ा हिस्सा TSR फॉर्म में होता है, जिसकी कीमतें आयात पर असर डालती हैं. प्राकृतिक रबड़ की कीमतें ज्यादा गिर जाएं तो किसान टैपिंग करना बंद कर सकते हैं, जिससे उत्पादन कम हो सकता है.

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