फसल सलाह देने वाली संस्था, कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) ने 2025-26 गन्ना सीजन के लिए सुझाव दिया है कि किसानों को कीट और बीमारियों से बचाव करने वाली गन्ने की नई किस्में अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. साथ ही, कीट प्रबंधन के लिए ‘इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट’ (IPM) रणनीति अपनाने की भी सिफारिश की गई है. पिछले कुछ सालों में गन्ने की फसल पर कीटों और बीमारियों का खतरा बढ़ गया है. खासकर पिछले सीजन में CO 0238 जैसी लोकप्रिय किस्म पर रेड रॉट और टॉप बोरर के हमले से उपज को नुकसान हुआ था.
CACP ने अपनी नॉन-प्राइस सिफारिश में कहा है कि किसानों को बेहतर किस्मों और IPM तकनीकों के बारे में जागरूक करने के लिए अभियान चलाए जाने चाहिए, ताकि टिकाऊ गन्ना खेती को बढ़ावा मिल सके. साथ ही आयोग ने यह भी कहा कि अच्छी क्वालिटी की गन्ने की बीज (सीड केन) की उपलब्धता और मांग के बीच बड़ा अंतर है, जिससे उत्पादन, शुगर रिकवरी और मुनाफे पर असर पड़ता है. इस समस्या से निपटने के लिए ICAR, राज्य कृषि विश्वविद्यालयों (SAUs), राज्य सरकारों और चीनी मिलों के बीच बेहतर तालमेल जरूरी है.
FRP बढ़ाकर 355 रुपये प्रति क्विंटल
CACP ने कहा है कि गन्ना उत्पादन को बेहतर बनाने के लिए गन्ने की किस्मों को तेजी से बदलने (वैरायटी रिप्लेसमेंट रेट) और बीजों के नवीनीकरण (सीड रिप्लेसमेंट रेट) पर जोर देना चाहिए. साथ ही, ऐसी किस्में विकसित करनी चाहिए जो जलवायु के अनुकूल हों और कीट व बीमारियों से बचाव करती हों. विशेष ध्यान उन किस्मों पर होना चाहिए जिनमें शुगर कंटेंट (सुक्रोज) ज्यादा हो, ताकि किसानों और शुगर इंडस्ट्री दोनों को ज्यादा मुनाफा हो सके. सरकार ने हाल ही में 2025-26 के शुगर सीजन के लिए गन्ने का उचित एवं लाभकारी मूल्य (FRP) बढ़ाकर 355 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया है, जो पिछले साल से करीब 4.4 फीसदी ज्यादा है. यह फैसला CACP की सिफारिशों के आधार पर लिया गया है.
मशीनों के इस्तेमाल को मिले बढ़ावा
इसके अलावा, CACP ने यह भी सुझाव दिया है कि गन्ना खेती में मशीनों के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए चीनी मिलों को कस्टम हायरिंग सेंटर्स (CHCs) के कंस्ट्रक्शन में मदद करनी चाहिए. साथ ही, किसान उत्पादक संगठन (FPOs) और निजी उद्यमियों को महंगे उपकरण जैसे हार्वेस्टर और प्लांटर किराए पर उपलब्ध कराने में भी सहयोग देना चाहिए. CACP ने सुझाव दिया है कि ICAR-भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान (IISR), ICAR-केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान (CIAE) और IIT जैसे संस्थानों को मिलकर ऐसे गन्ना हार्वेस्टर डिजाइन करने चाहिए जो भारतीय हालात के अनुकूल, सस्ते और प्रभावी हों. साथ ही, कृषि यंत्रीकरण की सब-मिशन (SMAM) योजना के तहत गन्ना यंत्रीकरण के लिए विशेष बजट आवंटित किया जाना चाहिए.
इसे प्रणाली को खत्म किया जाए
आयोग ने यह भी दोहराया है कि कुछ राज्यों द्वारा अपनाई गई स्टेट एडवाइज्ड प्राइस (SAP) प्रणाली को खत्म किया जाना चाहिए. यह प्रणाली न केवल चीनी मिलों पर आर्थिक बोझ डालती है, बल्कि बाजार में असंतुलन भी पैदा करती है और चीनी रिकवरी रेट बेहतर करने का कोई प्रोत्साहन नहीं देती. हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य SAP लागू करते हैं, जो अक्सर FRP से ज्यादा होती है. CACP ने कहा कि SAP, FRP की तरह चीनी की रिकवरी दर से जुड़ी नहीं होती, इसलिए यह किसानों या मिलों को ज्यादा कुशल बनने के लिए प्रेरित नहीं करती. उदाहरण के तौर पर, उत्तर प्रदेश में जब रिकवरी रेट बढ़ा, तो SAP और FRP के बीच अंतर घटा. लेकिन पंजाब, हरियाणा और उत्तराखंड में SAP ज्यादा है और रिकवरी रेट कम, जिससे दोनों में काफी फर्क है.