गाजर में गलन रोकने का आसान फार्मूला, मिट्टी सुधार और सही सिंचाई से बढ़ेगा उत्पादन
सर्दियों में गाजर की खेती शुरू होते ही गलन की समस्या किसानों के लिए बड़ी चुनौती बन जाती है. लेकिन मिट्टी सुधार, संतुलित सिंचाई, सल्फर-बोरॉन जैसी जरूरी पोषक तत्वों की सही मात्रा और खेत की देखभाल से इस बीमारी को आसानी से रोका जा सकता है. ये उपाय अपनाकर किसान गाजर की गुणवत्ता और उत्पादन दोनों बढ़ा सकते हैं.
Carrot Farming : सर्दियों का मौसम आते ही खेतों में नई उम्मीदें उगने लगती हैं. धान की कटाई खत्म होते ही किसान रबी सीजन की तैयारियों में जुट जाते हैं. इन्हीं तैयारियों के बीच गाजर की फसल सबसे उम्मीदें जगाने वाली फसलों में मानी जाती है. लेकिन गाजर के साथ एक समस्या लंबे समय से किसान झेलते आ रहे हैं-फसल में गलन, जो गाजर को अंदर से सड़ा देती है और उत्पादन पर बड़ा असर डालती है. यह समस्या जितनी शांत दिखाई देती है, उतनी ही खतरनाक होती है. अच्छी बात यह है कि मीडिया रिपोर्ट के अनुसार कुछ सरल उपाय अपनाकर किसान इस बीमारी से अपनी फसल को आसानी से बचा सकते हैं.
गाजर में गलन क्यों बढ़ जाती है?
गाजर जमीन के अंदर बनने वाली फसल है, इसलिए मिट्टी में मौजूद फफूंद और अन्य रोग इसे जल्दी प्रभावित कर देते हैं. कई खेतों में गलन लगातार बढ़ती जाती है क्योंकि मिट्टी में मौजूद रोग वर्ष दर वर्ष सक्रिय होते रहते हैं. अगर किसी खेत में पहले भी गाजर गलन की समस्या दिख चुकी है, तो किसान उसी खेत में बिना रोक-टोक दोबारा बुवाई कर देते हैं, जिससे बीजाणु लगातार बढ़ते हैं और हर बार नई फसल को नुकसान पहुंचाते हैं. विशेषज्ञों की मानें तो अगर खेत में गलन की समस्या पहले रही है, तो किसान को उसी खेत में तुरंत बुवाई नहीं करनी चाहिए. फसल चक्र, मिट्टी की सफाई और जैविक सुधार इस समस्या को काफी हद तक कम कर सकते हैं.
मिट्टी को स्वस्थ बनाकर रोकें गलन का खतरा
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, जिन खेतों में गलन अधिक दिखाई देती है, वहां किसान कम से कम 2-3 साल तक गाजर की बुवाई से बचें. इस दौरान खेत की मिट्टी को स्वस्थ बनाने की जरूरत होती है. खेत में सड़ी गोबर की खाद के साथ ट्राइकोडर्मा और स्यूडोमोनास जैसे फायदेमंद जैविक तत्व मिलाने से मिट्टी में मौजूद हानिकारक रोगाणु खत्म हो जाते हैं. ये मित्र फफूंदें गलन पैदा करने वाले जीवों के विकास को रोकती हैं और मिट्टी को संतुलित बनाती हैं. कुछ किसान यह सोचते हैं कि मिट्टी केवल खाद डालने से ठीक हो जाती है, लेकिन गाजर जैसी जड़ वाली फसलों के लिए मिट्टी का जैविक संतुलन सबसे महत्वपूर्ण होता है. इसलिए, मिट्टी सुधार के यह उपाय भविष्य में होने वाली बीमारी से बचाव का मजबूत आधार बनते हैं.
पानी और पोषक तत्वों का संतुलन बनाएगा गाजर को मजबूत
गाजर में गलन का सबसे बड़ा कारण गलत तरीके से की गई सिंचाई भी है. अगर खेत में ज्यादा पानी भरता है, तो जड़ें गलने लगती हैं. इसलिए सिंचाई करते समय पानी केवल आधी मेड़ तक भरें, जिससे हवा का प्रवाह बना रहे और मिट्टी में नमी संतुलित रहे. इसके साथ ही सल्फर, जिंक, बोरॉन, पोटाश और सुपर खाद का सही मिश्रण गाजर की गुणवत्ता को बढ़ाता है और गलन कम करता है. खासकर बेंटोनाइट सल्फर खेत में डालने से गाजर का रंग और आकार बेहतर बनता है. सल्फर मिट्टी में जड़ों को मजबूत करता है और रोगों का हमला कम करता है. सिंचाई और पोषण के इस संतुलन से गाजर की फसल न केवल स्वस्थ रहती है, बल्कि उत्पादन भी अधिक मिलता है.
बोरॉन की कमी से फटती है गाजर, ऐसे पाएं समाधान
कई बार गाजर बीच से फट जाती है और फटने वाली जगह से ही गलन शुरू होती है. इसका मुख्य कारण होता है बोरॉन की कमी. बोरॉन जड़ों के विकास को सही दिशा देता है और उन्हें फटने से रोकता है. जब मिट्टी में यह तत्व कम होता है, तो गाजर फटकर अंदर से कमजोर पड़ जाती है और रोग जल्दी फैलने लगता है. इसलिए समय पर बोरॉन की सही मात्रा देना बेहद जरूरी है. इसके साथ ही खेत में जिप्सम का उपयोग भी फायदेमंद माना जाता है, क्योंकि इसमें सल्फर सहित ऐसे कई तत्व होते हैं जो जड़ वाली फसलों की बढ़वार को मजबूत करते हैं. उपयुक्त पोषण और सही सिंचाई के तरीके अपनाकर किसान गाजर की फसल में गलन की समस्या को काफी हद तक नियंत्रित कर सकते हैं. मीडिया रिपोर्ट बताती है कि यदि किसान किसी भी समस्या का सामना कर रहे हैं, तो कृषि विभाग से सलाह लेना सबसे बेहतर कदम होगा.