महाराष्‍ट्र में धनिया के किसान हुए परेशान, सड़क पर फेंकने को हुए मजबूर

किसानों की मानें तो पिछले साल उन्‍हें इस सब्‍जी के अच्‍छे दाम मिले थे. लेकिन इस बार उन्‍हें इस कौड़‍ियों के दाम बेचने को मजबूर होना पड़ रहा है.जुन्‍नार, पुरंदर, खेड़ और औरंगाबाद, महाराष्‍ट्र के वो क्षेत्र हैं जहां पर धनिया की खेती सबसे ज्‍यादा होती है.

Kisan India
Published: 20 Feb, 2025 | 09:43 PM

धनिया जो आपकी सब्‍जी का स्‍वाद बढ़ाता है, उसने महाराष्‍ट्र के किसानों को परेशान किया हुआ है. हरे रंग की यह हर्ब्‍स महाराष्‍ट्र की एक अहम फसल है लेकिन अब यहां के किसान इसे सड़कों पर फेंकने को मजबूर हैं. किसानों की मानें तो पिछले साल उन्‍हें इस सब्‍जी के अच्‍छे दाम मिले थे. लेकिन इस बार उन्‍हें इस कौड़‍ियों के दाम बेचने को मजबूर होना पड़ रहा है. जुन्‍नार, पुरंदर, खेड़ और औरंगाबाद, महाराष्‍ट्र के वो क्षेत्र हैं जहां पर धनिया की खेती सबसे ज्‍यादा होती है. लेकिन यहां के जालना में किसानों को धनिया सड़क पर फेंकने को मजबूर होना पड़ रहा है.

सिर्फ 50 रुपये में बिका धनिया

वेबसाइट किसान तक की रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल अच्‍छे दाम मिलने की वजह से जालना जिले के कई किसानों ने इस साल भी इस सब्जी की भरपूर खेती की. लेकिन इस साल जालना के बाजार में सब्जियों की आवक बढ़ने से धनिया बहुत ही कम दामों पर बिक रही है. जालना जिले के वाटूर गांव के कुछ किसान जब धनिया बेचने के लिए बाजार में लाये तो व्यापारी ने उन्‍हें एक बोरी के बदले पचास रुपये देने की ही पेशकश की. ऐसे में उचित कीमत न मिलने की वजह से किसानों ने धनिया सड़क पर ही फेंक दिया.

उपज ज्‍यादा होना, बना मुसीबत

किसानों की मानें तो पिछले साल जो धनिया एक हजार रुपये में था, आज उसके सिर्फ 50 रुपये ही मिल रहे हैं. कृषि उपज को उचित बाजार मूल्य न मिलने से जालना जिले के किसान परेशान दिखाई दे रहे हैं. किसान अपनी उपज को योग्य बाजार मूल्य मिलने की मांग कर रहे हैं. जालना में धनिया या फिर दूसरी पत्‍तेदार सब्जियों की खेती बहुत कम होती है. लेकिन पिछले साल अच्छा भाव मिलने से किसानों ने इस साल जमकर इसकी खेती. उपज ज्‍यादा होने की वजह से बाजार में आवक भी बढ़ गई और धनिया के दाम में भी भारी गिरावट आई.

क्‍यों की धनिया की खेती

वैसे तो जालना जिला कपास, सोयाबीन और चने की खेती के लिए जाना जाता है. यहां नींबवर्गीय फसलों में मौसंबी की खेती बहुत अधिक होती है. साथ ही अंगूर की खेती भी बड़े पैमाने पर की जाती है. लेकिन कुछ किसानों ने पत्तेदार सब्जियों की खेती भी शुरू की है. इस पूरे इलाके में पिछले साल अकाल पड़ा था. अकाल की स्थिति में किसानों ने सब्जियों की खेती की क्योंकि उसमें पानी की जररूत कम होती है और 4-5 महीने में तैयार हो जाती है. पानी की कमी के चलते तालाब सूख गए थे और भूजल स्तर बहुत नीचे चला गया था. इसमें किसानों को सब्जियों की खेती फायदेमंद लगी.

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